2013-01-19 15:03:38

परमधर्मपीठीय परिषद् कोर ऊनुम के पूर्ण अधिवेशन को संत पापा का संबोधन


वाटिकन सिटी, 19 जनवरी, 2013 (सेदोक, वीआर) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने वाटिकन परमधर्मपीठीय परिषद् कोर ऊनुम की सभा को संबोधित करते हुए उदारता, नयी नैतिकता और ख्रीस्तीय मानव विज्ञान विषय पर अपने विचार व्यक्त किया।

संत पापा ने कहा, "ख्रीस्तीय प्रेम की नींव है विश्वास।जब हम ईश्वर को पाते हैं और उनका अनुभव उन्हें प्रेम में करते हैं तो हम निश्चिय ही अपने लिये नहीं पर उनके लिये जीते हैं और उनके लिये जीने का अर्थ है – ‘अपने पड़ोसियों के लिये जीना’।"

संत पापा ने कहा कि जो ख्रीस्तीय उदारता और परोपकार के कार्यों से जुड़े हैं उन्हें चाहिये कि वे विश्वास के सिद्धांत के अनुसार जीयें जिसके द्वारा वे ईश्वर की योजना को ईश्वर की आँखों से देखना सीखेंगे। यह विश्वास हमें अपने प्रेम को प्रकट करने का उचित तरीका प्रदान करता है।

संत पापा ने कहा, "आज लोग इस बात का गहराई से अनुभव करते हैं कि सच्ची सभ्यता या हम कहें प्रेम की सभ्यता के लिये मानव की मर्यादा, आपसी निर्भरता और सामुहिक ज़िम्मेदारी की भावना ज़रूरी है। इसके साथ हम इस बात को भी जानते हैं कि कई बार हम अपनी कमजोरियों के कारण ईश्वर की इस योजना को धुँधला करते हैं।"

इसके पीछे भौतिकवाद और तकनीकि का तीव्रता से विकास जैसी विचारधारायें सक्रिय हैं। इसके तहत् मनुष्य उन सब बातों को उचित मानने लगता है जो तकनीकि रूप से संभव है। मानव दावा करने लगता है कि वह किसी भी प्रकार के संबंधों और प्रत्येक प्राकृतिक व्यवस्था से स्वतंत्र है। इन दोनों विचारधाराओं के मिश्रण व्यक्ति को नास्तिक बना सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि खीस्तीय दर्शन के अनुसार मानव होने का अर्थ है मर्यादापूर्ण मानव जीवन जो नम्रता और विश्वास के साथ ईश्वर से एक होने के लिये आमंत्रित किया गया हो।

यही कारण है कि कलीसिया विवाह की मर्यादा और सुन्दरता पर बल देती है और नर और नारी के विश्वासपूर्ण फलदायी एकता को रेखांकित करती है। इसके लिये ज़रूरी है कि व्यक्ति ख्रीस्त का व्यक्तिगत अनुभव करे और ऐसा करने ही में मानव और समाज का हित संभव होगा।













All the contents on this site are copyrighted ©.