लिथुआनियाः संस्कारों एवं ईश वचन द्वारा ख्रीस्त के साथ मैत्री में विकसित होवें, युवाओं
को सन्त पापा का परामर्श
लिथुआनिया, 01 जुलाई सन् 2013 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने युवाओं को परामर्श दिया
है कि संस्कारों को ग्रहण कर तथा ईश वचन पर मनन चिन्तन कर वे प्रभु ख्रीस्त के साथ मैत्री
में विकसित होवें। लिथुआनिया के काओनास शहर में 28 से 30 जून तक आयोजित छठवें युवा
समारोह के लिये सम्पूर्ण देश से एकत्र युवाओं को प्रेषित सन्देश में सन्त पापा फ्राँसिस
ने ख्रीस्त के साथ मैत्री के महत्व को प्रकाशित किया। सन्त पापा ने कहा कि प्रभु
ख्रीस्त जो स्वयं सत्य और जीवन हैं युवाओं के मित्र एवं भाई होना चाहते हैं। आवश्यकता
केवल इस बात की है कि हम उनके आमंत्रण को स्वीकार करें। उन्होंने कहा कि ख्रीस्त के साथ
मैत्री स्थापित करने का अर्थ है ईश्वर के प्रेम से साक्षात्कार करना जो व्यक्ति को आनन्द
से परिपूर्ण कर देता है। संस्कारों के महत्व को प्रकाशित कर सन्त पापा ने कहा, "प्रभु
येसु ख्रीस्त के साथ मैत्री सबसे पहले संस्कारों में और, विशेष रूप से, यूखारिस्तीय एवं
पुनर्मिलन संस्कारों द्वारा विकसित होती है इसलिये युवा लोग इन संस्कारों को ग्रहण कर
अपने हदयों को शुद्ध करें तथा ईश्वरीय प्रेम के निकट जायें।" उन्होंने कहा कि यह याद
रखा जाना चाहिये कि येसु करुणा से परिपूर्ण हैं तथा हमारे पापों को क्षमा कर देते हैं
अस्तु, हम क्षमा-याचना करने से भय न खायें तथा शुद्ध हृदय से येसु को अपने जीवन में आमंत्रित
करें। ईश वचन के श्रवण एवं मनन का आग्रह करते हुए सन्त पापा ने युवाओं से कहा, "पवित्र
धर्मग्रन्थ पाठों द्वारा प्रभु हमारे अन्तःकरण में प्रवेश कर हमसे बात करते हैं इसलिये
ईश वचन का हम पाठ करें, मौन धारण कर उस पर मनन करें तथा प्रतिदिन अपने जीवन में प्रभु
की उपस्थिति का अनुभव प्राप्त करें।"