पास्का के 6वें रविवार को संत पापा फ्राँसिस के उपदेश।
वाटिकन सिटी, सोमवार, 6 मई 2013 (वीआर सेदोक): रोम स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के
प्राँगण में, रविवार 5 मई को पवित्र ख्रीस्तयाग के दौरान अपने उपदेश में उपस्थित भक्त
समुदाय को संत पापा फ्राँसिस ने कहा: अति प्रिय भाईयो एवं बहनों,
कलीसिया
में विश्वास वर्ष की यात्रा के दौरान कॉनफ्रेटरनिटी या भ्रात्रृसंघ दिवस के अवसर पर इस
पावन यूखरिस्त बलिदान को मैं सहर्ष अपर्ण करता हूँ। जिसमें इस समय नवीन एवं पुनराविष्कार
का अनुभव हो रहा है। मैं आप सभी का हार्दिक अभिवादन करता हूँ विशेष रुप से पूरी दुनिया
से यहाँ एकत्र हुए कॉनफ्रेटरनिटी या भ्रात्रृसंघ के सदस्यों को। आपकी उपस्थिति एवं साक्ष्य
के लिए धन्यवाद।
रविवारीय पाठ जो योहन रचित सुसमाचार में अंतिम ब्यारी से जुड़ा
येसु का विदाई प्रवचन है। जिसमें येसु अपने शिष्यों से विदा लेने के पूर्व अपने अंतिम
विचार एक अध्यात्मिक व्यवस्थान रुप में उन्हें सौंपते हैं।
संत पापा ने कहा
कि ख्रीस्तीय विश्वास पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा तीनों के बीच संबध पर केंद्रित है।
अतः जो येसु को प्यार करता है वह उनका और पिता का स्वागत करता, पवित्र आत्मा को धन्यवाद
देता तथा सुसमाचार को अपने हृदय और जीवन में स्वीकार करता है। ईश्वर को प्यार करना एवं
सुसमाचार को जीते हुए ख्रीस्त का शिष्य बनना, इसी से हमारा ख्रीस्तीय विश्वास संचालित
होता है। संत पापा ने सेवा निवृत संत पापा बेनेडिक्त 16वें की बातों को लाते हुए कहा
कि उन्होंने इसी सुसमाचारी भावना को प्रकट करने का प्रयास किया है।
संत पापा
ने भ्रात्रृसंघ के सदस्यों को संबोधित कर कहा, प्रिय भाईयो एवं बहनों जिस लोकप्रिय भक्ति
पद्धति के महत्वपूर्ण चिन्ह आप हैं वह कलीसिया का एक बहुमूल्य ख़जाना है। जिसे लातिनी
अमरीकी धर्माध्यक्षों ने इस प्रकार परिभाषित किया है, "एक अर्थपूर्ण, आध्यत्मिक, राहस्यात्मक
और येसु से मिलने का स्थान।" अपने आध्यात्मिक प्रशिक्षण, व्यक्ततिगत एवं सामुदायिक प्रार्थना,
तथा पूजन पद्धति के द्वारा निरंतर प्रसृत होने वाले झरने येसु ख्रीस्त से बल प्राप्त
कर अपने विश्वास को मजबूत करें। सदियों से भ्रातृसंघ पवित्रता के लिए अग्रणी है
जिन्होंने सादगी के जीवन द्वारा अनेक लोगों को प्रभु के साथ गहन रिश्तें में जीवन व्यतीत
करने का अवसर दिया है। आप पवित्रता के मार्ग में दृढ़निश्चय होकर कर आगे बढ़े। मामूली
ख्रीस्तीय जीवन जीकर संतुष्ट न रहें पर ख्रीस्त के सर्वोत्तम प्यार के लिए सदा उदीप्त
रहें। संत पापा ने उपदेश के प्रथम भाग में प्रेरित चरित से लिए गये पाठ का अर्थ समझाते
हुए कहा कि यह पाठ उत्तम चुनाव करने की शिक्षा देता है। प्रारम्भिक कलीसिया में तत्काल
यह निर्णय करने की आवश्यकता थी कि ख्रीस्तीयों के लिए ख्रीस्त का अनुसरण करने में कौन
सी बात अनिवार्य है और कौन सी बात अनिवार्य नहीं।
अतः प्रेरित एवं कलीसिया
के अध्यक्षों ने पहली बार येरुसालेम में एक महत्वपूर्ण सभा बुलाई जिसको "कौंसिल" कहा
गया इसका अभिप्राय था; अख्रीस्तीयों और यहूदी समाज से बाहर के लोगों के बीज सुसमाचार
के प्रचार के बाद जो समस्या खड़ी हो गयी थी उसका समाधान करना।
यह आपस में अच्छी
समझदारी लाने का एक सुन्दर अवसर था कि येसु के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात
है- येसु ख्रीस्त में विश्वास, जो हमारे पापों के लिए क्रूस पर मर गये तथा जी उठे, साथ
ही उनके अनुयायियों को चाहिए कि वे आपस में उसी तरह प्यार करें जैसे येसु ने किया। किन्तु
इतिहास बतलाता है कि कलीसिया में कई कठिनाईयाँ सामने आयीं। येरुसालेम की इस सभा ने
एक महत्वपूर्ण बात को हमारे बीच लाया, जैसे संत पापा बेनेडिक्ट 16वें ने भी किया है वह
है ‘कलीसियाई भावना’। लोकप्रिय भक्ति पद्धति एक रास्ता है जो कलीसिया में धर्माध्यक्षों
की एकता में हमें बनाये रखता है जो हमारे लिए आवश्यक भी है।
प्रिय भाईयो एवं
बहनों कलीसिया आपको प्यार करती है। कलीसियाई समुदाय में एक सजीव एवं जीवित पत्थर की तरह
क्रियाशील उपस्थित हों। लातीनी अमरीका के धर्माध्यक्ष ने लिखा है कि लोकप्रिय धर्मपरायणता
जिसको आप "विश्वास को जीने का एक उचित रास्ता रुप में प्रदर्षित करते हैं। यह एक ऐसा
अनुभव है जो कलीसिया का सदस्य होने का ऐहसास देता है।" कलीसिया को प्यार करें और कलीसिया
को अपना संचालन करने दें। अपने पल्ली और धर्मप्रांत में विश्वास और ख्रीस्तीय जीवन के
सच्चे माध्यम बनें।
संत पापा ने उपस्थित सभी विश्वासियों से कहा, इस प्रांगण
में मैं अनेक रंगों और चिन्हों को देख रहा हूँ। कलीसिया के साथ भी यही स्थिति है जो एक
बड़ा ख़जाना है अनेक होते हुए भी हम ख्रीस्त में एक है।
संत पापा ने अपने उपदेश
के तीसरे भाग में प्रेरितिक मनोभाव पर बल देते हुए कहा, "आप के लिए एक विशिष्ठ और महत्वपूर्ण
प्रेरिताई यह है कि आप जहाँ कहीं रहते हैं वहाँ के लोगों की आस्था एवं संस्कृति के बीच
संबंध को लोकप्रिय भक्ति पद्धति के द्वारा जीवित बनाये रखें। उदाहरण के लिए; यदि आप जूलुस
में क्रूस को बड़े ही आदर भाव और ईश्वरीय प्रेम से ढोते हैं तो वाह्य तौर पर आप एक साधारण
कार्य नहीं कर रहे हैं आप इसके द्वारा ख्रीस्त के पास्का रहस्य( दुखभोग मृत्यु और पुनरुत्थान)
जो हमारी मुक्ति का चिन्ह है, की ओर लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। आप अपने साथ पूरे समुदाय
को याद दिलाते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन के रास्ते पर ख्रीस्त का अनुसरण करना है,
जिससे वह हमें नवीन बना दे। उसी प्रकार, यदि आप माता मरिया में पूर्ण भक्ति दिखाते
हैं, तो एक उत्तम ख्रीस्तीय जीवन को दर्शाते हैं जिसने अपने विश्वास एवं ईश्वर की इच्छा
का पालन तथा येसु के पवित्र वचन एवं कार्यों पर मनन चिंतन किया। यथार्थ में वह ईश्वर
की आदर्श शिष्य है।(लुमेन जेनसियुम, 53)। आपने ईश्वर की वाणी जो सुना और उसे विभिन्न
अनुभवों, भावनाओं और विभिन्न संस्कृतियों के प्रतीकों के द्वारा प्रकट करते हैं। ऐसा
करने के द्वारा आप दूसरों को विश्वास को जीने में मदद करते हैं, विशेष कर दीन दुःखियों
को जिन्हें सुसमाचार में येसु "दीन-हीन" की संज्ञा देते हैं। व्यवहारिक तौर पर बच्चों
और दूसरे लोगों के साथ मिलकर गिरजा जाना लोकप्रिय भक्तिपद्धति द्वारा अन्य विश्वासियों
के लिए अपने आप में एक प्रेरिताई है। आप भी एक सच्चे प्रेरित बनकर लोगों को ख्रीस्त
से जुड़ने का माध्यम बनें। इस उदार भावना से आप हमेंशा सक्रिय और भरपूर हों तथा कठिनाईयों
में पड़े लोगों के लिए ईश्वर के प्रेम एवं करुणा के वाहक बनें।
संत पापा ने
उपदेश के अंत में विश्वसियों से आग्रह करते हुए कहा, "सुसमाचारी, कलीसियाई और प्रेरितिक
भावना को बनाये रखें" तथा प्रार्थना की कि ईश्वर कलीसिया के एक जीवित स्तम्भ की तरह हमेशा
हमारे मन और दिल का संचालन करे, जिससे हमारे कार्य और हमारा सम्पूर्ण ख्रीस्तीय जीवन
उनकी दया और प्रेम का प्रकाशमान साक्ष्य बने। इस प्रकार हम नवीन येरुसालेम की ओर हमारी
तीर्थयात्रा में पहुँच सकें, जहाँ न कोई मंदिर है और न मेमना येसु स्वयं बलि मेमना हैं
तथा जहाँ सूर्य और चंद्रमा सर्वोच्च ईश्वर की महिमा करते हैं।