इटली स्थित बॉस्को के एक श्रमिक परिवार में अन्तोनियो
गिसलियेरी का जन्म 17 जनवरी सन् 1504 ई. को हुआ था जो बाद में जाकर सन्त पापा पियुस पंचम
नाम से काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष नियुक्त किये गये थे। सन् 1566 ई. से 1572 ई. तक
अन्तोनियो गिसलियेरी काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष थे।
सन्त पापा पियुस पंचम,
मुख्यतः, ट्रेन्ट की महासभा, प्रति- सुधार आन्दोलन तथा लातीनी रीति की कलीसिया में रोमी
पूजनपद्धति के एकरूपता देने में अदा की गई भूमिकाओं के कारण जाने जाते हैं। उन्होंने
थॉमस अक्वाईनस को कलीसिया के आचार्य घोषित किया था तथा पवित्र संगीत के संगीतकार, जोवानी
पियरलूईजी दा पालेस्त्रीना द्वारा रचित भक्ति गीतों को प्रोत्साहन दिया था।
सन्त
पापा पियुस पंचम जब कार्डिनल थे, तब, उन्होंने कलीसिया के विश्वास को अक्षुण रखने का
हर सम्भव प्रयास किया तथा इसी कारण फ्राँस के आठ धर्माध्यक्षों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई
भी की। भाई भतीज़ावाद के विरुद्ध भी उन्होंने अपनी आवाज़ बुलन्द की तथा वाटिकन एवं कलीसियाई
याजकवर्ग के कई वरिष्ठ धर्माधिकारियों को फटकार बताई।
विदेशी मामलों में सन्त
पापा पियुस पंचम ने, फूट डालने तथा इंगलैण्ड के काथलिकों को उत्पीड़ित करने के लिये,
इंगलैण्ड की रानी एलीज़ाबेथ प्रथम को काथलिक धर्म से बहिष्कृत कर दिया था। सन्त पापा
पियुस पंचम की ही पहल पर काथलिक देशों का पवित्र संघ, "होली लीग", गठित हो सका था जिसने
लेपान्तो की लड़ाई में, दमनकारी ऑटोमनों पर विजय प्राप्त की थी। सन्त पापा पियुस पंचम
ने अपनी इस विजय का श्रेय माँ मरियम की मध्यस्थता को दिया तथा मरियम को समर्पित "विजय
की रानी माँ मरियम" के पर्व की स्थापना की।
22 मई सन् 1712 ई. को सन्त पापा क्लेमेन्त
11 वें ने सन्त पापा पियुस पंचम को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था। उनका
पर्व 30 अप्रैल को मनाया जाता है।
चिन्तनः स्वार्थ का परित्याग कर
हम अन्यों के लिये जियें तथा प्रतिपल प्रभु ईश्वर का गुणगान करते रहे।