वाटिकन सिटीः स्कूल वह स्थल है जहाँ हम विकसित होते, जीना सीखते हैं, सन्त पापा फ्राँसिस
वाटिकन सिटी, 07 जून सन् 2013 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि स्कूल, शिक्षा
प्रदान करनेवाला, वह स्थल है जहाँ व्यक्ति का विकास होता, वह परिपक्व होता तथा जीना सीखता
है। इटली तथा अल्बानिया में येसुधर्मसमाजियों द्वारा संचालित स्कूलों के प्राचार्यों,
शिक्षकों, छात्रों एवं उनके परिजनों ने, शुक्रवार को वाटिकन में, सन्त पापा फ्राँसिस
का साक्षात्कार कर उनका सन्देश सुना। इस अवसर पर सन्त पापा ने येसु धर्मसमाज के संस्थापक
लोयोला के सन्त इग्नेशियस द्वारा धर्मसमाज के लिये येसु नाम के चयन पर चिन्तन किया। उन्होंने
कहा कि सन्त इग्नेशियस समझ चुके थे कि येसु ही उनके जीवन को अर्थ प्रदान कर सकते थे तथा
उनमें साहस, आनन्द एवं आशा का संचार कर सकते थे। सन्त पापा ने कहा कि उन्होंने यह समझ
लिया था कि येसु जीवन के आदर्श हैं जो केवल शिक्षा प्रदान करनेवाले नहीं बल्कि जिन्होंने
अपने जीवन द्वारा जीवन की राह दिखाई है। स्कूल जाने और शिक्षा पाने के मर्म को समझाते
हुए सन्त पापा ने कहा, "स्कूल शिक्षा पाने का वह स्थल है जहाँ व्यक्ति का विकास होता
तथा वह जीना सीखता है, पुरुष एवं स्त्री रूप में परिपक्व होता तथा जीवन की राह पर चलने
में सक्षम बनता है।" सन्त इग्नेशियस की शिक्षा को प्रस्तावित कर सन्त पापा ने कहा
कि स्कूल में बुद्धिगम्य किये जाने वाले तत्वों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है उदारचरित
होना। उन्होंने कहा, इसका अर्थ अपने आप में संकुचित होना नहीं है अपितु अपने हृदय को
उदार रखना है ताकि ईश आदेशों के अनुकूल दैनिक जीवन के दायित्वों को पूरा करते हुए अन्यों
की सहायता हेतु सदैव तत्पर रहा जाये। सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि स्कूल की शिक्षा
केवल व्यक्ति के बौद्धिक आयाम तक ही सीमित नहीं है अपितु वह मानवीय आयाम तक विस्तृत
है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में येसु धर्मसमाज द्वारा संचालित स्कूल एवं शिक्षण संस्थाएँ
मानवीय सदगुणों जैसे विश्वसनीयता, निष्ठा, सम्मान और ईमानदारी के विकास पर ध्यान केन्द्रित
करते हैं। अपने स्कूलों में जाति और धर्म का भेद किये बिना सभी का स्वागत करने
के लिये सन्त पापा ने येसुधर्मसमाजी स्कूलों की सराहना की और कहा कि इस प्रकार ये स्कूल
विभिन्न धर्मों एवं संस्कृतियों के लोगों के बीच मैत्री और सम्वाद का भी मंच बनते हैं।