2013-05-20 16:14:31

पेंतेकोस्त महापर्व पर संत पापा फ्राँसिस का उपदेश


वाटिकन सिटी, सोमवार 20 मई 2013 (सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने रोम स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में, रविवार 19 मई को पेंतेकोस्त महापर्व के अवसर पर अपने उपदेश में उपस्थित भक्त समुदाय से कहा:
अति प्रिय भाइयो एवं बहनों,

आज के धर्मविधिक पाठों में हमने पुनर्जीवित ख्रीस्त द्वारा पवित्र आत्मा को कलीसिया के लिए भेजे जाने पर चिंतन किया। यह कृपाओं से भरे उस समय की याद है जब येरुसालेम का ऊपरी कमरा पवित्र आत्मा से भर गया था तथा बाद में सारी दुनिया में फैल गया।

संत पापा ने कहा, "पेंतेकोस्त के दिन क्या हुआ था?" इस सवाल के उत्तर में उन्होंने कहा, "एक ऐसा एहसास जो बहुत दूर रहते हुए भी अत्यंत क़रीब होकर हमारे हृदय के अंतरतम को छू देता है।" संत लूकस रचित प्रेरित चरित हमें इसका उत्तर देता है। संत लूकस हमें पुनः येरुसालेम के ऊपरी कमरे ले चलते हैं, जहाँ सारे प्रेरित एकत्र थे। सबसे पहली बात जो हमारा ध्यान आकृष्ट करती है, वह है स्वर्ग से अचानक आती हुई आवाज़, जिसने तेज़ आँधी की तरह कमरे को भर दिया था तथा जो आग की जीभों में विभक्त होकर प्रेरितों पर ठहर गई थी। ‘आवाज’ और ‘आग की जीभ’ से स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा ने एक ठोस चिन्ह रुप में न केवल बाहर से प्रेरितों को प्रभावित किया किन्तु उनके अन्तरमन एवं दिल तक को छू डाला। जिसका परिणाम यह हुआ कि वे सभी पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये। उनमें एक आश्चर्यजनक शक्ति क्रियाशील हो गयी और जैसे आत्मा ने उन्हें वरदान दिया वे विभिन्न भाषाओं में बोलने लगे। इस प्रकार एक बड़ा ही अप्रत्याशित दृश्य हमारी नज़र के सामने उभरता है। भीड़ आश्चर्य चकित थी क्योंकि प्रत्येक अपनी भाषा में प्रेरितों को बोलते हुए सुन रहा था। उन सब ने कुछ नयी चीज़ का अनुभव किया। जो पहले कभी नहीं हुआ था अथार्त ईश्वरीय के सामर्थ्य का प्रदर्शन।

संत पापा ने प्रेरित चरित से लिए गये पाठ पर अपने चिंतन को उन तीन मुख्य विंदुओं पर केन्द्रित रखा जो पवित्र आत्मा के कार्य से जुड़े रहते हैं। नवीनता, एकता और प्रेरिताई।

1. नवीनता हमेशा हमें डराती है। हम अपने आप को तब सुरक्षित महसूस करते हैं जब सब कुछ हमारे नियंत्रण में होता है तथा हम अपनी पसंद अनुकूल योजना बनाते हैं। हम बहुधा ख्रीस्त का अनुसरण स्वीकार करते हैं, किन्तु एक निश्चित सीमा तक। पूर्ण भरोसा रखकर अपने आप को उन्हीं पर छोड़ देना कठिन प्रतीत होता है। पवित्र आत्मा जीवन के मार्गदर्शन से हम भय खाते हैं कि कहीं ईश्वर हमें नया रास्ता अपनाने के लिए मजबूर न कर दें।

2.अपने दूसरे बिन्दु ‘एकता’ पर चिंतन प्रस्तुत करते हुए संत पापा कहते हैं, "कलीसिया में क्रान्ति लाने के लिए पवित्र आत्मा को आना है क्योंकि यह विभिन्न विशिष्ठताओं कृपाओं और वरदानों को प्रदान करता है। पवित्र आत्मा एकता का आत्मा है अथार्त एकरुपता नहीं, सब कुछ का सामंजस्य। कलीसिया में पवित्र आत्मा ही एकता उत्पन्न करता है।

संत पापा ने कलीसिया के एक प्राचीन धर्मगुरु के विचार को रखते हुए कहा "पवित्र आत्मा स्वंय अपने आप में एकता है क्योंकि केवल पवित्र आत्मा विविधता, अनेकता और बहुलता के बावजूद एकता का निमार्ण कर सकता है।"

संत पापा ने अनेकता का अर्थ समझाते हुए कहा "जब हम स्वयं को अपने में बंद कर दूसरों से अलग करते एकता बनाने की कोशिश करते हैं तब एकता कभी सम्भव नहीं होगी बल्कि सबको स्वीकार कर हम विविधता में भी एकता का निर्माण कर सकेंगे। यदि हम मानवीय योजना के अनुसार एकता लाने की कोशिश करते हैं तो एकता के बजाय एकरूपता और मानकीकरण ला बैठते हैं। इसके विपरीत यदि हम पवित्र आत्मा से मार्गदर्शन पाते हैं तो विविधता और बहुलता भी झगड़े का कारण नहीं बनता है क्योंकि बहुलता में भी हम एक होने का अनुभव पाते हैं।"

विशेष प्रकार के वरदान और प्रेरिताई से विभूषित कलीसिया के मेषपालों के साथ मिलकर सहयोग करना पवित्र आत्मा के कार्य का चिन्ह है। कलीसियाई भावना प्रत्येक ख्रीस्तीय, प्रत्येक समुदाय एवं प्रत्येक अभियान की आधारभूत भावना है।

"कलीसिया ही ख्रीस्त को मेरे लिए देती है तथा मुझे ख्रीस्त के पास ले जाती है। समानांतर यात्रा जोखिमयुक्त है जब हम कलीसियाई शिक्षा और समुदाय के ऊपर जाते हैं तथा उनके अनुसार नहीं चलते हैं तब हम येसु ख्रीस्त के साथ नहीं हैं।

संत पापा ने आत्म-जाँच के लिए कुछ प्रश्न दिये, "क्या मैं पवित्र आत्मा के प्रति उदार हूँ? क्या मैं सभी प्रकार के अपने अत्यधिक लगाव से ऊपर उठ सकता हूँ? क्या मैं अपने आप को उनके द्वारा संचालित होने देता हूँ तथा कलीसिया में और कलीसिया के साथ रहता हूँ?

3. संत पापा ने अपने तीसरे चिंतन में कहा, "प्राचीन ईशशास्त्री कहा करते थे, हमारी आत्मा एक प्रकार का जहाज़ है तथा पवित्र आत्मा हवा है जो इसे ख़ेकर किनारे पर ले चलता है।" हवा की शक्ति पवित्र आत्मा का वरदान है। उसकी शक्ति और कृपा के बिना हम आगे नहीं चल सकते। पवित्र आत्मा हमें जीवन्त ईश्वर के रहस्य तक ले चलता और आत्मज्ञान के दम्भ, अहम की भावना तथा अपने आप में बंद हो जाने की आशंका से बचाता है। वह हमें द्वार खोलकर बाहर आने, सुसमाचार की घोषणा करने, साक्ष्य देने तथा विश्वासपूर्वक ख्रीस्त से मिलने के आनन्द को बांटने के लिए आमंत्रित करता है।

संत पापा ने कहा कि पवित्र आत्मा कलीसिया के मिशन की आत्मा है। येरुसालेम में जो घटना दो हज़ार वर्षो पूर्व घटी वह हम से दूर नहीं हैं वह हम पर प्रभाव डालती है और हममें से प्रत्येक के लिए एक जीवित अनुभव बन जाती है। येरुसालेम के ऊपरी कमरे का पेंतेकोस्त एक शुरुआत है एक ऐसी शुरुआत जो सदा आगे बढ़ती रहती है। पवित्र आत्मा प्रभु येसु द्वारा उनके प्रेरितों को दिया गया सर्वोत्तम वरदान है। किन्तु प्रभु चाहते हैं कि यह वरदान सब को प्राप्त हो। जैसा कि हमने सुसमाचार में सुना- येसु कहते हैं मैं पिता से मांगूँगा और वे दूसरे सहायक को तुम्हारे साथ सदा निवास करने लिए भेजेंगे। (यो.14:16)

"यह सामार्थ्य का आत्मा है, आराम देनेवाला आत्मा है जो हमें दुनिया के रास्ते पर चलने और सुसमाचार का प्रचार करने हेतु बल देता है। पवित्र आत्मा हमें क्षितिज दिखाता है और हमें सुदूर इलाकों में येसु ख्रीस्त की घोषणा करने के लिए ले चलता है।

आइये हम अपने आप से पूछें कि क्या हम अपने आप में और अपने दल में बंद रहना चाहते हैं या क्या हम कलीसिया के मिशन हेतु पवित्र आत्मा की प्रेरणा ग्रहण करने को तैयार हैं?

आज की धर्मविधि एक महान प्रार्थना है जिसमें कलीसिया येसु के साथ मिलकर पिता ईश्वर को पुकारती है कि वे पवित्र आत्मा को हम पर भेज कर हमें नवीन कर दें। हम में से प्रत्येक जन, प्रत्येक दल और अभियान कलीसिया के साथ मिलकर पिता से इसी वरदान के लिए प्रार्थना करे, जिस प्रकार कलीसिया ने अपने आरम्भिक समय में माता मरियम के साथ मिलकर प्रार्थना की थी- आ, पवित्र आत्मा हमारे हृदय को विश्वास से भर दे और प्रेम की अग्नि हमारे हृदयों में सुलगा।"








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