रोमी शहीदशास्त्र के अनुसार सन्त फ्लोरियन का पर्व
चार मई को मनाया जाता है। फ्लोरियन प्राचीन रोमन साम्राज्य की सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी
थे तथा ऑस्ट्रिया के नोरीकुम में उन्हें उच्च प्रशासनिक पद प्रदान किया गया था। दियोक्लेशियन
के राज्य में फ्लोरियन को ख्रीस्तीय विश्वास के ख़ातिर बहुत दुख उठाना पड़ा।
बताया
जाता है कि लॉर्च में जब तत्कालीन राज्यपाल आक्वीलीनुस की सेना ख्रीस्तीयों की घेराबन्दी
कर रही थी तब उन्होंने सार्वजनिक रूप से आत्मसमर्पण कर ख्रीस्त में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति
की थी। उनकी इस अभिव्यक्ति के कारण उन्हें दो बार कोड़े लगाये गये तथा अधमरा छोड़ दिया
गया। इसपर भी जब फ्लोरियन ने ख्रीस्तीय विश्वास का परित्याग नहीं किया तब उन्हें आग के
हवाले कर दिया गया तथा अन्ततः गले में पत्थर टाँग कर नदी में फेंक दिया गया।
एक
धर्मपरायण महिला ने उनका शव नदी से निकलवाया तथा उनकी दफन क्रिया करवाई। यहाँ से उनके
पार्थिव शव को ऑस्ट्रिया के लिंस नगर के निकट सन्त फ्लोरियन स्थित अगस्टीन धर्मसमाजी
मठ में स्थानान्तरित कर दिया गया। बाद में उनके पवित्र शव को रोम लाया गया। सन् 1138
ई. में सन्त पापा लूसियस तृतीय ने उनके पवित्र अवशेषों में से कुछ पौलैण्ड के राजा काज़ीमीर
तथा क्रेकाव के धर्माध्यक्ष को दे दिये थे। उस समय से ही सन्त फ्लोरियन को पौलैण्ड का
संरक्षक सन्त माना जाता है। साथ ही वे ऑस्ट्रिया के भी संरक्षक सन्त हैं। जल और अग्नि
के प्रकोप से रक्षा हेतु भी सन्त फ्लोरियन को पुकारा जाता है। सन्त फ्लोरियन का पर्व
04 मई को मनाया जाता है।
चिन्तनः भाई और पड़ोसी की सेवा को समर्पित
रहकर हम भी अपने विश्वास का साक्ष्य प्रदान करें।