सन्त रोमुआल्द का जन्म इटली के रवेन्ना में, सन्
956 ई. में हुआ था। सदगुण एवं पवित्रता के प्रति आकर्षित रहते हुए भी उनका आरम्भिक जीवन
सांसारिक सुख वैभव में बीता। उनके पिता सर्जियो एक सिद्धहस्त योद्धा एवं पटेबाज़ थे।
एक दिन पिता सर्जियो ने बेटे रोमुआल्द को अपने विरोधी के साथ द्वन्द्वयुद्ध देखने के
लिये बुलाया। इस ख़तरनाक खेल में विरोधी की निर्मम हत्या हो गई। इस घटना ने रोमुआल्द
के हृदय को पसीज कर रख दिया तथा उन्होंने सांसारिक माया जाल के परित्याग का प्रण कर लिया।
चालीस दिनों तक रोमुआल्द, पिता सरजियो के अपराध के लिये पश्चाताप करते रहे जिसके
बाद रवेन्ना नगर के निकट स्थित सन्त अपोल्लिनारे के बेनेडिक्टीन मठ में चले गये। बेनेडिक्टीन
धर्मसमाजी मठ में उन्होंने कई वर्षों तक त्याग-तपस्या का जीवन व्यतीत किया तथा अनेक नये
मठों की स्थापना की। बाद में, उन्होंने इटली के तोस्काना प्रान्त में, कमालदोली भिक्षुओं
के मठ की स्थापना की जिनका कार्य, प्रार्थना प्रेरिताई द्वारा, कलीसिया के मिशन को समर्थन
देना है।
सभी अन्य सन्तों के समान रोमुआल्दो को भी शैतान के प्रलोभनों एवं प्रहारों
का सामना करना पड़ा किन्तु सतत् प्रार्थना द्वारा वे इन प्रलोभनों पर विजयी हुए। कई बार
उन पर जान लेवा आक्रमण किये गये किन्तु प्रभु की कृपा से वे बच निकले। अन्य अनेक प्रभु
सेवकों के समान रोमुआल्दों को भी बदनामी से कलंकित होना पड़ा किन्तु धैर्य, अध्यवसायता
एवं मौन द्वारा उन्होंने इसे भी सहन किया। कर्मठता, धर्मपरायणता, योग्यता एवं पवित्रता
से परिपूर्ण जीवन यापन के बाद आनकोना के एक मठ में, 19 जून, सन् 1027 ई. को उनका निधन
हो गया। सन्त रोमुआल्दो का पर्व 19 जून को मनाया जाता है।
चिन्तनः चिन्तनः
प्रार्थना और मनन चिन्तन से, हम भी भाई एवं पड़ोसी की सेवा हेतु आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त
करें तथा ख्रीस्त के सुसमाचार के साक्षी बनें।