नबी इसायस 6, 1-8 कुरिन्थियों के नाम 15, 1-11 संत लूकस 5, 1-11 जस्टिन तिर्की,
ये.स. शैतान की कहानी आज आप लोगों को एक अज़ीब-सी कहानी बताता हूँ। यह कहानी एक
शैतान के बारे में हैं। बताया जाता है कि एक शैतान एक शहर में रहा करता था। वहीं से अपना
कारोबार चलाता था और पूरे शहर के लोगों को प्रभावित करता था। कई सालों तक अपना धन्धा
उस शहर से चलाने के बाद उसने एक दिन निर्णय किया कि वह अब वह शहर छोड़ देगा और किसी दूसरे
शहर में जायेगा। उस शैतान ने घोषणा की कि अब वह शहर छोड़ रहा है और उसके पास जो कुछ भी
है उसे वह बेचना चाहता है। उसने कहा जिस किसी को भी कुछ खरीदना है वह उसके यहाँ से खरीद
सकता है। उसने यह भी बताया कि उसके दुकान में जो भी वस्तुएँ है उन पर उसने भारी छूट दे
रखी है। कई लोग उसके सामान खरीदने आये। उस शैतान के पास वे सारी वस्तुएँ थी जिनसे वह
लोगों के जीवन को परेशान करता और उन्हें बरबादी के कग़ार तक पहुँचाया करता था। एक दिन
एक व्यक्ति शैतान का सामान खरीदने आया और सामान चुनने लगा। एक सामान था झगड़ा कराने का,
एक था नशापान का, बुरी आदतों का, ईष्या का, बेईमानी का भ्रष्टाचार का और बदला चुकाने
का । वह व्यक्ति एक-एक सामान को ग़ौर से देख रहा था। उसे सभी वस्तुएँ लुभावनी लग रहीं
थीं। पर वह एक स्थान पर रुक गया जहाँ पर एक सामान रखा था जिसका दाम सबसे ज्यादा था वह
था निराशा। उसने शैतान से पूछा कि निराशा का दाम इतना ज्यादा क्यों है? क्या विशेषता
है इसमें? तब शैतान ने कहा कि यह सबसे महंगा है क्योंकि यह सबसे शक्तिशाली है। इसका प्रयोग
मैं बार-बार करता हूँ। और यह उस रामवाण के समान है जो अचूक वार करती है। उन्होंने आगे
कहा कि इसका प्रयोग मैंने बहुत बार किया है और कई जुझारु लोगों पर भी किया है और वे सब
इस हथियार के सामने कमजोर पड़ गये हैं। इसका वार न केवल व्यक्ति पर पड़ता है पर जो भी
उसके आसपास होते हैं सब इसके चपेट में आ जाते हैं। इसके प्रभाव से पूरी दुनिया नष्ट हो
सकती है। जब व्यक्ति निराश हो जाता है तो वह काम करना छोड़ देता है, वह किसी भी कार्य
को उचित तरीके से नहीं करता और जीते-जी मृतप्राय हो जाता है। मित्रो, येसु को अच्छी
तरह मालूम था कि निराशा दुनिया को नष्ट कर सकती है.इसीलिये उन्होंने जिन्हें भी चुना
सबों को उत्साह से भर दिया और उन्होंने पूरी दुनिया को बदल डाला। उत्साह से भर जाने के
लिये एक व्यक्ति को सदा ईश्वर से जुड़े रहना है।
संत लूकस 5, 1-11
मित्रो,
आज हम रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अंतर्गत पूजन-विधि पंचांग के वर्ष ‘स’
के पाँचवे रविवार के लिय प्रस्तावित पाठों के आधार पर मनन-चिन्तन कर रहे है। आइये हम
संत लूकस के 5वें अध्याय के 1 से 11 पदों को सुनें
एक दिन येसु गेनेसेरेत की झील
के पास थे। लोग ईश्वर का वचन सुनने के लिये उन पर गिर पड़ते थे। उस समय झील के किनारे
लगी दो नावों को देखा। मछुए उन पर से उतर कर जाल झो रहे थे। येसु ने सिमोन की नाव पर
चढ कर उसे किनारे से कुछ दूर ले चलने के लिये कहा। इसके बाद उन्होंने सिमोन से कहा, नाव
को गहरे पानी में से चलो मछलियाँ पकड़ने के लिए अपने जाल डालो। सिमोन ने उत्तर दिया,
गुरुवर रात भर मेहनत करने पर भी हम कुछ नहीं पकड़ सके, परन्तु आपके कहने पर मैं जाल डालूँगा।
ऐसा करने पर बहुत अधिक मछलियाँ फँस गयीं और उनका जाल फटने को हो गया। उन्होंने दूसरी
नाव के अपने साथियों को इशारा किया, कि आकर हमारी मदद करो। वे आ गये और उन्होंने दोनों
नावों को मछलियों से इतना भर लिया कि नावें डूबने को हो गयीं। यह देख कर सिमोन ने येसु
के चरणों पर गिर कर कहा प्रभु मेरे पास ले चले जाइए। मैं तो पापी मनुष्य हूँ। मछलियों
के जाल में फँसने के कारण वह और उसके साथी विस्मित हो गये। यही दशा याकूब और योहन की
भी हुई, ये ज़ेबेदी के बेटे और सिमोन के साझेदार थे। येसु ने सिमोन से कहा डरो मत अब
से तुम मनुष्यों को पकड़ा करोगे। वे नावों को किनारे लगा कर और सब कुछ छोड़कर येसु के
पीछे हो लिये।
बुलावा मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपने प्रभु
के दिव्य वचनों को ध्यान से सुना है। मैं इस बात पर भी विश्वास करता हूँ कि आपके द्वारा
प्रभु के वचन को सुनने से आपको और आपके परिजनों को निश्चय ही आध्यात्मिक लाभ हुए हैं।
मित्रो, अगर हम ग़ौर करें तो हम पायेंगे कि आज के प्रभु के वचन की विषयवस्तु है - बुलावा।
येसु लोगों को बुलाते हैं। वैसे हम शुरु ही में इस बात की जानकारी भी प्राप्त कर लें
कि ईश्वर ने हमें जीवन का वरदान देकर अपनी सेवा के लिये बुलाया है। या हम यह कह सकते
हैं कि ईश्वर ने जीवन का वरदान देकर हमसे इस बात की आशा करते हैं उसकी सेवा-पूजा करते
हुए एक दिन उसके पास आयें। इसे हम मनुष्य जीवन का आम बुलावा कह सकते हैं। इसके साथ ही
ईश्वर प्रत्येक मनुष्य को कुछ विशेष कार्यभार सौंपते हैं जिसे स्वीकार कर व्यक्ति ईश्वर
की सेवा विशेष रूप से करता जाता है। मित्रो, जब कभी हम बुलावे की बात करते हैं तो तुरन्त
ऐसा सोचने लगते हैं कि हमसे धर्मसमाजी भाई या धर्मसमाजी बहन ही बनने की बात कही जा रही
है। वास्तव में, बात वैसी सिर्फ़ नहीं है। जब हमसे बुलावे की बात करते हैं तो हमें ऐसा
समझना चाहिये कि ईश्वर हमें बुला रहे हैं ताकि हम उनके लिये विशेष कार्य कर सकें। आज
के सुसमाचार पर अगर हम मनन करें तो हम पायेंगे कि आज प्रभु येसु पीटर को बुलाते हैं।
मित्रो, जब भी हमारे जीवन में येसु का बुलावा आता है तो हम पायेंगे कि इसमें तीन बातें
अवश्य ही छिपी रहती है।
येसु का निमंत्रण पहली बात है कि येसु का निमंत्रण।
येसु हमें बुलाते हैं। कई लोगों का मानना है कि येसु हमें बुलाते हैं जहाँ हम अपना कार्य
करते हैं। जहाँ से हमें रोजदिन की रोटी मिलती है। कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि येसु
हमें गिरजाघरों या तीर्थस्थलों या अन्य प्रार्थना के स्थानों में हमसे बाते नहीं करते
हैं। वे वहाँ भी हमारी बात सुनते और हमें आमंत्रित करते हैं। यहाँ सिर्फ इस बात को समझने
की बात है कि ईश्वर हमें चुनते हैं जहाँ हम कार्यरत हैं। वहीं से हमें कुछ बड़े और अच्छे
कार्य के लिये आमंत्रित करते हैं। आज के ही पाठों पर हम ज़रा ध्यान दें। येसु संत पीटर
को बुलाते हैं जब वे मच्छलियाँ पकड़ रहे थे।
व्यक्ति का प्रत्युत्तर बुलावे
या बुलाहट के बारे में जिस बात को मैं दूसरी प्रमुख बात के रूप में बताना चाहता हूँ वह
है व्यक्ति का प्रत्युत्तर। येसु का निमंत्रण जब भी आता है तो येसु व्यक्ति को कुछ विशेष
रूप से बोलते हैं वे उस व्यक्ति के जीवन में कुछ विशेष घटनाओं को घटित होने देते हैं।
कई बार यह एक दुर्घटना के समान होता है तो कई बार इस घटना से व्यक्ति प्रभावित हो जाता
है। जिसे हम कई बार अभूतपूर्व घटना या चमत्कार भी कह देते हैं। अगर हम आज ही की घटना
पर विचार करें तो हम पायेंगे पीटर परेशान हैं क्योंकि उन्होंने रातभर मेहनत किया था पर
वह कुछ भी मच्छली पकड़ नहीं पाया। येसु के कहने पर उसने जाल डाली और मच्छलियाँ इतनी
पकड़ी गयी की कि यह उसके आशा के परे थी।
मिशन या दायित्व मित्रो, आपलोगों
को मैंने बताया निमंत्रण के बारे में प्रत्तयुत्तर के बारे में और अब हम जाने बुलाहट
या बुलावे के तीसरे पक्ष के बारे में। तीसरे कदम पर हम पायेंगे कि व्यक्ति यदि ईश्वरीय
वचन को सुन लेता है या ईश्वर के कार्यों को भली भाँति समझ लेता है तो वह अपने आपको ईश्वर
की सेवा के लिये समर्पित करना चाहता है। हम इसे कहते हैं ईश्वर की ओर से दिया गया मिशन
या दायित्त्व। मित्रो, अगर पीटर के बुलाहटीय जीवन को देखेंगे तो हम पायेंगे कि ये तीनों
बातें बहुत ही सही हैं। येसु का बुलावा जब पीटर मच्छली पकड़ रहे थे। पीटर का प्रत्युत्तर
और येसु के मिशन को बखूबी संभालना।
मित्रो, कई बार हम इस बात को जान कर विस्मित
होते हैं कि जब येसु बुलाते हैं तो येसु उनसे बस इतना ही अपेक्षा करते हैं कि उसका दिल
ईश्वर के कार्य को करने के लिये उत्साहित हो। अन्य डिग्रियाँ या अन्य योग्यतायें महत्त्वपूर्ण
हैं पर सब कुछ नहीं है ईश्वर की सेवा के लिये। हमने इस बात को भी ग़ौर किया होगा कि जब
येसु एक व्यक्ति को बुलाते हैं तो वह व्यक्ति अपने अंदर में एक प्रकार का भय का अनुभव
करता है। उस व्यक्ति को डर लगता है कि वह इस ईश्वरीय दायित्त्व को निभा पायेगा। पर येसु
जिनको चुनते हैं उन्हें शक्ति, बुद्धिस शब्द और साहस भी प्रदान करते हैं ताकि वह ईश्वरीय
कार्य को पूरा कर सके।
अनवरत उत्साह मित्रो, अब अन्तिम बात यदि समर्पित जीवन
को ईमानदारीपूर्ण जीने के लिये जिस गुण की आवश्यकता है वह है सदा उत्साहित रहने की। जिस
दिन व्यक्ति में अपने काम के प्रति उत्साह कम हो जाये, उसका कार्य मात्र रूटीन बन जाये
या व्यक्ति को लगे कि अब उसे अपने कार्य में कोई आनन्द नहीं आता है तो ऐसा व्यक्ति ईश्वर
के कार्य करने का उत्तम साधन नहीं बन सकता है।
मित्रो, संत पीटर की बुलाहट की
कहानी द्वारा प्रभु हमें इस बात के लिये आमंत्रित कर रहे हैं कि हम अपने रोजदिन के कार्यों
के प्रति उत्साहित रहें, इसे बारीकी से करें, इसे करने में आनन्द लें और सदा यही सोचें
की हम अपने कार्य को कैसे करें कि इससे अधिक-से-अधिक लोगों का कल्याण हो सके। अगर हम
ऐसा कर सके तो शैतान के सबसे बड़े फंदे या हथियार से हम दूर हो जायेंगे। वह तो चाहता
है कि हम अपने कार्यों से थक जायें, निराश हो जायें और हतोत्साहित हो जायें। अगर हममें
उत्साह है तो हम सदा युवा हैं,शक्तिशाली हैं, सदा ईश्वर के हैं और हमने इस बात का अनुभव
करना अपना दिनचर्या बना लिया तो हम मानें कि हमने जीवन का सच्चा सुख पा लिया है।