2013-02-21 09:47:32

वर्ष ‘स’ के चालीसा का दूसरा रविवार, 24 फरवरी, 2013


उत्पति ग्रंथ 15, 5-12; 17-18
फिलिप्पियों के नाम पत्र3, 17-4-1
संत लूकस 9,28-36
जस्टिन तिर्की,ये.स.

एक बूढ़े की कहानी

मित्रो, आपलोगों को एक कहानी बताता हूँ जिसे आध्यात्मिक कहानियों के गुरु जेस्विट फादर अंतोनी डेमेल्लो बताया करते थे। एक बूढ़ा व्यक्ति था जो परिवर्तन चाहता था। फादर अंतोनी को उस बूढ़े व्यक्ति ने बताया कि जब वह 20 साल का था तो वह बहुत ही क्रांतिकारी था। वह भगवान से प्रार्थना किया करता था "हे प्रभु कृपा दे कि मैं पूरी दुनिया को बदल सकूँ।" दिन महीने और साल बीतते गये। उसकी प्रार्थना जारी रही। दुनिया बदली नहीं। जब वह चालीस साल का हुआ तो उसने अपने प्रार्थना पर चिन्तन किया और माना कि उसकी प्रार्थना का कोई असर नहीं हुआ है। तब उसने अपनी प्रार्थना बदल डाली और एक नयी प्रार्थना खोज़ निकाली। वह कहने लगा “ हे प्रभु मुझे कृपा दे कि मैं कम-से-कम अपने आस-पास रहने वालों को बदल डालूँ”। वह रोज प्रार्थना करता और तब ही सोने जाता। सुबह उठता तो वही प्रार्थना करता "हे प्रभु मुझे कृपा दे कि मैं कम-से-कम अपने आस-पास में रहने वालों को बदल डालूँ।" दिन महीने और साल बीतते गये। उस व्यक्ति की प्रार्थना जारी रही वह साठ साल का हो गया। सबकुछ वैसा ही था। किसी के जीवन में कोई ख़ास परिवर्तन नहीं आया था। वह फिर सोचने लगा कि उसे अपनी प्रार्थना बदल देनी चाहिये। और फिर एक दिन उस वृद्ध ने अपनी प्रार्थना बदल डाली। उसने अपने आप से कहा कि मैं कितना मूर्ख हूँ। मैंने अपना समय बरबाद किया किया। मैं परिवर्तन तो चाहता था, पर दूसरों को बदलना चाहता था। दूसरों का परिवर्तन चाहता था। और ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब मैं फिर से अपनी प्रार्थना ही बदल दूँगा। और तब उसने अपनी प्रार्थना फिर बदल दी। अब वह कहने लगा, "हे प्रभु मुझे कृपा दे कि मैं अपने-आप को बदल सकूँ।" उसने बार-बार उस प्रार्थना को दुहराने लगा। तब उसने देखा कि उसके जीवन में बदलाव आ रहा है और दूसरे भी बदलते लग रहे हैं। उसने देखा कि दूसरों का जीवन भी अच्छा होने लगा है। तब उसने खुद से कहा कि मैं कितना मूर्ख था यदि शुरू से ही मैंने इस प्रार्थना को किया होता मैंने अपने जीवन का समय नहीं गंवाया होता।

मित्रो, रविवरीय आराधना विधि चिंतन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन-विधि-पंचांग के चालीसे के दूसरे रविवार के सुसमाचार पाठ के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहें हैं। आज प्रभु हमें परिवर्तन के बारे में बताना चाहते हैं। प्रभु चाहते हैं कि हमारा जीवन बदल जाये और प्रकाश से भर जायें और दूसरों के जीवन को भी प्रकाशित करें। आइये हम आज के प्रभु के दिव्य वचनों को सुनें जिसे संत लूकस के 9वें अध्याय के 28 से 36 पदों से लिया गया है।


संत लूकस, 9:28-36
28) इन बातों के करीब आठ दिन बाद ईसा पेत्रुस, योहन और याकूब को अपने साथ ले गये और प्रार्थना करने के लिए एक पहाड़ पर चढ़े।
29) प्रार्थना करते समय ईसा के मुखमण्डल का रूपान्तरण हो गया और उनके वस्त्र उज्जवल हो कर जगमगा उठे।
30) दो पुरुष उनके साथ बातचीत कर रहे थे। वे मूसा और एलियस थे,
31) जो महिमा-सहित प्रकट हो कर येरुसालेम में होने वाली उनकी मृत्यु के विषय में बातें कर रहे थे।
32) पेत्रुस और उसके साथी, जो ऊँघ रहे थे, अब पूरी तरह जाग गये। उन्होंने ईसा की महिमा को और उनके साथ उन दो पुरुषों को देखा।
33) वे विदा हो ही रहे थे कि पेत्रुस ने ईसा से कहा, ''गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़ा कर दें- एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।'' उसे पता नहीं था कि वह क्या कह रहा है।
34) वह बोल ही रहा था कि बादल आ कर उन पर छा गया और वे बादल से घिर जाने के कारण भयभीत हो गये।
35) बादल में से यह वाणी सुनाई पड़ी, ''यह मेरा परमप्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।''
36) वाणी समाप्त होने पर ईसा अकेले ही रह गये। शिष्य इस सम्बन्ध में चुप रहे और उन्होंने जो देखा था, उस विषय पर वे उन दिनों किसी से कुछ नहीं बोले।

प्रभु का रूपान्तरण
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपलोगों ने प्रभु के वचन को ध्यान से पढ़ा है। प्रभु के वचन को सुनने से आपके मन और दिल में शांति की अनुभूति हुई है। आज के प्रभु के वचन हमें बताते हैं कि प्रभु का रूपांतरण हो गया। आज की घटना में तीन बातें बहुत ही मह्त्त्वपूर्ण है।

समय प्रार्थना के लिये
पहली बात जिसने मुझे प्रभावित किया वह कि प्रभु प्रार्थना कर रहे थे। वे प्रार्थना करने के लिये पहाड़ पर चढे। और तीसरी बात कि उन्होंने अपने साथ सिर्फ तीन शिष्यों को अपने साथ लिया था। एकांत स्थान पर चढ़े। मित्रो, आज के सुसमाचार के पहले खण्ड की तीनों बातें मुझे बहुत प्रभावित करती हैं। पहली बात कि प्रभु का सामाजिक जीवन इतना व्यस्त होने के बात भी उन्हें प्रार्थना करने का समय मिल जाता था या हम इसे कह सकते हैं कि प्रभु प्रार्थना करने का समय निकाल ही लेते थे। आज की व्यस्त ज़िन्दगी में हम भी लोगों को यह कहते सुनते हैं कि वे व्यस्त हैं अति व्यस्त हैं। हम खुद ही कहते हैं कि हम व्यस्त हैं आज प्रभु का प्रार्थनामय जीवन हमें इस ओर इंगित कर रहा है कि क्या हमारी व्यस्त भरी ज़िदगी में प्रार्थना का कोई स्थान है? क्या हम उन बातों को ध्यान देते हैं जिससे हमें आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं? क्या हम जान-बूझकर सोच-समझ कर कोई ऐसा कार्य करते हैं जिससे हमारा आपसी संबंध मजबूत हो? हम ईश्वर की करीबी महसूस करें। मित्रो, ये तो रही प्रार्थना और भले कार्यों के द्वारा अपना संबंध येसु और पड़ोसियों से सुदृढ़ करने के बारे में। येसु का ईश्वर के साथ व्यक्तिगत संबंध के बारे में बारे में एक और बात महत्त्वपूर्ण है वह कि येसु एकांत स्थान को चुनते हैं। अपने को भीड़ से अगल कर लेते हैं ताकि वे ईश्वर के साथ बातें कर सकें। आज के सुसमाचार पाठ में येसु ने तीन चुने हुए शिष्यों को भी अपने साथ लिया और उन्हें भी प्रार्थनामय जीवन का रसास्वादन कराने लगे थे।

रूपान्तरण
आज के ईश्वरीय वचन के दूसरे भाग में हम पाते हैं कि येसु प्रार्थना करते-करते उनका रूप बदल गया। येसु का रूप श्वेत हो गया और उनकी महिमा को तीनों शिष्यों ने देखा। शिष्यों ने एक आवाज़ भी सुना जिसमें पिता परमेश्वर ने कहा यह मेरा प्रिय पुत्र है मैं इससे अति प्रसन्न हूँ। मित्रो, प्रभु की महिमा स्वर्गीय महिमा का पूर्वाभास है। यदि हम येसु के समान ईश्वर से एक होकर जीवन व्यतीत करेंगे तो निश्चिय ही हमें इस धरा पर ही ईश्वरीय जीवन की अनुपम अनुभूति तो होगी ही हम रोज दिन ईश्वर से मिलने के लिये अपने आप को तैयार करते जायेंगे।

काँटों का मार्ग
मित्रो, अगर आपने आज के सुसमाचार ध्यान से सुना होगा तो आप पायेंगे कि जब येसु का रूपान्तरण हो गया तब आकाश में मूसा और एलियस नबी भी दिखाई पड़े जो येसु से येरूसालेम में होने वाली उनकी दुःखद मृत्यु के बारे में बातें कर रहे थे। मित्रो, येसु के दुःखभोग की बातें इस बात की ओर इंगित करती है यदि व्यक्ति ईश्वर के मार्ग पर चलता है और उसके साथ महिमा में प्रवेश करना चाहता है तो उसका मार्ग फूलों की सेज़ नहीं वरन् काँटों की राह ही है। दुःख बलिदान त्याग धैर्य और आशा के मार्ग से ही व्यक्ति ईश्वर तक पहुँच सकता है। कई बार हम यह सोच लेते हैं कि येसु के साथ चलने का मार्ग सिर्फ प्रेम का मार्ग है कई बार हम यह भी सोच लेते हैं कि स्वर्ग जाने के हमें सिर्फ अंतिम दिनों में त्याग तपस्या या विनती प्रार्थना करनी है। मित्रो, अगर प्रभु के जीवन को देखें तो हम पायेंगे कि हमारा अंतिम लक्ष्य तो ईश्वर को आमने सामने देख पाना ही है पर ईश्वर को देखना और उसके साथ मिलन की खुशी का अनुभव आज से ही कर सकते हैं अभी से ही कर सकते हैं। हमें रोज दिन अपना रूपान्तरण करना है।एक काथलिक के रूप में हम जब भी ख्रीस्तीय संस्कार को ग्रहण करते हैं हमारा रूपान्तरण होता है। बपतिस्मा संस्कार में हम ईश्वर के बेटे-बेटियाँ बन जाते हैं पापस्वीकार के द्वारा हम पवित्र और योग्य होते है परमप्रसाद के द्वारा जीवित येसु को ग्रहण करते हैं और जब-जब भी हम प्रभु के लिये दुःख उठाते हैं हम येसु के समान ही बनते जाते हैं।

जग बदलने का राज
मित्रो, यही है उत्तम जीवन का सार रोज दिन ईश्वर से संयुक्त होना दूसरों की भलाई में अपना जीवन जीना इसके लिये अपने जीवन के क्रूस को भी ढोने के लिये तैयार रहना। अगर हमने ऐसा जीवन जीना सीख लिया तो हम उस बुजूर्ग व्यक्ति के समान पश्चात्ताप नहीं करना पड़ेगा जिसने जीवनभर दुनिया को बदलना पर उसे कोई सफ़लता नहीं मिली पर जब उसने न ही कोई परिवर्तन आया पर जब उसने अपने को बदलने की ठानी तो उसने पाया की जग बदलने लगा है। दुनिया सुन्दर दिखाई देने लगी। मित्रो, प्रभु का निमंत्रण है कि हम खुद को बदलें प्रार्थना के लिये समय निकालें अर्थपूर्ण जीवन के लिये दुःखों को गले लगायें, भला सोचें भला करें और भलाई में जीवन बितायें फिर हम अवश्य ही प्रभु की वाणी सुनेंगे ‘तू मेरा प्रिय पुत्र है मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ तू मेरा प्रिय पुत्री है तुमसे मैं अति प्रसन्न हूँ’।








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