प्रेरक मोतीः मोन्टेपुलच्यानो की सन्त एग्नेस (1268-1317)
वाटिकन सिटी, 20 अप्रैल सन् 2013
एग्नेस का जन्म इटली के मोन्टेपुलच्यानो के एक
कुलीन सेन्यी परिवार में, सन् 1268 ई. में, हुआ था। नौ वर्ष की आयु में ही उन्होंने दोमिनिकन
धर्मबहनों के मठ में प्रवेश पा लिया था।
सन् 1281 ई. में जब एग्नेस केवल 13
वर्ष की थी तब ओरवियेत्तो के सामन्त ने मोन्टेपुलच्यानो की धर्मबहनों को, समर्पित जीवन
यापन की इच्छुक युवतियों के लिये, एक मठ की स्थापना के बुलाया। नये समुदाय की रचना हेतु
मोन्टेपुलच्यानो से भेजी गई धर्मबहनों में एग्नेस भी शामिल थी।
सन् 1288 ई.
में, 20 वर्ष की आयु में ही एग्नेस को इस नये समुदाय की अध्यक्षा नियुक्त कर दिया गया।
अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा एवं धर्मपरायणता के कारण एग्नेस अपने समुदाय के लिये ही नहीं अपितु
सम्पूर्ण ओरवियेत्तो के लोगों के लिये पवित्रता की आदर्श सिद्ध हुई। बताया जाता है कि
उनकी चंगाई प्रार्थनाओं से कई रोगी ठीक हुए, कई विक्षिप्त लोगों ने मानसिक चंगाई प्राप्त
की। उनके चमत्कारों के विषय में बताया जाता है कि अनेक अवसरों पर उन्होंने सुसमाचार के
चमत्कार के सदृश थोड़ी सी रोटियों और मछलियों से बहुत लोगों को भोजन कराया।
सन्
1306 ई. के आसपास एग्नेस ने इटली के ग्रेच्च्यानो में धर्मबहनों के लिये एक मठ की स्थापना
की तथा सन् 1317 ई. में, अपनी मृत्यु तक, इसी मठ में रहीं। बताया जाता है कि उनका पार्थिव
शरीर बिलकुल भी भ्रष्ट नहीं हुआ तथा उनके हाथ पाँव से एक सुगन्धित तरल पदार्थ निकला करता
था।
सियेना की सन्त काथरीन ने एग्नेस का विवरण लिखते समय उन्हें "वैभवशाली एग्नेस
हमारी माता" शीर्षक से सम्मानित किया है।
सन् 1726 ई. में मोन्टेपुलच्यानो
की एग्नेस को सन्त पापा बेनेडिक्ट 13 वें ने सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया
था। 20 अप्रैल को मोन्टेपुलच्यानो की एग्नेस का पर्व मनाया जाता है।
चिन्तनः
ईश्वर की बुलाहट को सुनने के लिये हम सतत् प्रार्थना करें ताकि समर्पित जीवन यापन कर
सबके लिये पवित्रता का आदर्श बन सकें।