2013-04-18 16:06:36

एशिया में ईशवचन का प्रत्युत्तर स्पष्ट नहीं


रोम, वृहस्पतिवार 18 अप्रैल, 2013(सेदोक, वीआर) सुसमाचार के लिये बनी परिषद् के प्रीफेक्ट कार्डिनल फरनन्दो फिलोनी ने कहा, "शिक्षा, गरीबों की सेवा और मानवाधिकारों की रक्षा के क्षेत्र में एशिया की कलीसिया ने उल्लेखनीय कार्य किये हैं पर एशिया के लोगों ने ईशवचन का प्रत्युत्तर स्पष्ट रूप से नहीं दिया है।" सुसमाचार प्रचार के लिये बने परिषद् के अध्यक्ष कार्डिनल फरनन्दो फिलोनी उक्त बात उस समय कही जब उन्होंने रोम स्थित पोन्तिफिकल युनिवर्सिटी उरबानिया में 15 से 17 तक चल रहे तीन दिवसीय सेमिनार में का उद्घाटन किया। सेमिनार की विषय वस्तु थी "एशिया में सुनना, विश्वास समुदायों के तरीके, परंपरागत धर्म और आधुनिकता। "उन्होंने कहा, "उन्होंने वाटिकन की 30 वर्षीय सेवा में से करीब 20 वर्ष एशियाई देशों में बिताया है विशेष कर के मध्यपूर्वी एवं दूरपूर्वी राष्ट्रों और भारत के मुस्लिमों, हिन्दुओ, बौद्धों और कन्फ्यूनिस धर्मावलंबियों के बीच कार्य किया है पर इस संबंध में कभी भी संतोषजनक उत्तर नहीं पाया है। उन्होंने धन्य संत पापा जोन पौल के अपोस्तोलिक प्रबोधन ‘एकलेसिया इन एशिया’ 1999, को उद्धृत करते कहा कि इसमें लिखा है "एशिया की कलीसिया ईश्वरीय मुक्ति की गीत गाती और इसकी प्रशंसा करती है क्योंकि ईश्वर ने मुक्ति की योजना का आरंभ एशिया की पावन धरती पर ही किया।" उन्होंनो कहा,"सच पूछा जाये तो यह एशिया महादेश ही है, जहाँ से ईश्वर ने अपनी मुक्ति योजना की शुरुआत की और इसे पूर्ण भी किया। उन्होंने कहा कि संत पापा ने फिलीपींस की राजधानी मनीला में इस बात की याद दिलायी थी कि जैसा के प्रथम सहस्राब्दि में यूरोप की धरती पर क्रूस रोपा गया था, द्वितीय सहस्त्रब्दि में अमेरिका और अफ्रीका में, उसी प्रकार तीसरी सहस्त्राब्दि में उम्मीद की जाती है कि एशिया महादेश के विस्तृत क्षेत्र से विश्वास का फल प्राप्त होगा।" कार्डिनल फिलोनी ने आशा व्यक्त की है अधिवेशन में ‘समाज और धर्म’ तथा ‘परंपरा और आधुनिकता’ पर विचार करने के फलस्वरूप एशिया में सुसमाचार के अनुसार लोगों की उचित सेवा की जा सकेगी।







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