13 फरवरी को काथलिक कलीसिया सन्त कैथरीन दे रिच्ची
का पर्व मनाती है। कैथरीन दे रिच्ची का जन्म इटली के फ्लोरेन्स नगर में, 23 अप्रैल सन्
1522 ई. को, हुआ था। बपतिस्मा के समय उनका नाम एलेक्ज़ानड्रिना था किन्तु बाद में धर्मसंघी
जीवन को अंगीकार करने के उपरान्त उन्होंने कैथरीन नाम धारण कर लिया था। बाल्यकाल से ही
प्रार्थना के प्रति कैथरीन की महान रुचि थी। जब कैथरीन छः वर्ष की थी तब ही उनके पिता
ने उन्हें फ्लोरेन्स स्थित मोन्तीचेल्ली के कॉन्वेन्ट में प्रवेश दिला दिया था जहाँ
उनकी फूफी लूईज़ा दे रिच्ची धर्मबहन थी।
शिक्षा-दीक्षा पा लेने के बाद कैथरीन
घर लौटी। कुछ ही समय बाद समर्पित जीवन का चयन करते हुए वे तोस्काना के प्रात नगर स्थित
दोमिनिकन धर्मसंघ में भर्ती हो गई। छोटी उम्र होने के बावजूद कैथरीन को नवदीक्षार्थियों
एवं नई धर्मबहनों की मार्गदर्शिका नियुक्त कर दिया गया था। तदोपरान्त, 25 वर्ष का आयु
में ही वे मठाध्यक्ष चुन ली गई थी। उनकी आध्यात्मिकता के कारण अनेक सिद्धहस्त व्यक्तियों
से उनका साक्षात्कार हुआ था जिनमें कलीसिया के परमाध्यक्षीय पद पर आसीन होनेवाली प्रतिभाशाली
हस्तियाँ भी शामिल थीं जैसे मारसेलुस द्वितीय, क्लेमेन्त तृतीय तथा लियो 11 वें। सन्त
फिलिप नेरी के साथ वे पत्र व्यहवहार किया करती थी।
कैथरीन घण्टों प्रार्थना और
मनन चिन्तन में बिताया करती थीं तथा भाव समाधि में चले जाने के लिये विख्यात थी। कई बार
वे प्रभु येसु के दुखभोग का अनुभव पाती थीं। बताया जाता है कि गुरुवार दोपहर से लेकर
शुक्रवार अपरान्ह चार बजे तक मठ के इर्द गिर्द लोग विशाल समुदाय में एकत्र हुआ करते थे
क्योंकि इसी दौरान कैथरीन दुखभोग की पीड़ा का अनुभव कर भावमग्न हो जाया करती थी। 12 वर्षों
तक यह सिलसिला चलता रहा था। एक लम्बी बीमारी के बाद, सन् 1589 ई. में, कैथरीन का देहान्त
हो गया था। सन्त कैथरीन दे रिच्ची का पर्व 13 फरवरी को मनाया जाता है।
चिन्तनः
"प्रभु! मेरा बल है! प्रभु मेरी चट्टान है, मेरा गढ़ और मेरा उद्धारक है। ईश्वर ही मेरी
चट्टान है, जहाँ मुझे शरण मिलती है। वही मेरी ढाल है, वही है मेरा शक्तिशाली उद्धारकर्ता
और आश्रयदाता" (स्तोत्र ग्रन्थ 18, 1-3)।