वाटिकन सिटीः वाटिकन दस्तावेज़ में शरणार्थियों एवं आप्रवासियों के मौलिक अधिकारों की
रक्षा का आह्वान
वाटिकन सिटी, 07 जून सन् 2013 (सेदोक): वाटिकन के एक नये दस्तावेज़ में स्वदेश पलायन
हेतु बाध्य लोगों के मौलिक अधिकारों के सम्मान का आह्वान किया गया है। गुरुवार को
वाटिकन स्थित परमधर्मपीठीय प्रेस कार्यालय में, शरणार्थियों एवं आप्रवासियों की प्रेरिताई
हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद तथा काथलिक कलीसिया के कल्याणकारी कार्यों का समन्वय करनेवाली
समिति "कोर ओनुम" ने एक संयुक्त दस्तावेज़ की प्रकाशना की। इसमें, अपने देशों से पलायन
करने को बाध्य लोगों की, मानव प्रतिष्ठा की सुरक्षा हेतु सरकारों का आह्वान किया गया
है। "शरणार्थियों एवं विस्थापन हेतु बाध्य लोगों में येसु का स्वागत", शीर्षक से
प्रकाशित वाटिकन के नये दस्तावेज़ में प्रेरितिक निर्देश दिये गये हैं ताकि लोगों में
शरणार्थियों, आप्रवासियों एवं विस्थापितों के प्रति बेहतर समझदारी उत्पन्न की जा सके।
शरणार्थियों एवं आप्रवासियों की प्रेरिताई हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद के अध्यक्ष
कार्डिनल अन्तोनियो मरिया वेलियो ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि विश्व की सरकारें
शरणार्थियों एवं आप्रवासियों के प्रति और अधिक कठोर नीतियाँ अपना रही हैं। उन्होंने कहा
कि युद्ध, क्षुधा एवं आर्थिक संकट के कारण अपने घरों का परित्याग करनेवाले लोगों के प्रति
एकात्मता दर्शाये जाने की ज़रूरत है। सन् 1951 ई. में पारित अन्तरराष्ट्रीय शरणार्थी
समझौते का स्मरण दिलाकर उन्होंने सरकारों का आह्वान किया कि पलायन के लिये बाध्य लोगों
की मानव प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखने हेतु वे उपाय करें। उन्होंने कहा, "प्रत्येक नीति,
प्रत्येक पहल अथवा हस्तक्षेप को मानव प्राणी की केन्द्रीयता एवं मानव मर्यादा के सिद्धान्त
से प्रेरित होना चाहिये। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रकाशित हाल के आँकड़ों के
अनुसार कम से कम दस करोड़ लोग स्वदेश पलायन हेतु बाध्य हुए हैं। इनमें एक करोड़ साठ लाख
शरणार्थी, दो करोड़ 88 लाख अपने ही देश में विस्थापित, पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं के
कारण शरणार्थी बने एक करोड़ पचास लाख तथा विकास के नाम पर बेघर हुए लगभग एक करोड़ पचास
लाख व्यक्ति शामिल हैं। इनके अतिरिक्त, लगभग एक करोड़ बीस लाख व्यक्ति ऐसे हैं जो नागरिकताहीन
हैं। सिरिया की स्थिति पर भी चिन्ता व्यक्त करते हुए "कोर ओनुम" के अध्यक्ष कार्डिनल
रॉबर्ट सारा ने ध्यान आकर्षित कराया कि दो वर्ष से चल रहे युद्ध के कारण 80,000 लोग मारे
जा चुके हैं तथा कम से कम चालीस लाख लोग सिरिया में ही बेघर और विस्थापित हो गये हैं।