जिनिवा, 08 मार्च सन् 2013 (रायटर) जिनिवा में संयुक्त राष्ट्र संघीय मानवाधिकार परिषद
ने एक रिपेर्ट जारी कर पाकिस्तान के ईश निन्दा कानून पर प्रतिबन्ध लगाने का आह्वान किया
है। रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसे कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार करते तथा अल्पसंख्यकों
के अधिकारों को कुण्ठित करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ में धार्मिक मामलों
के दूत हेनरी बैलफ़ील्ड का कहना है कि धर्म के अपमान या धर्म परिवर्तन के खिलाफ़ कानून
को समाप्त कर दिया जाना चाहिये क्योंकि इनका दुरुपयोग कर अल्पसंख्यकों को उत्पीड़ित किया
जाता रहा है।
पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे कई देशों में इस्लाम का अपमान करने
के लिए सजाए मौत का प्रावधान है।
रिपोर्ट में कहा गया कि विश्व के कई देशों
में इस प्रकार के कानून के कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों को मानवाधिकार हनन का सामना करना
पड़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार शोषण के लिए ग़ैर सरकारी एवं चरमपंथी तत्व ही नहीं अपितु
सरकारें भी दोषी हैं।
ग़ौरतलब है कि विगत कुछ वर्षों से पाकिस्तान के ईश निन्दा
कानून के उपयोग पर सवाल उठते रहे हैं। यूरोपीय संघ और मानवाधिकार संगठनों ने बारम्बार
पाकिस्तान की सरकार से इस क़ानून को रद्द करने का मांग की है।
मानवाधिकार संगठनों
का कहना है कि पाकिस्तान में ईश निन्दा कानून अल्पसंख्यकों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता
है और प्रायः इसके तहत दायर मामले बेबुनियाद होते हैं।
विगत वर्ष पाकिस्तान की
राजधानी इस्लामाबाद के पास एक गांव की रिम्शा नामक ईसाई लड़की का मामला सुखियों में रहा
था जिसपर कथित तौर से कुरान के पन्नों में आग लगाने के का आरोप लगाया था। जाँच के बाद
अदालत ने लड़की के खिलाफ मुकदमा खारिज कर दिया था। इसी तरह आसिया बीबी का मामला है जो
इस समय इस्लाम के अपमान के आरोप में जेल काट रही हैं।
इस मामले में ताज़ा घटना
अमरीका में पाकिस्तान की राजदूत शेरी रहमान के खिलाफ एक टीवी कार्यक्रम में बातचीत के
सिलसिले में मामला दर्ज किया गया है।