'जबरन' धर्मांतरण के खिलाफ कानून में संशोधन, धार्मिक आज़ादी के खिलाफ
भोपाल, वृहस्पतिवार, 11 जुलाई, 2013 (बीबीसी) मध्यप्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार
के धर्मांतरण के खिलाफ मौजूदा क़ानून में संशोधन करने और ज्यादा सख़्त बना कर विधानसभा
में मात्र बीस मिनट में पारित करने से ईसाई समुदाय नाराज है। ईसाई समुदाय का कहना
है यह व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है। कैथोलिक चर्च भोपाल के प्रवक्ता फादर
जॉनी का कहना है कि यह अल्पसंख्यक समुदाय पर दमन है।इस कानून को ग़ैर जमानतीय बनाकर सरकार
हमें सताना चाह रही है। नए संशोधन के बाद जबरन धर्म परिवर्तन पर जुर्माने की रकम दस
गुना तक बढ़ा दी गई है और कारावास की अवधि भी एक से बढ़ाकर चार साल तक कर दी गई है। संशोधन
में न सिर्फ धर्म परिवर्तन करने वाले बल्कि परिवर्तन कराने वाले धार्मिक पुरोहितों के
लिए भी यह आवश्यक कर दिया गया है कि उन्हें जिला मजिस्ट्रेट से इसकी लिखित में अनुमति
लेना होगी। मध्यप्रदेश क्रिश्चियन एसोसिएशन के वाईस चेयरपर्सन फादर अनिल मार्टिन सवाल
करते हैं कि जब एक बार राष्ट्रपति इस संशोधन विधेयक को नामंजूर कर चुके तब दोबारा लाने
का क्या मकसद है? बिल को धार्मिक आजादी के खिलाफ़ बताते हुए उन्होंने न्यायालय जाने की
बात भी कही। उन्होंने बताया कि इस सिलसिले में बुधवार को अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े
सभी धर्मो के गुरुओं ने राज्यपाल से मुलाकात कर इस बिल को मंजूरी नहीं देने का अनुरोध
किया है। उधर राज्य के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता की माने तो अब प्रलोभन के जरिए
भोले भाले लोगो का धर्मांतरण रूकेगा। वे इसे संघ का एजेंडा मानने को राजी नहीं हैं। ग़ौतलब
है कि भाजपा सरकार ने 2006 में भी एक बार धर्मांतरण विरोधी बिल में संशोधन किया था, लेकिन
राष्ट्रपति ने उसे मंजूरी नहीं दी थी। सात साल बाद लाए गए नए संशोधन बिल में तीन साल
की जेल और पचास हजार रूपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है। महिला, अनुसूचित जाति,
जनजाति के मामले में जेल की अवधि चार साल और जुर्माना की रकम को एक लाख कर दिया गया है। राज्य
का ईसाई समुदाय भाजपा सरकार द्वारा लाए गए इस संशोधन विधेयक से नाराज है. उनकी नाराजगी
भाजपा के साथ साथ विपक्षी दल कांग्रेस से भी है। मध्यप्रदेश क्रिश्चियन एसोसिएशन के वाईस
चेयरपर्सन फादर अनिल मार्टिन को इस बात का दुख है कि विधानसभा में विपक्ष ने अपनी भूमिका
का सही तरीके से निर्वाह नहीं किया। पिछले 45 सालों से राज्य में जो धर्म स्वातंत्रय
अधिनियम 1968 अस्तित्व में हैं उसमें धर्म परिवर्तन से पहले जिला मजिस्ट्रेट से लिखित
में अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं होती थी। कानून में यह प्रावधान था कि धर्म परिर्वतन
के एक माह के भीतर प्रशासन को इसकी सूचना देनी होगी।