सन्त तारासियुस, 25 दिसम्बर, 784 ई. से सन् 806
ई. में अपनी मृत्यु तक, कॉन्सटेनटीनोपल के प्राधिधर्माध्यक्ष थे। वे बीज़ेनटाईन साम्राज्य
के नागरिक थे तथा इस साम्राज्य में उन्हें बहुत अधिक मान सम्मान मिला था। शिक्षा-दीक्षा
सम्पन्न करने के बाद तारासियुस को साम्राज्य का परामर्शक नियुक्त कर दिया गया और इसके
बाद वे सम्राट कॉन्सटेनटाईन प्रथम तथा उनकी माता आयरीन के प्रथम सचिव नियुक्त कर दिये
गये। जब वे कॉन्सटेनटीनोपल के प्राधिधर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये थे तब कॉन्सटेनटाईन
की कलीसिया सम्राटों के बीच युद्ध के कारण परमधर्मपीठ से अलग थी। ऐसे समय में प्राधिधर्माध्यक्ष
तारासियुस ने कलीसिया की एकता का भरसक प्रयास किया। उन्होंने पवित्र प्रतिमाओं की भक्ति
सम्बन्धी विवाद को समाप्त करने के लिये भी एक विश्व परिषद बुलाई। यह परिषद, सन् 786 ई.
में, कॉनस्टेनटीनोपल स्थित प्रेरितों को समर्पित महागिरजाघर में सम्पन्न हुई; इसके एक
वर्ष बाद विश्वपरिषद पुनः फ्राँस के नीस शहर में सम्पन्न हुई तथा वहाँ जारी आज्ञप्तियों
को सन्त पापा एड्रियन प्रथम ने अनुमोदन दिया।
प्राधिधर्माध्यक्ष तारासियुस सम्राट
के शत्रु बन गये थे क्योंकि वे सम्राट को उनकी वैध पत्नी से तलाक लेने की अनुमति नही
दे रहे थे। सम्राट की मृत्यु, सम्राज्ञी आयरीन का पाँच वर्षीय शासनकाल तथा निकेफरस का
शासन काल सब कुछ प्राधिधर्माध्यक्ष तारासियुस ने देखा और सत्ता एवं धन दौलत के लिये एक
दूसरे की जान लेने को तुले लोगों से उनका साक्षात्कार हुआ। ऐसे समय में प्राधिधर्माध्यक्ष
तारासियुस प्रभु ख्रीस्त का सुसमाचार सुनाते रहे तथा विवेक एवं सूझबूझ के साथ कलीसिया
में उठे विवादों का अन्त करने में लगे रहे।
प्राधिधर्माध्यक्ष तारासियुस का जीवन
याजक-अयाजक सभी वर्ग के लोगों के लिये साधुता का आदर्श था। वे सादा भोजन करते तथा सेवा
कराने की अपेक्षा सेवा करना उत्तम है, इस विचार से वे अपने नौकरों से भी अपनी सेवा नहीं
कराते थे। फुरसत मिलते ही वे प्रार्थना में लीन हो जाया करते थे। कई कई दिन तक उपवास
किया करते थे। भोजनालय से अपना भोजन उठाकर वे ग़रीबों में बाँट दिया करते थे। उन्होंने
ग़रीबों एवं रोगियों की मदद के लिये भी कई संस्थाएँ एवं अस्पतालों की स्थापना की जिन्हें
वे यथाशक्ति सहायता पहुँचाया करते थे। 21 वर्षों तक परम विश्वास एवं सेवाभाव से कॉन्सटेनटीनोपल
या कुस्तुनतुनिया के प्राधिधर्माध्यक्ष पद पर कार्यरत महान तारासियुस का निधन सन् 806
ई. में हो गया था। सन्त तारासियुस का पर्व 25 फरवरी को मनाया जाता है।
चिन्तनः
"पुत्र! यदि तुम्हारे हृदय में प्रज्ञा का वास है, तो मेरा हृदय भी आनन्दित होता है।
यदि तुम विवेकपूर्ण बातें करते हो, तो मेरा अन्तरतम उल्लसित हो उठता है। अपने हृदय में
पापियों से ईर्ष्या मत करो, बल्कि दिन भर प्रभु पर श्रद्धा रखो, इस प्रकार तुम्हारा भविष्य
सुरक्षित है और तुम्हारी आशा व्यर्थ नहीं जायेगी" (सूक्ति ग्रन्थ 23: 15-18)।