ख्रीस्तीय धर्म के शहीद सन्त जॉर्ज के जन्म की
तिथि पर इतिहासकारों में विवाद बना हुआ है किन्तु इतना तो निश्चित्त ही है कि उनका जन्म
सन् 275 ई. से 281 ई. के बीच फिलीस्तीन के कप्पादोसिया में हुआ था। वे रोमी सम्राट दियोक्लेशियन
की सेना में कार्यरत एक सैनिक थे।
"जॉर्ज एण्ड द ड्रैगन" अर्थात् जॉर्ज एवं परदारसर्प
की गाथा के लिये सन्त जॉर्ज विख्यात हैं। किंवदन्ती है कि एक दिन जॉर्ज अपने घोड़े पर
सवार लिबिया जा रहे थे। रास्ते में वे सेलेने नामक नगर से गुज़रे। इस नगर के लोग एक परदार
सर्प से अत्यधिक परेशान थे जो अपनी सांस से ज़हर उगला करता था तथा लोगों का वध किया करता
था। परदार सर्प को खुश करने के लिये लोग उन्हें भेड़ों की बलि चढ़ाया करते थे किन्तु
इससे भी वह सन्तुष्ट नहीं हुआ और मानव बलि मांगने लगा। जिस दिन जॉर्ज सेलेने से गुज़र
रहे थे तब लोग राजा की पुत्री को बलि के लिये जा रहे थे। जॉर्ज अचानक घटनास्थल पर पहुँच
गये। उन्होंने राजकुमारी को परदार सर्प से छुड़ाया तथा भाले की नोक से परदार सर्प पर
वार कर सेलेने के लोगों को मुक्ति दिलाई।
एक साहसी योद्धा होने के साथ साथ जॉर्ज
विश्वास के धनी धर्मी पुरुष भी थे। सन् 302 ई. में रोमी सम्राट दियोक्लेशियन ने एक आदेश
पत्र जारी कर ख्रीस्तीय सैनिकों को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया था। सम्राट ने सैनिकों
को ख्रीस्तीय धर्म के परित्याग के लिये बाध्य किया तथा उनसे रोमी देवी देवताओं की पूजा
करवाई। जॉर्ज इससे सहमत नहीं हुए जिसके लिये सम्राट ने उन्हें कई प्रलोभन दिये किन्तु
जॉर्ज ख्रीस्त में अपने विश्वास पर अटल रहे इसलिये सम्राट ने उन्हें काल कोठरी में भिजवा
दिया। क़ैद में एक वर्ष तक जॉर्ज अपार कष्ट और यातनाएँ झेलते रहे किन्तु ख्रीस्त में
अपने विश्वास का उन्होंने परित्याग नहीं किया। सन् 303 ई. में सिर धड़ से अलग कर उन्हें
मार डाला गया। काथलिक कलीसिया सहित पश्चिम की अनेक कलीसियाओं तथा पूर्वी रीति की कलीसियाओं
द्वारा सन्त जॉर्ज की भक्ति की जाती है। यूरोप, रूस तथा मध्यपूर्व के कई देशों के वे
संरक्षक सन्त हैं। 23 अप्रैल सन् 303 ई. को जॉर्ज ने शहादत प्राप्त की थी। उनका पर्व
23 अप्रैल को ही मनाया जाता है।
चिन्तनः प्रभु ख्रीस्त में
अपने विश्वास को सुदृढ़ कर हम भी सन्त जॉर्ज के सदृश शैतान तथा उसके प्रलोभनों पर विजय
प्राप्त करें।