वाटिकन सिटीः "शैतान लोगों को स्वार्थी, निर्मोही बना देता है", सन्त पापा फ्राँसिस
वाटिकन सिटी, 15 मई सन् 2013 (सेदोक): "शैतान लोगों को स्वार्थी एवं निर्मोही बनने के
लिये प्रेरित करता तथा अन्ततः उन्हें अकेला छोड़ देता है", यह बात सन्त पापा फ्राँसिस
ने, 14 मई को वाटिकन स्थित सन्त मर्था आवास के प्रार्थनालय में कही। वाटिकन संग्रहालय
के कर्मचारियों के लिये मंगलवार को ख्रीस्तयाग अर्पण के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त
पापा ने कहा कि स्वार्थी लोग देने का आनन्द नहीं समझ पाते हैं। येसु के साथ विश्वासघात
करनेवाले शिष्य यूदस इसकारियोती का उदाहरण देकर सन्त पापा ने कहा कि यूदस ने जब मरियम
द्वारा येसु के पाँव में विलेपित मंहगे तेल की शिकायत की थी तब उसने यह दर्शा दिया था
कि वह आत्मकेन्द्रित था। वह किसी अन्य के बारे में नहीं केवल अपने बारे में सोचता था।
सन्त योहन रचित सुसमाचार के अनुसार यूदस को निर्धनों परवाह नहीं थी इसके विपरीत वह
ख़ुद के लिये धन की चाह रखता था तथा निर्धनों के लिये एकत्र अंशदान की चोरी करता था।
सन्त पापा ने कहा कि सन्त योहन रचित सुसमाचार में वर्णित बातें हमें बताती हैं कि धन
के प्रति यूदस का व्यवहार एक प्रकार की मूर्तिपूजा थी। सन्त पापा ने कहा कि निर्धनता
को एक विचारधारा या सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत करनेवाला, सुसमाचार में निहित यह पहला
सन्दर्भ है। उन्होंने कहा कि सिद्धान्तवादी को यह नहीं पता कि प्रेम क्या होता है क्योंकि
उसने कभी भी देना नहीं जाना है। सन्त पापा ने कहा कि यूदस की तरह ही स्वार्थी व्यक्ति
"केवल अपने बारे में सोचता, वह अहंकार में विकसित होता रहता तथा विश्वासघाती बन जाता
है किन्तु सदैव अकेला रहता है।" उन्होंने कहा कि जब ख्रीस्तीय धर्मानुयायी अपने आप
को अन्यों से अलग रखने लगता है तब उसका अन्तःकरण भी समुदाय और कलीसिया की भावना से अलग
हो जाता और अन्ततः येसु के प्रेम से अलग हो जाता है। दूसरी ओर, केवल देने में और येसु
के शब्दों में "अपने आप को खो देने में ही" ख्रीस्तीय धर्मानुयायी जीवन की विपुलता और
परिपूर्णता को प्राप्त करता है।