आब्बान एक मठाध्यक्ष एवं आयरी मिशनरी थे। आयरलैण्ड
में लाईन्स्टर के राजा कोरमैक के सुपुत्र राजकुमार आब्बान के आरम्भिक जीवन के बारे में
बहुत जानकारी उपलब्ध नहीं है किन्तु उनके विषय में कहा जाता है कि राजसी ठाठ बाठ से दूर
वे सन्यासी जीवन में अत्यधिक रुचि रखते थे। इसी रुचि के चलते वे अपने चाचा ईबोर से अत्यधिक
प्रभावित थे जिन्होंने प्रार्थना एवं मनन चिन्तन को समय देने के लिये अपना सर्वस्व त्याग
कर आयरलैण्ड के एक मठ में प्रवेश कर लिया था। चाचा ईबोर बाद में जाकर सन्त ईबोर बने।
इन्हीं से मार्गदर्शन पाकर आब्बान ने भी मठवासी जीवन यापन का चयन किया तथा माता पिता
से मिली पृतक सम्पत्ति का व्यय गिरजाघरों एवं अस्पतालों के निर्माण में कर दिया। उन्होंने
आयरलैण्ड के आदमनगर में एक मठ की भी स्थापना की जो आज सन्त आब्बान को समर्पित प्रमुख
मठ है। सन् 620 ई. में आब्बान का निधन हो गया था। आयरलैण्ड के सन्त आब्बान का पर्व 16
मार्च को मनाया जाता है।
चिन्तनः सांसारिक धन वैभव वह शान्ति दिलाने में
समर्थ नहीं जो ईश्वर में मन लगाने से मिलती है।