2013-04-15 12:10:04

वाटिकन सिटीः स्वर्ग की रानी प्रार्थना से पूर्व सन्त पापा फ्राँसिस का चिन्तन


वाटिकन सिटी, 15 अप्रैल सन् 2013 (सेदोक): रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में, रविवार 14 अप्रैल को, मध्यान्ह, स्वर्ग की रानी प्रार्थना से पूर्व, तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों के समुदाय को सम्बोधित कर सन्त पापा फ्राँसिस ने कहाः

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, शुभ प्रभात!

पास्का महापर्व के तीसरे रविवार के लिये निर्धारित प्रेरित चरित ग्रन्थ के पाठ पर मैं तनिक चिन्तन करना चाहूँगा। यह पाठ बताता है कि जैरूसालेम में प्रेरितों के प्रथम उपदेश ने सम्पूर्ण नगर में इस समाचार का प्रसार किया येसु सचमुच में जी उठे थे, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है तथा वे ही वह मसीहा थे जिनकी घोषणा नबियों द्वारा की गई थी। नगर के महायाजकों एवं शासकों ने ख्रीस्त में विश्वास करनेवाले समुदाय को उसके प्रारम्भ में ही भंग कर देना चाहा था तथा प्रेरितों को बन्दीगृहों में डालकर उन्हें येसु के नाम पर शिक्षा देने से मना कर दिया था। किन्तु पेत्रुस एवं 11 अन्यों ने उत्तर दियाः "मनुष्यों के बजाय ईश्वर की आज्ञा का पालन करना चाहिये। हमारे पूर्वजों के पिता ईश्वर ने येसु को पुनर्जीवित किया है...... उन्होंने उन्हें शासक तथा मुक्तिदाता का उच्च पद दे कर अपने दाहिने बैठा दिया है...... इन बातों के साक्षी हम हैं और पवित्र आत्मा भी" (प्रे.चरित 5, 29-32)। इसपर वे क्रुद्ध हुए और उन्होंने प्रेरितों को कोड़े लगवाये तथा उन्हें पुनः आदेश दिया कि वे येसु के नाम में धर्मशिक्षा नहीं दें। 41 वाँ पद बताता है कि वे वहाँ से चले गये "प्रेरित आनन्दित हो कर महासभा से चले गये इसलिये कि वे येसु के नाम के कारण अपमानित होने योग्य समझे गये।"

सन्त पापा ने आगे कहाः "मैं पूछता हूँ: प्रथम प्रेरित साक्ष्य देने हेतु कहाँ से शक्ति प्राप्त कर रहे थे? केवल यही नहीं: कहाँ से उनमें आनन्द प्रस्फुटित हो रहा था और इतने अधिक अवरोधों एवं हिंसा के बावजूद कहाँ से उन्हें उदघोषणा के लिये साहस मिल रहा था? हम यह न भूलें कि प्रेरित लोग साधारण मनुष्य थे, वे न तो शास्त्री थे और न ही कानून के विद्धान, वे याजकवर्ग के भी नहीं थे। अपनी सीमाओं तथा शासकों के विरोधों के बावजूद उन्होंने कैसे जैरूसालेम के कोने कोने को अपनी शिक्षाओं से भर दिया था (दे. प्रे.चरित 5,28)? यह बिलकुल स्पष्ट है कि केवल पुनर्जीवित प्रभु ख्रीस्त की उनके बीच उपस्थिति तथा पवित्रआत्मा की सक्रियता इस तथ्य को समझा सकती है। उनका विश्वास प्रभु ख्रीस्त की मृत्यु एवं उनके पुनरुत्थान के गहन एवं वैयक्तिक अनुभव पर इतना आधारित था कि उन्हें न तो किसी चीज़ का और न ही किसी व्यक्ति का भय था, यहाँ तक कि उत्पीड़न को भी वे गौरव का कारण मानने लगे थे, जो उन्हें येसु एवं उनके प्रतिरूप के पदचिन्हों पर चलने तथा अपने जीवन द्वारा साक्ष्य देने में सक्षम बनाता था।

सन्त पापा ने आगे कहाः "प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय का इतिहास हमें एक अत्यन्त महत्वपूर्ण बात बताता है जो हर युग की कलीसिया के लिये युक्तियुक्त है, हमारे लिये भीः जब कोई व्यक्ति सचमुच में येसु ख्रीस्त को जानता है तथा उनमें विश्वास करता है तब वह जीवन में उनकी उपस्थिति का अनुभव करता है, वह पुनरुत्थान की शक्ति का अनुभव पाता है तथा इस अनुभव को अन्यों में बाँटें बिना नहीं रह सकता। अस्तु, यदि अनुभव प्राप्त करनेवाले इस व्यक्ति के रास्ते पर ग़ैरसमझदारी एवं अवरोध आते हैं तो वह वैसा व्यवहार करता है जैसा येसु ने अपने दुखभोग के अवसर पर किया थाः वह प्रेम एवं सत्य की शक्ति से परिपूर्ण होकर प्रत्युत्तर देता है।"

अन्त में सम्पूर्ण भक्त समुदाय को स्वर्ग की रानी प्रार्थना के पाठ के लिये आमंत्रित कर सन्त पापा ने कहाः "एक साथ मिलकर "स्वर्ग की रानी प्रार्थना" के पाठ द्वारा हम पवित्रतम मरियम से सहायता की याचना करें ताकि सम्पूर्ण विश्व के समक्ष, निस्संकोच एवं साहसपूर्वक, प्रभु येसु के पुनरुत्थान की उदघेषणा करें तथा भ्रातृत्व प्रेम के चिन्हों द्वारा इसका साक्ष्य प्रस्तुत करें। भ्रातृत्व प्रेम वह साक्ष्य है जिसके द्वारा हम बता सकते हैं कि जीवन्त येसु हमारे साथ हैं, कि येसु पुनः जी उठे हैं। हम सब मिलकर उन ख्रीस्तीयों के लिये प्रार्थना करें जो उत्पीड़न एवं अत्याचारों के शिकार हैं; इस समय विश्व के अनेकानेक देशों में अनेक ऐसे ख्रीस्तीय धर्मानुयायी हैं जो उत्पीड़न का शिकार हैं। उनके लिये हम, हृदय की अतल गहराई से, प्रार्थना करें। हमारी मंगलकामना है कि वे पुनर्जीवित प्रभु की जीवन्त एवं सान्तवनादायी उपस्थिति को महसूस कर सकें।"

इतना कहकर सन्त पापा फ्राँसिस ने उपस्थित भक्त समुदाय के साथ स्वर्ग की रानी आनन्द मना प्रार्थना का पाठ किया तथा सबपर प्रभु ईश्वर की शांति का आह्वान कर सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

स्वर्ग की रानी प्रार्थना के उपरान्त सन्त पापा ने देश विदेश से एकत्र तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों का अभिवादन किया। सर्वप्रथम वेनिस में शनिवार को धन्य घोषित डॉन लूका पास्सी के विश्वासपूर्ण साक्ष्य के लिये उन्होंने प्रभु ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। तदोपरान्त इटली में, येसु के पवित्रतम हृदय को समर्पित काथलिक विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों एवं छात्रों के प्रति मंगलकामनाएँ अर्पित की।

उन्होंने कहाः ...... आज इटली में, "संकट के परे नई पीढ़ियाँ" शीर्षक के अन्तर्गत पवित्रतम हृदय को समर्पित काथलिक विश्वविद्यालयीन दिवस मनाया जा रहा है। फादर अगस्टीन जेमेल्ली के मनोमस्तिष्क से प्रस्फुटित तथा अनेक लोगों के समर्थन से स्थापित इस शिक्षण संस्थान ने हज़ारों लाखों युवाओं को सक्षम एवं ज़िम्मेदार नागरिक बनने तथा जनकल्याण हेतु काम करने में मदद प्रदान की है। सभी लोगों से मैं निवेदन करता हूँ कि वे इस शिक्षण संस्थान को समर्थन देना जारी रखें ताकि यह नई पीढ़ियों को वर्तमानकालीन चुनौतियों का सामना करने हेतु श्रेष्ठकर प्रशिक्षण प्रदान करता रहे।"

तदोपरान्त, विभिन्न संगठनों, समुदायों, परिवारों तथा सभी उपस्थित लोगों के प्रति सन्त पापा फ्राँसिस ने सुखद रविवार एवं सुखद भोजन की हार्दिक शुभकामनाएँ व्यक्त की।










All the contents on this site are copyrighted ©.