पास्कल बेलॉन का जन्म स्पेन के आरागॉन प्रान्त के
तोर्रेहेरमोसा में 24 मई सन् 1540 ई. को हुआ था। प्रेरितों पर पवित्र आत्मा के अवतरण
महापर्व यानि पेन्तेकॉस्त के दिन उनका जन्म हुआ था इसीलिये उनका नाम पास्कल रख दिया गया
था। पास्कल के पिता का नाम मार्टिन बेलॉन तथा माता का नाम एलीज़ाबेथ जुबेरा था। वे निर्धन
किसान थे इसलिये पास्कल ने अपना बाल्यकाल एवं किशोरावस्था एक चरवाहे रूप में ही व्यतीत
किया था। भेड़ों को चराते समय वे अपने साथ एक पुस्तक लिये रहते थे तथा गुज़रनेवालों से
आग्रह किया करते थे कि वे उन्हें पढ़ना सिखा दें। इस तरह पढ़ना सीख लेने के बाद वे धर्म
सम्बन्धी पुस्तकें पढ़ने लगे थे।
लगभग सन् 1564 ई. में वे सुधारित फ्राँसिसकन
धर्मसमाज में भर्ती हो गये तथा वहाँ चौकीदार का काम करने लगे। उन्होंने धर्मसमाज में
भी निर्धनता का जीवन यापन किया तथा आजीवन कठोर श्रम, प्रार्थना एवं बाईबिल अध्ययन करते
रहे। पास्कल बेलॉन एक चिन्तनशील एवं रहस्यवादी काथलिक भिक्षु थे जो कई बार भाव समाधि
में चले जाते थे। कई रातें वे वेदी के समक्ष घुटने टेककर बिता दिया करते थे। साधुता का
जीवन व्यतीत करने के साथ साथ पवित्र यूखारिस्त के प्रति उनकी भक्ति प्रगाढ़ थी यहाँ तक
कि एक बार फ्राँस की यात्रा करते समय उनके और एक केलव्निस्ट उपदेशक के बीच यूखारिस्त
में प्रभु येसु की उपस्थिति पर गहन वाद विवाद छिड़ गया। इसके लिये भिक्षु पास्कल को केलव्निस्ट
उपदेशक के रोष का सामना भी करना पड़ा।
स्पेन स्थित विलारेआल के मठ में धर्मबन्धु
पास्कल बेलॉन का निधन, 17 मई सन् 1592 ई. को, हो गया था। सन् 1690 ई. में उन्हें सन्त
घोषित किया गया था। सन्त पास्कल बेलॉन का पर्व 17 मई को मनाया जाता है।
चिन्तनः
"प्रज्ञा का मूल स्रोत प्रभु पर श्रद्धा है। बुद्धिमानी परमपावन ईष्वर का ज्ञान है; क्योंकि
मेरे द्वारा तुम्हारे दिनों की संख्या बढ़ेगी और तुम्हारी आयु लम्बी होगी। यदि तुम प्रज्ञ
हो, तो उस से तुम को लाभ होगा। यदि तुम अविश्वासी हो, तो उस से तुम्हें हानि होगी" (सूक्ति
ग्रन्थ 9:10-12)।