नई दिल्लीः शिक्षा विधान अधिकारों का उल्लंघन, कलीसियाई अधिकारी
नई दिल्ली, 14 मई सन् 2013 (ऊका समाचार): भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की शिक्षा
समिति के अनुसार सबके लिये सार्वभौमिक शिक्षा का आश्वासन देने हेतु तीन वर्षों पूर्व
भारतीय सरकार द्वारा प्रस्तावित विधान अल्पसंख्यकों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है
इसलिये इसे संशोधित किये जाने की आवश्यकता है। हाल ही में भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय
सम्मेलन की शिक्षा समिति के सचिव धर्माध्यक्ष जोशषुआ मार इग्नेशियस के नेतृत्व में भारत
के विभिन्न प्रान्तों के शिक्षा सचिव एक ज्ञापन पत्र तैयार करने हेतु नई दिल्ली में एकत्र
हुए थे ताकि राईट टू एजूकेशन अधिनियम में संशोधन पर सुझाव रखे जा सकें। सन् 2009
में पारित "राईट टू एजूकेशन" अधिनियम छः वर्ष की आयु से 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों
के लिये शिक्षा को अनिवार्य बनाता है तथा बच्चों के लिये 25 प्रतिशत सीटें उपलभ्य बनाने
हेतु निजी स्कूलों को बाध्य करता है। अल्पसंख्यक स्कूलों के काथलिक अधिकारियों का
कहना है कि काथलिक एवं अन्य अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाएँ, बच्चों की शिक्षा के लिये, अधिनियम
की मांगों से भी बहुत अधिक कर रही हैं इसलिये उन्हें 25 प्रतिशत सीटें सुरक्षित रखने
के लिये बाध्य करना सरासर ग़लत एवं संविधान में निहित अल्पसंख्यक संस्थाओं के अधिकारों
का उल्लंघन है। मानव संसाधन एवं विकास सम्बन्धी संसदीय समिति के अध्यक्ष ऑस्कर फेरनानडेज़
भी काथलिक स्कूलों के अधिकारियों की बैठक में शामिल थे जिन्होंने आश्वासन दिया है कि
वे अल्पसंख्यकों के सुझावों को संसदीय समिति के समक्ष रखेंगे। श्री फरनाडेज़ ने कहा
कि वे इस बात के प्रति सचेत हैं कि अल्पसंख्यक ख्रीस्तीय संस्थाएँ समाज के निर्धन एवं
कमज़ोर वर्गों के हित में सराहनीय योगदान दे रही हैं।