वाटिकन रेडियो, 30 मार्च सन् 2013 (स्रोतः बाईबिल, विभिन्न व्याख्याएं):
श्रोताओ,
पुण्य शुक्रवार के दिन प्रभु येसु मसीह के क्रूसमरण पर चिन्तन के उपरान्त कलीसिया ख्रीस्तीय
विश्वासियों को आमंत्रित करती है कि वे शनिवार का दिन मौन प्रार्थनाओं एवं मनन चिन्तन
में व्यतीत करें। .....................कथा....................
"हे मृत्यु कहाँ
है तेरा दंश? हे मृत्यु मैं तेरी मृत्यु होऊँगा।"
पुण्य शनिवार के दिन गिरजाघरों
में विचित्र सूनापन छाया रहता है। वेदी का प्रकोष खाली और खुला रखा जाता है। उस पर न
तो कोई आवरण होता है और न ही कोई साज सज्जा। पुष्प, अखण्ड दीप और मोमबत्तियाँ भी वेदी
से हटा ली जाती हैं। सामूहिक आराधना उपासना तथा प्रार्थना समारोहों का आयोजन भी इस दिन
नहीं होता है। रोगियों के लिये पवित्र यूखारिस्तीय प्रसाद की व्यवस्था अवश्य कर दी जाती
है किन्तु ख्रीस्तयाग अर्पित नहीं किया जाता। माता कलीसिया इस दिन विश्वासियों को मसीह
के मरण एवं दफ़न सम्बन्धी सुसमाचार पाठों पर चिन्तन हेतु आमंत्रित करती है।
क्रूस
पर येसु मसीह के प्राणोत्सर्ग के क्षण का विवरण हमें सन्त मत्ती रचित सुसमाचार में मिलता
है जिसपर चिन्तन पुण्य शनिवार के लिये उपयुक्त माना गया है। अध्याय 27, 50 से लेकर 54
तक के पदों में सन्त मत्ती लिखते हैं: "तब येसु ने ऊँचे स्वर से पुकार कर प्राण त्याग
दिये। उसी समय मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकडे’ हो गया, पृथ्वी काँप उठी,
चट्टानें फट गयीं, कब्रें खुल गयीं और बहुत-से मृत सन्तों के शरीर पुनःजीवित हो गये।
वे येसु के पुनरुत्थान के बाद कब्रों से निकले और पवित्र नगर जा कर बहुतों को दिखाई दिये।
शतपति और उसके साथ येसु पर पहरा देने वाले सैनिक भूकम्प और इन सब घटनाओं को देख कर अत्यन्त
भयभीत हो गये और बोल उठे, ''निश्चय ही, यह ईश्वर का पुत्र था''।"
क्रूसधारी मानवपुत्र
येसु ख्रीस्त की मृत्यु के क्षण जो हुआ वह वास्तव में एक अलौकिक घटना थी। वह मानवीय कृति
नहीं अपितु ईश प्रकाशना थी जिसे ईश्वर ने शतपति के मुख से अभिवेयक्ति दीः "'निश्चय ही,
यह ईश्वर का पुत्र था।"
शुक्रवार का दिन यहूदियों के पास्कोत्सव की तैयारी का
विशेष दिन था तथा शनिवार पवित्र विश्राम दिवस, अस्तु, शव को क्रूस पर छोड़ना अनुचित होता।
महासभा के प्रतिनिधियों ने पिलातुस से अनुमति प्रार्त कर शवों को क्रूस पर से उतारा तथा
प्रभु के साथ क्रूसित दो अपराधियों की हड्डियाँ चूर चूर कर दी। येसु के पास जब वे आये
तो उन्होंने देखा कि वे तो बहुत पहले से ही मृतावस्था में थे इसलिये उन्होंने भाले से
उनकी बगल छेद दी जिससे लहू और जल बह निकला। यह इसलिये हुआ कि धर्मग्रन्थ का यह कथन पूरा
हो जाये कि – "तुम उसकी एक भी हड्डी नहीं तोड़ेगे।" फिर यह कि " वे उसे छेद कर देखेंगे।"
प्रभु येसु की मृत्यु के बाद, अरिमिथिया के एक धर्मी पुरुष ने, राज्यपाल पिलातुस
से अनुमति प्राप्त कर येसु को दफनाने का प्रबन्ध किया जिसके विषय में सन्त लूकस अपने
सुसमाचार के 23 वें अध्याय के 51 से लेकर 56 तक के पदों में लिखते हैं: "महासभा का यूसुफ़
नामक सदस्य निष्कपट और धार्मिक था। वह सभा की योजना और उसके षड्यन्त्र से सहमत नहीं हुआ
था। वह यहूदियों के अरिमथिया नगर का निवासी था और ईश्वर के राज्य की प्रतीक्षा में था।
उसने पिलातुस के पास जा कर ईसा का शव माँगा। उसने शव को क्रूस से उतारा और छालटी के कफ़न
में लपेट कर एक ऐसी क़ब्र में रख दिया, जो चट्टान में खुदी हुई थी और जिस में कभी किसी
को नहीं रखा गया था। उस दिन शुक्रवार था और विश्राम का दिन आरम्भ हो रहा था। जो नारियाँ
ईसा के साथ गलीलिया से आयी थीं, उन्होंने यूसुफ़ के पीछे-पीछे चल कर क़ब्र को देखा और यह
भी देखा कि ईसा का शव किस तरह रखा गया है। लौट कर उन्होंने सुगन्धित द्रव्य तथा विलेपन
तैयार किया और विश्राम के दिन नियम के अनुसार विश्राम किया।"
पुण्य शनिवार की
मध्यरात्रि से पूर्व की घड़ियों में कलीसिया विश्वासियों के साथ पास्का जागरण करती है।
इस पावन बेला में शोकाकुल भक्त ख्रीस्त के समाधि स्थल पर एकत्र तो होते हैं किन्तु उनके
मुख पर उदासी और निराशा नहीं झलकती। इसके विपरीत प्रभु ख्रीस्त की प्रतिज्ञा को याद कर
उनका मुखमण्डल आशा रूपी किरण से दमकता रहता है। मृत्यु के बर्बर ताण्डव के पटाक्षेप के
बाद इस आशा का आख़िर क्या कारण हो सकता है??? इसका कारण स्वयं येसु के शब्द हैं, सन्त
योहन रचित सुसमाचार के 12 वें अध्याय के 24 वें पद में प्रभु येसु के शब्दों को हम इस
प्रकार पढ़ते हैं: "मैं तुम लोगो से यह कहता हूँ - जब तक गेंहूँ का दाना मिटटी में गिर
कर नहीं मर जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परंतु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता
है।"
श्रोताओ, मानवीय मापदण्ड के अनुसार भले ही येसु मसीह की पीड़ा एवं उनकी मृत्यु
को पराजय माना जा सकता है किन्तु सच तो यह है कि ईश्वरीय मुक्ति योजना के सम्पादन हेतु
यह सब अनिवार्य था जैसा कि प्रभु येसु ने स्वयं अपने शिष्यों को मृत्यु से पूर्व बता
दिया था। शिष्यों के साथ स्वयं प्रभु की माता मरियम भी इस दिव्य सत्य से परिचित थीं।
वे जानती थीं कि येसु ने पीड़ा सहने के लिये ही इस धरा पर देहधारण किया था क्योंकि उनकी
पीड़ा ही मानवजाति को पाप से मुक्ति दिला सकती थी। अपने पुत्र की इस गहन वेदना को वे
मन में सिर्फ इसलिये संजोये रहीं कि प्रभु येसु की मृत्यु वास्तव में उनकी विजय थी। वह
मृत्यु पर जीवन की विजय थी। वे जानतीं थीं कि अपने क्रूस मरण द्वारा प्रभु येसु ख्रीस्त
मृत्यु को पराजित कर हम सब के लिये अनन्त जीवन के द्वार खोल देंगे। पास्का महापर्व
से पूर्व आयोजित रात्रि जागरण के अवसर पर माता कलीसिया ख्रीस्त को हमारा पास्का अर्थात्
पार होना निरूपित करती है। स्वयं मृत्यु के बन्धन को तोड़कर जीवन में प्रवेश करनेवाले
ख्रीस्त हमें भी मृत्यु एवं पाप के बन्धन से मुक्त कर परिपूर्ण जीवन में प्रवेश के योग्य
बनाते हैं।
प्राचीन व्यवस्थान में यहूदी प्रजा पास्का मेमने के रक्त द्वारा मिस्र
देश की गुलामी को पार कर स्वतंत्र हुई थी तथा प्रतिज्ञात भूमि की ओर निकल पड़ी थी किन्तु
नवीन व्यवस्थान में कलीसिया का पास्का या पार होना व्यापक और परिपूर्ण बन गया। नये विधान
का पास्का मनुष्य को पाप की दासता से मुक्त कर सदा सर्वदा के लिये सुखद जीवन में प्रवेश
दिलाता है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि यहूदी जाति जिस प्रकार अपने बलबूते पर नहीं
अपितु ईश्वर के सामर्थ्य से मिस्र की दासता से मुक्त हुई थी उसी प्रकार नवीन व्यवस्थान
का पास्का भी मानव का कार्य न होकर प्रभु ईश्वर का कार्य है जो प्रभु येसु मसीह के अद्वितीय
बलिदान एवं पुनःरुत्थान में साकार हुआ।
स्वर्ग की ओर अभिमुख रहकर
भी ख्रीस्त का पास्का इसी धरा पर सम्पन्न हुआ। इसी धरा पर ख्रीस्त की मृत्यु ने मानव
मृत्यु को सदा सर्वदा के लिये पराजित किया क्योंकि इसी धरा पर ख्रीस्त क्रूस पर ठोके
गये, यहीं पर उन्हें कब्र में दफ़नाया गया और यहीं विश्राम दिवस के अगले दिन वे पुनर्जीवित
हुए।
मृत्यु का मूल कारण है पाप। विश्व भर की कब्रें मानव के पाप एवं पाप के
प्रतिफल अर्थात् मृत्यु का ठोस प्रमाण हैं। प्रभु येसु भी कब्र में गये किन्तु कब्र उन्हें
समा नहीं सकी; उनका वास मृतकों में नहीं वरन जीवितों के मध्य सदा सर्वदा के लिये सुनिश्चित्त
हो गया। क्रूस पर मृत्युपर्यन्त आज्ञाकारी रहकर प्रभु येसु मसीह ने अवज्ञा की प्रतिफल
मृत्यु को निष्फल एवं निष्क्रिय कर दिया। इस विचित्र एवं विलक्षण आज्ञाकारिता के समक्ष
मृत्यु ने भी घुटने टेक दिये।
ख्रीस्त का पास्का इस तथ्य को प्रमाणित करता है
कि ख्रीस्त मानव इतिहास के उस छोर तक पहुँचे जहाँ मानव की अवज्ञा के कारण पाप का प्रवेश
हुआ था। प्रेरितों के धर्मसार में कलीसिया अपने इस विश्वास की घोषणा करती हैः "ख्रीस्त
क्रूस पर चढ़ाये गये, दफ़नाये गये, वे अधोलोक में उतरे और तीसरे दिन मृतकों में से जी
उठे।" पुनःरुत्थान से पूर्व अपनी मृत्यु में प्रभु ख्रीस्त ने समस्त मृतकों का साक्षात्कार
किया तथा उनमें नवजीवन, परिपूर्ण जीवन एवं अनन्त जीवन की आशा का संचार किया।