2013-02-16 09:04:59

वर्ष ‘स’ के चालीसा का पहला रविवार, 17 फरवरी, 2013


विधि विवरण ग्रंथ 26, 4-10
रोमियों ने नाम पत्र 10, 8-13
संत लूकस 4, 1-13
जस्टिन तिर्की, ये.स.
एक धनी व्यक्ति
मित्रो, आज आप लोगों को एक व्यक्ति की कहानी बताता हूँ जो बहुत ही धनी था। उसने धोखाघड़ी करके बहुत धन इकट्ठा कर लिया था। वह बड़े ही शान से एक आलीशान मकान में रहा करता था। उसके पास रुपये-पैसे तो थे ही ढेर सारा सोना चाँदी भी उसने अपने घर में छुपा रखे थे। जब खुफ़िया पुलिस एजेंसी को इसकी जानकारी मिली तब उसने उसके घर में छापामारी करने की सोची। और जब उस धनी व्यक्ति को इसकी भनक मिली तब उसने सोचा कि वह कुछ रुपयों को दान कर देगा। वह सोचने लगा कि उतने रुपये पैंसो को वह कहाँ छिपायेगा। तब उसे याद आया कि उसके पड़ोस में ही एक मठवासी सुपीरियर रहा करते हैं जिसे सभी कोई एक सज्जन के रूप में जानते थे। लोग उस मठवासी सुपीरियर को लोग इसी लिये पसंद करते थे क्योंकि उनका दिल बहुत उदार था । उनके दरवाज़े में जो भी आता उसकी मदद किये बिना उन्हें चैन ही नहीं आता था। उस अमीर ने सोचा कि वह अपनी सम्पति का कुछ हिस्सा उसके पास रख देगा किसी को कोई संदेह तक नहीं होगा कि उसने अपनी संपति को मठवासी के घर में छिपा दिया है। वह तुरन्त उस मठवासी सुपीरियर के पास चला गया। उसने सुपीरियर से कहा कि वह कुछ सामान उसके मठ में देना छोड़ना चाहता है। सुपीरियर ने उस भ्रष्ट अमीर की बात सुनते ही सुपीरियर ने कहा कि वह वहाँ से चला जाये। तब उस अमीर व्यक्ति न कहा - सुपीरियर महोदय मैं यह धन आपके लिये नही दे रहा हूँ। यह तो मैं आपको दे रहा हूँ ताकि आप लोगों की सेवा कर सकें। मठवासी सुपीरियर ने उस धनी व्यक्ति की ओर आँखे उठा कर देखा। तब उस धनी व्यक्ति ने कहा सुपीरियर महोदय मैं केवल एक 20 हज़ार रुपया आपको देना चाहता था। सुपीरियर ने कहा कि वह किसी और को दे दे। उसे बहुत पैसे नहीं चाहिये बस वह तो ईश्वरीय प्रेम को दूसरों को बाँटना चाहता हूँ। इतना कहना था कि उस धनी व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा सुपीरियर महोदय आपने सही कहा अगर ऐसा है तो मैं आपके लिये सामान खरीद दूँगा। ऐसा कहने के बाद वह सुपीरियर के और करीबा आया और धीमी आवाज़ में कहा अगर आप मदद करना चाहते हैं तो मैं करीब पचास हज़ार भी खर्च कर सकता हूँ ताकि इससे लोगों की सेवा हो सके। तब सुपीरियर ने चिल्लाया कि बहुत हो गया । मुझे ये सब नहीं चाहिये।और सुपीरियर अपने कमरे के अंदर चला गया और धनी व्यक्ति उसके घर से दूर चला गया।
मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अंतर्गत पूजनविधि पंचांग के चालीसा के पहले रविवार के लिये प्रस्तावित सुसमाचार पाठ के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहे हैं।
संत लूकस 4,1-13
मित्रो, हमारे जीवन में प्रलोभनों का आना निश्चित है यह भी निश्चित है कि प्रलोभन बार-बार आते हैं और यह भी एक सच है कि प्रलोभन दुनिया के लोगों को दो भागों में बाँट देता है। पहले भाग में वे आते हैं जो प्रलोभनों के आने से जीवन में मजबूत होते है तो दूसरे भाग में वे आते हैं जो प्रलोभनों के आने से उसमें गिर जाते हैं और ईश्वर से दूर हो जाते हैं। मित्रो, हमने बुधवार से चालीसा काल आरंभ किया है और हम ईश्वर की इच्छा के अनुसार त्याग तपस्या और प्रार्थनामय जीवन व्यतीत करने में लगे हुए है। आइये हम प्रभु के वचन को ध्यान से सुनें जिसे संत लूकस रचित सुसमाचार के अध्याय 4 के 1 -13 पदों से लिया गया है।

1) ईसा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर यर्दन के तट से लौटे। उस समय आत्मा उन्हें निर्जन प्रदेश ले चला। 2) वह चालीस दिन वहाँ रहे और शैतान ने उनकी परीक्षा ली। ईसा ने उन दिनों कुछ भी नहीं खाया और इसके बाद उन्हें भूख लगी। 3) तब शैतान ने उन से कहा, ''यदि आप ईश्वर के पुत्र हैं, तो इस पत्थर से कह दीजिए कि यह रोटी बन जाये''। 4) परन्तु ईसा ने उत्तर दिया, ''लिखा है-मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है''। 5) फिर शैतान उन्हें ऊपर उठा ले गया और क्षण भर में संसार के सभी राज्य दिखा कर 6) बोला, ''मैं आप को इन सभी राज्यों का अधिकार और इनका वैभव दे दूँगा। यह सब मुझे दे दिया गया है और मैं जिस को चाहता हूँ, उस को यह देता हूँ। 7) यदि आप मेरी आराधना करें, तो यह सब आप को मिल जायेगा।'' 8) पर ईसा ने उसे उत्तर दिया, ''लिखा है-अपने प्रभु-ईश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो''। 9) तब शैतान ने उन्हें येरुसालेम ले जा कर मन्दिर के शिखर पर खड़ा कर दिया और कहा, ''यदि आप ईश्वर के पुत्र हैं, तो यहाँ से नीचे कूद जाइए; 10) क्योंकि लिखा है-तुम्हारे विषय में वह अपने दूतों को आदेश देगा कि वे तुम्हारी रक्षा करें 11) और वे तुम्हें अपने हाथों पर सँभाल लेंगे कि कहीं तुम्हारे पैरों को पत्थर से चोट न लगे''। 12) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ''यह भी कहा है-अपने प्रभु-ईश्वर की परीक्षा मत लो''। 13) इस तरह सब प्रकार की परीक्षा लेने के बाद शैतान, निश्चित समय पर लौटने के लिए, ईसा के पास से चला गया। 14) आत्मा के सामर्थ्य से सम्पन्न हो कर ईसा गलीलिया लौटे और उनकी ख्याति सारे प्रदेश में फैल गयी।
प्रलोभन का अंत नहीं
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपने प्रभु के वचनों को ध्यान से सुना है और आपके प्रभु के वचन को सुनने के लिये समय निकालने से आपको और आपके परिजनों मित्रों और संगे-संबंधियों का आध्यात्मिक लाभ हुए हैँ। मित्रो, कई बार हम यह सोच कर परेशान होते हैं कि येसु को भी शैतान ने नहीं छोड़ा। येसु को भी प्रलोभन मिले। मित्रो, अगर आपने सुसमाचार पाठ को ध्यान से सुना होगा तो पाठ के अंतिम लाइन को एक बार फिर गौर कीजिये। संत लूकस लिखते हैं इस तरह सब प्रकार की परीक्षा लेने के बाद शैतान, निश्चित समय पर लौटने के लिये ईसा के पास से चला गया। मित्रो, इसका अर्थ यही है कि शैतान येसु को प्रलोभन देता रहा एक बार नहीं कई बार। जब तक येसु इस दुनिया में कार्य करते रहे येसु को प्रलोभन आते रहे। प्रभु येसु और आम लोगों में अंतर यही है कि जब प्रलोभन आते हैं तो आम व्यक्ति कई बार कमजोर हो जाता है पर येसु के जीवन में जब भी प्रलोभन आये वह और अधिक शक्तिशाली होकर आगे बढ़े।
अपने में बुरा नहीं प्रलोभन
मित्रो, यह इस बात को दिखाता है कि प्रलोभन अपने-आप में बुरा नहीं है । बस एक परीक्षा है। इसके साथ मजबूती के साथ पेश आने से व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से मजबूत हो जाता है औऱ जो इसके चंगुल में फंस जाता है वह कमजोर हो जाता है। और शैतान उसे और ही कमजोर करता जाता है और अपने वश में कर लेता है।

तीन तरह के प्रलोभन
मित्रो अगर हम आज के प्रभ के वचनों पर ग़ौर करें तो हम पायेंगे कि प्रलोभन तीन तरह के होते हैं। पहला जो हमें हमारी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरी करने के लिये लालच देते हैं। येसु को शैतान ने कहा कि वे कहें कि पत्थर रोटी बन जायें।
दूसरी तरह के प्रलोभन हमारे जीवन में आते हैं वे धन कमाने के बारे होते हैं। ये हमारे मन को कमजोर करने के लिये आते हैं। ये प्रलोभन हमें कहते हैं कि किसी भी तरह से किसी भी बुरे उपायों का सहारा लेकर धनी बन जाओ। येसु को शैतान कहता है कि अगर वे शैतान की आराधना करें तो वह उन्हें पूरा राज्य दे देगा।
और तीसरे तरह के प्रलोभन आते हैं वह हमारे दिल को ही भ्रष्ट करना चाहता है। यह चाहता है कि हम ईश्वर के बारे में संदेह करने लग जायें और खुद पर भरोसा करने लगें।
शैतान की रणनीति
मित्रो, आपने गौर किया होगा कि शैतान कितना चालाक है सबसे पहले हमारे शारीरिक ज़रूरत को पूरा करने का लालच देता तब मन को भटकाता और बाद में दिल में कब्जा जमाता है। मित्रो, ध्यान देने की बात है की येसु ने किस तरह से अपने जीवन में आने वाले प्रलोभन का सामना किया। पहले प्रलोभन में येसु का ज़वाब कितना अच्छा था उन्होंन कहा कि मनुष्य सिर्फ रोटी से नहीं जीता है।अर्थात् शारीरिक भूख की तृप्ति के लिये वह ईश्वर को नाराज़ नहीं करेगा। दूसरे प्रलोभन के जवाब में येसु कहते हैं कि वे अपने प्रभु ईश्वर की ही आराधना सदा करेंगे। अर्थात् धन संपति की हमें ज़रूरत है पर धन ईश्वर से बड़ा नहीं है। ईश्वर ही सबसे बड़ी पूँजी और संपति है। और मित्रो क्या आपने ग़ौर किया प्रभु का अंतिम जवाब शैतान के लिये क्या था। येसु ने कहा अपने प्रभु ईश्वर की परीक्षा मत कर।
प्रलोभन पर विजयी होना
मित्रो, आज प्रभु हमें बुला रहे हैं और कह रहे हैं कि हम प्रलोभन के समय शैतान के साथ तर्क-वितर्क न करें उसे स्पष्ट जवाब दें। यदि हमें भला कार्य करना है तो उसे करते जायें और यदि बुरे सोच या बात का त्याग करना है तो उसे हम तुरन्त छोड़ कर उससे दूर हो जायें। तो हम निश्चय ही येसु के समान ही अपने को ईश-पुत्र या पुत्री बनाये रखने में सफल होते रहेंगे और ठीक उस मठवासी सुपीरियर के समान ही प्रलोभनों पर विजयी होंगे। उसे भी रुपये का प्रलोभन दिया गया था पर उसका जवाब साफ था। मुझे नहीं चाहिये पैसा। मित्रो आज मेरी प्रार्थना है प्रलोभन हमारे लिये एक कृपा का समय बने ताकि हम ईश्वर को ‘हाँ’ कहें और शैतान को स्पष्ट और जोरदार न ‘नहीं’ । और तब कौन रोक सकेगा हमें प्रसन्न होने, खुशमय और सार्थक जीवन जीने से।










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