2013-01-26 07:17:37

प्रेरक मोतीः सन्त तिमोथी (पहली शताब्दी)


वाटिकन सिटी, 26 जनवरी सन् 2013

तिमोथी का जन्म अनातोलिया के लिस्त्रा में हुआ था। उनके पिता यूनानी तथा माता यहूदी थीं। सन्त तिमोथी का ज़िक्र हमें बाईबिल धर्मग्रन्थ में मिलता है। वे सन्त पौल के साथ उस समय थे जब सन्त पौल लिस्त्रा में थे। शिष्य बरनाबस के चले जाने के बाद तिमोथी ने ही उनकी जगह ली थी तथा सन्त पौल के निकट शिष्य एवं मित्र बन गये थे। सन्त पौल का दूसरी प्रेरितिक यात्रा के दौरान तिमोथी उनके साथ थे। यहूदियों की वैमनस्यता के कारण जब सन्त पौल को बेरेया छोड़कर जाना पड़ा तब तिमोथी वहीं बने रहे तथा सुसमाचार का प्रचार करते रहे।

बेरेया से उन्हें थेसलनीका भेज दिया गया ताकि उत्पीड़न के शिकार बनाये जा रहे थेसलनीका के ख्रीस्तीय समुदायों में आशा का संचार कर उनकी दशा पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करें। इसी रिपोर्ट के बाद सन्त पौल ने थेसलनीकियों को ढ़ारस बँधाते हुए उनके नाम एक पत्र लिखा था। तदोपरान्त, तिमोथी एवं एरास्तुस को सन् 58 ई. में मकदूनिया भेज दिया गया था। इसी समय वे कोरिन्थ भी गये जहाँ उन्होंने कुरिन्थियों को सन्त पौल की शिक्षा से अवगत कराया।

सम्भवतः, तिमोथी उस समय भी सन्त पौल के साथ थे जब वे कैसरिया में और फिर रोम में बन्दी बना लिये गये थे। तिमोथी को भी गिरफ्तार कर लिया गया था किन्तु बाद में रिहा कर दिया गया था। परम्परा के अनुसार, बाद में तिमोथी एफेसुस गये तथा वहाँ के प्रथम धर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये थे। वे 15 वर्षों तक एफेसुस के धर्माध्यक्ष रहे तथा वहाँ अपधर्म, भ्रामक विचारधाओं एवं मिथ्या उपदेशकों से ख्रीस्तीय धर्म एवं ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों की रक्षा करते रहे।

एफेसुस में, डायना के आदर में मनाये जानेवाले काटागोजियन ग़ैरविश्वासी उत्सव का विरोध करने के लिये धर्माध्यक्ष तिमोथी को पत्थरों से मार डाला गया था। सन्त पौल ने दो पत्र तिमोथी के नाम लिखे, पहला मकदूनिया से लगभग सन् 65 ई. में तथा दूसरा रोम से जब वे प्राणदण्ड की प्रतीक्षा में थे। चौथी शताब्दी में सन्त तिमोथी के पवित्र अवशेषों को कॉन्सटेनटीनोपल स्थित प्रेरितों को समर्पित महागिरजाघर में हस्तान्तरित किया गया था। सन्त तिमोथी का पर्व 26 जनवरी को मनाया जाता है।


चिन्तनः तिमोथी का अभिवादन करते हुए सन्त पौल उन्हें विश्वास में अपना भाई कहकर सम्बोधित करते हैं। विश्वासियों के संग व्यवहार के विषय में सन्त पौल लिखते हैं: "बड़े-बूढे को कभी मत डाँटो, बल्कि उन से इस प्रकार अनुरोध करो मानो वे तुम्हारे पिता हों। युवकों को भाई, वृद्धाओं को माता और युवतियों को बहन समझकर उनके साथ शुद्ध मन से व्यवहार करो" (1 तिमोथी 5:1-2)।








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