प्रेरक मोतीः सहागुन के सन्त जॉन (1419 ई.- 1479 ई.) (12 जून)
वाटिकन सिटी, 12 जून सन् 2013:
जॉन गोन्ज़ालेस दे कास्त्रिल्लो का जन्म, सन्
1419 ई. में, स्पेन के लियोन के निकट सहागुन में, हुआ था। बेनेडिक्टीन धर्मसमाजी मठवासियों
के अधीन उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी तथा बीस वर्ष की आयु में गुरुकुल में भर्ती हो
गये थे। सन् 1445 ई. में जॉन पुरोहित अभिषिक्त हुए।
बहुलवाद में व्याप्त बुराईयों
से चिन्तित, उन्होंने अनेक धर्मवृत्तियों का परित्याग कर दिया तथा सादगी का जीवन यापन
करने लगे। पुरोहित बनने के बाद चार वर्षों तक उन्होंने सालामान्का के काथलिक विश्वविद्यालय
में ईशशास्त्र एवं बाईबिल का गूढ़ अध्ययन किया और इसके बाद सुसमाचार प्रचार कार्य में
लग गये। आगामी दस वर्षों में जॉन सम्पूर्ण स्पेन में एक विख्यात प्रचारक एवं आध्यात्मिक
मार्गदर्शक रूप में प्रतिष्ठापित हो गये। इसी दौरान वे एक बीमारी से ग्रस्त हो गये जिसके
लिये कठिन शल्य चिकित्सा की ज़रूरत पड़ी। इस गम्भीर चिकित्सा के बाद फादर जॉन ने अगस्टीन
धर्मसमाजी धर्मबन्धु बनने का निश्चय कर लिया।
सन् 1463 ई. में अगस्टीन धर्मसमाजी
मठ में उनका स्वागत किया गया। यहाँ पुरोहित जॉन ने नवसिखियों को प्रशिक्षण दिया तथा प्रार्थना
एवं ध्यान-चिन्तन में मन लगा लिया। कुछ समय बाद जॉन, प्रार्थना एवं चंगाई प्रेरिताई के
लिये, पहचाने जाने लगे। उन्होंने भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद तथा उच्च पदों में व्याप्त
बुराई का खुलकर विरोध किया। इसके चलते कई बार उन्हें जान से मार डालने की भी कोशिशें
की गई। बताया जाता है कि सहागुन में, 11 जून सन् 1479 ई. को, एक महिला द्वारा उन्हें
विष देकर मार डाला गया था। सन् 1690 ई. में सहागुन के जॉन को सन्त घोषित किया गया था।
उनका पर्व 12 जून को मनाया जाता है।
चिन्तनः सुसमाचारी मूल्यों का वरण कर
प्रभु ख्रीस्त के साक्षी बनना ही ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों का जीवन है।