वाटिकन सिटी, शुक्रवार 26 अप्रैल, 2013 (सीएनए) संत पापा फ्राँसिस न कहा, " ईसाई इसलिये
बुलाये जाते हैं ताकि वे सुसमाचार का प्रचार नम्रतापूर्ण तरीके से करें विजय के भाव से
नहीं।"
संत पापा ने उक्त बात उस समय कही जब उन्होंने 25 अप्रैल, शुक्रवार को धर्माध्यक्षीय
सिनॉद के सेक्रेटेरियेट के सदस्यों के लिये कासा सांता मार्ता में यूखरिस्तीय बलिदान
चढ़ाया।
उन्होंने कहा, "ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हम काथलिक कलीसिया के
लिये मिशनरी बनें, प्रेरित बनें पर हमारा भाव कैसा हो, हमारा भाव हो नम्रता और उदारता
का।"
संत पापा ने कहा, "कलीसिया का मिशन है सुसमाचार का प्रचार करना। पर कलीसिया
को चाहिये कि वह अकेला न जाये वह सदा येसु के साथ जाये। येसु उन सबों के साथ कार्यरत
है जो सुसमाचार का प्रचार करते हैं। प्रत्येक ख्रीस्तीय में ऐसी उदारता होनी चाहिये।"
पोप फ्राँसिस ने कहा, "डरपोक या कायर ख्रीस्तीय की कल्पना ही नहीं की जा
सकती है। ह्रदय की विशालता या उदारता सुसमाचार प्रचार के लिये ज़रूरी है जिसका अर्थ है
सदैव अधिकाधिक कार्य करना।"
सुसमाचार का प्रचार करने के लिये ज़रूरी है, नम्रता,
उदारता और भ्रातृ-प्रेम। सुसमाचार प्रचार को राज्य विस्तार या विजय के भाव से करना फलदायक
नहीं हो सकता। सच तो है कि ख्रीस्तीय अपने साक्ष्य द्वारा धर्मप्रचार करते हैं।
ख्रीस्तीय
सैनिकों के समान नहीं हैं जो लड़ाई जीतते हैं और सब कुछ की सफाई कर देते हैं।ख्रीस्तों
की बुलाहट है, नम्रतापूर्ण जीवन।
उन्होंने कहा, "कलीसिया की जीत है येसु का पुनरुत्थान
पर इसके पहले क्रूस उठाने की ज़रूरत होती है।"