प्रेरक मोतीः रोम की सन्त फ्राँसिसका (1384-1440) (09 मार्च)
वाटिकन सिटी, 09 मार्च सन् 2013:
फ्राँसिसका का जन्म रोम शहर के एक समृद्ध सामंत
घराने में, सन् 1384 ई. को हुआ था। 11 वर्ष की उम्र में उन्होंने एक धर्मबहन बनने की
इच्छा व्यक्त की थी किन्तु उनके पिता पहले ही उनके विवाह हेतु रोम स्थित सन्त पापा की
सेना में कार्यरत कमान्डर लोरेन्सो पोन्सियानी को वचन दे चुके थे। अस्तु, 12 वर्ष की
कोमल आयु में फ्राँसिसका का विवाह लोरेन्सो पोन्सियानी से कर दिया गया।
कई वर्षों
तक फ्राँसिसका अपने विवाहित जीवन से समझौता नहीं कर पाई क्योंकि वे तो धर्मबहन बनकर प्रभु
में मन लगाना चाहती थी। उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी तथा वे अत्यधिक बीमार रहने लगी।
एक दिन उन्हें सन्त एलेक्सिस ने दर्शन दिये और उनसे कहा कि वे अपनी इच्छा को पूरा करने
के लिये लालायित न रहें बल्कि यह जानने का प्रयास करें कि उनके लिये प्रभु ईश्वर की इच्छा
क्या है? इस दर्शन के बाद एकाएक फ्राँसिसका स्वस्थ हो गई तथा उन्होंने अपने विवाहित जीवन
में ही सन्तोष की खोज आरम्भ कर दी। दिन प्रति दिन अपने पारिवारिक दायित्वों को पूरा करती
चली गई और साथ ही निर्धनों एवं ज़रूरतमन्दों की भी सेवा करती रहीं। उनके पति लोरेन्सो
ने भी उनके सेवाकार्यों में उनका साथ दिया तथा उनके प्रार्थना जीवन में कभी कोई दखल नहीं
दिया। इस प्रकार विनम्रता, आज्ञाकारिता तथा धैर्य के सदगुणों से परिपूरित फ्राँसिसका
पारिवारिक दायित्वों को भलीभाँति निभाते हुए पवित्रता में आगे बढ़ती रहीं। उनकी तीन सन्तानें
भी हुईं जिनका पालन पोषण उन्होंने बड़े प्यार से किया तथा उनमें भी पवित्रता एवं नैतिक
मूल्यों के बीज बोये।
अपनी बहन वानोस्सा के साथ मिलकर फ्राँसिसका निर्धनों तथा
रोगियों की जी जान से सेवा करती रहीं तथा अन्य धनवान एवं सामंती महिलाओं को भी उन्होंने
सेवा के लिये प्रेरित किया। अपने इस उद्यम को आगे बढ़ाने के लिये 1425 ई. में उन्होंने
धर्मपरायण महिलाओं के लिये "ओबलेट्स ऑफ मेरी" नामक धर्मसंघ की स्थापना की। बाद में इस
धर्मसंघ का नाम रोम की सन्त फ्राँसिसका ऑबलेट धर्मसंघ पड़ा। 1436 ई. में अपने पति लोरेन्सो
की मृत्यु के बाद फ्राँसिसका ने पारिवारिक जीवन का परित्याग कर दिया तथा इसी धर्मसंघ
में मठवासी बनकर शेष जीवन यापन किया। 1440 ई. में रोम की फ्राँसिसका का निधन हो गया।
नौ मई सन् 1608 ई. को उन्हें सन्त घोषित किया गया था।
रोम की सन्त फ्राँसिसका
वाहन चालकों की संरक्षिका सन्त हैं। किंवदन्ती है कि जब फ्राँसिसका अपने मिशन कार्यों
के लिये यात्रा करती थीं तब स्वर्गदूत उनके आगे आगे एक लालटेन लिये चला करते थे तथा दुर्घटनाओं
से उनकी रक्षा करते थे। बेनेडिक्टीन धर्मसमाज में रोम की सन्त फ्राँसिसका की भक्ति सभी
ऑबलेट धर्मसंघियों एवं धर्मसमाजियों की संरक्षिका रूप में भी की जाती है।
चिन्तनः
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