काथेरी तेघागविथा का जन्म सन् 1656 ई. में न्यू
यॉर्क के परिसर में आऊरियसविले में हुआ था। उनके पिता अमरीकी जनजाति मोहोक के योद्धा
थे। काथेरी जब चार वर्ष की थी तब ही उनका माता का देहान्त हो गया था इसलिये उनका लालन
पालन उनकी दो चाचियों एवं एक चाचा ने किया। बचपन में चेचक की चपेट में आ जाने से काथेरी
का चेहरा कुरुप हो गया था तथा इसके लिये उन्हें तिरस्कार का शिकार बनना पड़ा था। बीस
वर्ष की उम्र में काथेरी ने काथलिक धर्म का आलिंगन कर लिया था जिसके कारण उसे अपनी जनजाति
के लोगों द्वारा उत्पीड़ित किया गया।
विश्वास के कारण सताई जानेवाली इस ग़रीब
युवती ने अपना घर परिवार छोड़, कनाडा में, नये आदिवासी ख्रीस्तीयों के लिये निर्मित ख्रीस्तीय
कॉलोनी में शरण ली। यहाँ अपनी विनम्रता तथा सेवाभाव से उन्होंने अपने लिये कई मित्र बना
लिये। प्रार्थना, मनन चिन्तन, पश्चातापी क्रियाओं तथा बीमारों एवं वृद्धों की सेवा कर
स्वतः को शुद्ध करने का उन्होंने प्रयास किया। पवित्र यूखारिस्त एवं क्रूस के प्रति उनकी
भक्ति प्रगाढ़ थी। बताया जाता है कि काथेरी बड़े सबेरे चार बजे कड़ाके की सर्दी में भी
गिरजाघर के द्वार पर जाकर खड़ी हो जाती थी तथा द्वार खुलने की प्रतीक्षा करती रहती थीं।
फिर ख्रीस्तयाग के बाद ही वे घर लौटती थीं। निर्धनता एवं बीमारी के कारण 24 वर्ष की आयु
में ही 17 अप्रैल सन् 1680 ई. को काथेरी का निधन हो गया था। मरते दम तक उन्होंने अपने
कौमार्य को सुरक्षित रखा था इसीलिये उन्हें "लिली ऑफ द मोहोक" यानि "मोहोक की कुमुदनी"
शीर्षक से सम्मानित किया गया है। सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने, सन् 1980 ई. में, काथेरी
तेघागविथा को धन्य घोषित किया था तथा कुछ समय पूर्व, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने,
घोषित किया था कि 21 अक्टूबर सन् 2012 को, अमरीका की आदिवासी लोकधर्मी महिला, धन्य काथेरी
तेघागविथा को सन्त घोषित कर काथलिक कलीसिया में वेदी का सम्मान प्रदान किया जायेगा। काथेरी
तेघागविथा का पर्व 14 जुलाई को मनाया जाता है। असीसी के सन्त फ्राँसिस की तरह धन्य काथेरी
तेघागविथा भी पर्यावरण की संरक्षिका हैं।
चिन्तनः सतत्
प्रार्थना, मनन चिन्तन एवं बाईबिल पाठ द्वारा हम भी पवित्रता के मार्ग पर अग्रसर होवें
तथा शुद्ध हृदय से प्रभु के धन्य मनायें।