2013-07-10 12:53:42

प्रेरक मोतीः नोरच्या के सन्त बेनेडिक्ट (480-543 ई.)
(11 जुलाई)


वाटिकन सिटी, 11 जुलाई सन् 2013:

पश्चिमी देशों में मठवासी जीवन के पितामह कहे जानेवाले, सन्त बेनेडिक्ट का जन्म, इटली के नोरच्या में, सन् 480 ई. में, हुआ था जबकि रोम में उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई थी। भोग विलास की शहरी ज़िन्दगी बेनेडिक्ट को रास नहीं आई इसलिये 20 वर्ष की आयु में वे रोम शहर छोड़कर सुबियाको पर्वतीय क्षेत्र में, एकान्त जीवन यापन हेतु निकल गये। इस पर्वत पर एक कुटिया में उन्होंने तीन वर्ष व्यतीत किये। एकान्त में, प्रार्थना, ध्यान, मनन चिन्तन द्वारा प्रभु में अपना मन लगाकर वे पवित्रता का जीवन यापन करना चाहते थे किन्तु उनके जीवन यापन के तौर तरीकों ने कईयों को आकर्षित किया तथा उन्हें विकोवारो स्थित एक ख्रीस्तीय समुदाय के नेतृत्व के लिये बुला लिया गया।

बेनेडिक्ट ने विकोवारो के समुदाय का नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया तथा जीवन यापन के कठोर नियमों की प्रस्तावना की। कुछ समय तक तो सब कुछ ठीक चला किन्तु बाद में समुदाय के कुछेक सदस्यों ने कठोर नियमों से तंग आकर बेनेडिक्ट को विष देकर मार डालना चाहा। षड़यंत्र का पता लगते ही बेनेडिक्ट वहाँ से चल पड़े तथा पुनः सुबियाको लौट आये जहाँ उन्होंने मठवासी जीवन यापन के इच्छुक युवाओं के लिये 12 मठों की स्थापना की।

सन् 525 ई. में, बेनेडिक्ट, दक्षिणी इटली स्थित मोन्ते कासिनो पर्वतीय क्षेत्र आये जहाँ उन्होंने मठों की स्थापना का कार्य आरम्भ किया। अपनी पवित्रता, विवेक एवं चमत्कारों के कारण शीघ्र ही भिक्षु बेनेडिक्ट दूर-दूर तक विख्यात हो गये। बेथलेहेम में पूर्वी रीति के ख्रीस्तीय मठाचार्य जरमानुस के शिष्य रहे, चौथी शताब्दी के, सन्त जॉन कास्सियन की लेखनी ने नोरच्या के बेनेडिक्ट को अत्यधिक प्रभावित किया था। इसी प्रभाव के चलते बेनेडिक्ट ने ख्रीस्तीय भिक्षुओं को एक ही मठवासी समुदाय में एकीकृत करने का प्रयास किया तथा मठवासी जीवन के लिये नियमों की प्रस्तावना की जिसके लिये वे विख्यात हो गये। सहज बुद्धि, मिताचारी तपश्चर्या के जीवन, प्रार्थना, पवित्र बाईबिल पाठ, अध्ययन, श्रम तथा एक प्राचार्य के अधीन रहकर सामुदायिक जीवन यापन इन नियमों का सार थे। इनमें आज्ञाकारिता, स्थायित्व, धर्मोत्साह, भक्ति एवं मनन चिन्तन पर बल दिया गया। नोरच्या के बेनेडिक्ट द्वारा रचे गये यही नियम, आगे जाकर, पश्चिमी देशों में आध्यात्मिक एवं मठवासी जीवन के स्तम्भ सिद्ध हुए।

ख्रीस्तीय भिक्षुओं के जीवन में व्यवस्था स्थापित करने के अतिरिक्त, नोरच्या के बेनेडिक्ट, शासकों एवं सन्त पापाओं के सलाहकार बने, उन्होंने अपने इर्द-गिर्द रहनेवाले निर्धनों एवं रोगियों की सेवा की तथा लोमबार्द तोतिला के आक्रमण में ध्वस्त हुई इमारतों के खण्डहरों का पुनर्निर्माण कर वहाँ मठों एवं गिरजाघरों की स्थापना की। 21 मार्च, सन् 547 ई. को, मोन्ते कासिनो में बेनेडिक्ट का निधन हो गया था। सन् 1664 ई. में, सन्त पापा पौल षष्टम ने, नोरच्या के सन्त बेनेडिक्ट को पुरातत्ववेत्ताओं, शोधकर्त्ताओं, युवाओं एवं यूरोप के संरक्षक सन्त घोषित किया था। नोरच्या के सन्त बेनेडिक्ट का पर्व 11 जुलाई को मनाया जाता है।

चिन्तनः सतत् प्रार्थना, मनन चिन्तन एवं बाईबिल पाठ द्वारा, हम भी, सादगी और शुद्धता के जीवन के प्रति आकर्षित होवें तथा पवित्रता के मार्ग पर अग्रसर होने का सम्बल प्राप्त करें।








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