वाटिकन सिटीः सन्त पापा फ्रांसिस ने मानव तस्करी का किया खण्डन
वाटिकन सिटी, 24 मई सन् 2013 (सेदोक): आप्रवासियों एवं शरणार्थियों की प्रेरिताई सम्बन्धी
परमधर्मपीठीय समिति के सदस्यों को, शुक्रवार को सम्बोधित कर सन्त पापा फ्राँसिस ने मानव
तस्करी की कड़ी निन्दा की। विगत तीन दिनों से उक्त परमधर्मपीठीय समिति के सदस्य अपनी
पूर्णकालिक सभा के लिये रोम में एकत्र थे। पूर्णकालिक सभा का विषय थाः "आप्रवास के लिये
बाध्य लोगों के प्रति काथलिक कलीसिया की एकात्मता"। इस विषय पर चिन्तन करते हुए
सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि यह कभी नहीं भुलाया जाना चाहिये कि कठिन परिस्थितियों के
कारण ही लोग आप्रवास करते हैं तथा विदेशों में शरण मांगने के लिये बाध्य होते हैं। "शरणार्थियों
एवं पलायन हेतु बाध्य लोगों में ख्रीस्त का स्वागत" शीर्षक से प्रकाशित परमधर्मपीठीय
समिति के दस्तावेज़ के सन्दर्भ में सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "यह दस्तावेज़ लाखों शरणार्थियों,
आप्रवासियों एवं विस्थापितों के प्रति ध्यान आकर्षित कराता तथा मानव तस्करी के घाव का
भी स्पर्श करता है जिसके द्वारा प्रायः बच्चों को उत्पीड़ित किया जाता और यहाँ तक कि
सशस्त्र संघर्षों में, बाल सैनिकों के रूप में उनका शोषण किया जाता है। मैं एक बार फिर
इस बात पर बल देना चाहता हूँ कि "मानव तस्करी" एक अधम कृत्य एवं सभ्य कहलानेवाले समाजों
का कलंक है।" उन्होंने कहा, "शोषकों एवं सभी स्तरों के ग्राहकों को, गम्भीर रूप से,
अपने अन्तःकरण की जाँच करना चाहिये। कलीसिया आज अपनी इस अपील को नवीकृत करती है ताकि
काथलिक कलीसिया की सामाजिक शिक्षा के अनुकूल सभी व्यक्तियों के उनके मौलिक अधिकार प्राप्त
हों तथा हर अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं गरिमा का सम्मान किये जाये।"
सन्त पापा ने इस बात की भी पुनरावृत्ति की कि कलीसिया माता है तथा उसकी ममता उन लोगों
के प्रति प्रकट होती है जो अपने घर और देश का पलायन करने के लिये बाध्य होते हैं। काथलिक
धर्मानुयायियों से सन्त पापा ने आग्रह किया कि वे उन शरणार्थियों एवं आप्रवासियों की
आवाज़ बनें जो हिंसा, दमन एवं निर्धनता के कारण अपने देशों से दूर रहने के लिये मजबूर
हैं।