रोम, सोमवार, 8 अप्रैल, 2013 (सीएनए) संत पापा फ्राँसिस ने कहा, "ईश्वर का असीम प्रेम
और धैर्य प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का आमंत्रण देता कि वह साहसपूर्वक उसके प्रेम को
स्वीकार करे।"
संत पापा ने उक्त बात उस समय कही जब उन्होंने 7 अप्रैल रविवार को
रोम के सान जोन दि लातेरान महागिरजाघर में आयोजित एक भव्य यूखरिस्तीय समारोह में रोम
के धर्माध्यक्ष पद पर विधिवत आसीन हुए और प्रवचन दिया।
संत पापा ने कहा, " हम
आज ईश्वर की दयालुता से भर जायें और हम उनके धैर्य पर आस्था रखें जिनके पास हमारे लिये
सदैव अधिक समय है। हम उस साहस को प्राप्त करें जो हमें उनके पास लौटने को मदद देता है
और उनके ह्रदय के निकट रखता है। हम उनके प्रेम का अनुभव करें और संस्कारों में उनकी दयालुता
का गहरा अहसास करें।"
विदित हो कि कार्यक्रम के अनुसार संत पापा रविवार 7 अप्रैल
को 5 बजकर 30 मिनट में रोम के सान जोन लातेरान महागिरजाघर पहुँचे और सबसे पहले महागिरजाघर
के प्राँगण का ‘नाम परिवर्तन समारोह’ सम्पन्न किया।
उन्होंने महागिरजाघर के प्राँगण
का नये नाम ‘धन्य जोन पौल द्वितीय प्राँगण’ बनाये जाने की घोषणा की। इसके बाद उन्होंने
विधिवत रोम के धर्माध्यक्ष के ‘कथेडरा या सीट’ ग्रहण किया।
संत पापा ने अपने
प्रवचन में कहा, "ईश्वर का प्रेम हमारे लिये इतना महान् है इतना गहरा है कि यह कदापि
विफल नहीं हो सकता। ऐसा प्यार जो हमें हाथ पकड़ कर सहारा देता, हमें उठाता और आगे ले
चलता है।"
संत पापा ने कहा, "येसु ने प्रेरित थोमस को उसके हठी अविश्वासी स्वभाव
के कारण छोड़ नहीं दिया पर एक सप्ताह का समय दिया, दरवाज़ा बन्द नहीं किया पर इन्तज़ार
करता रहा। और बाद में थोमस ने येसु के धैर्य का जवाब पूरे विश्वास के साथ दिया और कहा,
मेरे प्रभु मेरे ईश्वर।"
संत पापा ने कहा, हम ईश्वर के धैर्य और दया पर पर भरोसा
रखें। ईश्वर हमारे समान अधैर्यवान नहीं हैं। ईश्वर सबों को समय देते हैं। हम सबकुछ तुरन्त
पाना चाहते हैं।
येसु का उदाहरण देते हुए संत पापा ने कहा कि उन्होंने भी अपने
चेलों के साथ पैदल यात्रा की धैर्यपूर्वक उन्हें धर्मग्रंथ की बातों को समझाया और यूखरिस्त
उन्हें प्रदान की।
संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमारे साथ धैर्यवान बने रहते हैं
क्योंकि वे हमें प्यार करते हैं। जो प्रेम करते हैं वे इसे समझ सकते हैं वे आशा कर सकते
हैं और दूसरों को आत्मविश्वास की प्रेरणा दे सकते हैं। वे निराश नहीं होते और रिश्तों
को तोड़ते नही पर सदा क्षमा दे सकते हैं।
ईश्वर सदा स्वीकार करते, सांत्वना देते,
शुद्ध करते और हमसे प्रेम करते हैँ।