मुम्बई, 12 जनवरी, 2013 (एशियान्यूज़) संत पापा के 46वें विश्व शांति संदेश पर अपने
विचार व्यक्त करते हुए ‘पीपल्स विजिलन्स कमिटी ऑन ह्यूमन राइट्स’ के निदेशक लेनिन रघुवंशी
ने कहा कि यह एक ‘शक्तिशाली’ संदेश है जिसे आशा और उत्साह’ से स्वीकार किये जाने की ज़रूरत
है ताकि एक ‘बहुलवादी लोकतंत्र’ की स्थापना और ‘स्थायी शांति’ कायम हो सकती है।
मुम्बई
में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता लेनिन रघुवंशी ने संत पापा के शांति संदेश पर अपने विचार
करते हुए एशियान्यूज़ से कहा कि संत पापा ने इस बात की ओर इंगित किया है कि समाज में
कुछ स्वार्थी और व्यक्तिवादी मानसिकता का दबदबा है।
भारत में यह दबदबा ‘पुरुष
प्रभुत्व’ के रूप में देखा जा सकता है जो महिलाओं को नष्ट करते दिखाई पड़ते हैं। ऐसी
मानसिकता वाले दलितों और आदिवासी समुदायों तथा लिंग के आधार पर शिशुओं का गर्भपात कराते
हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता रघुवंशी ने कहा कि संत पापा ने कहा है कि न्याय के बिना
शांति एक मौन और दण्डाभाव की संस्कृति का चिह्व है। इसलिये हमें चाहिये कि हम ज़रूरतमंद
राष्टों की सहायता करें। और यही है ईसा-मसीह का संदेश। संत पापा ने कहा कि येसु मसीह
ने एक ग़रीब परिवार में जन्म लिया ताकि वह दरिद्रों को मानव मर्यादा प्रदान कर सके।
संत
पापा ने कहा कि गरीब और धनियों के बीच जो खाई है वह कदापि लोकतांत्रिक नहीं हो सकती।
सच पूछा जाये तो इसी खाई के कारण ही विश्व में संघर्ष होते रहे हैं।
सामाजिक
कार्यकर्ता ने कहा कि संत पापा के शांति संदेश का सार था ‘शांति मानव को ईश्वर की ओर
से दिया गया एक उपहार है। संत पापा चाहते हैं कि धर्म और आध्यात्मिकता प्रत्येक मानव
जीवन में अपनी भूमिका अदा करे ताकि शांति स्थापित हो सके।
संत पापा ने इस बात
पर भी बल दिया कि कोई भी बातें चाहे वह धर्मनिर्पेक्षता हो या विचारधारा शांति में बाधक
हैं।
रघुवंशी ने कि ईशशास्त्र को चाहिये कि वह मानव को शांति प्रक्रिया में शामिल
करे तब ही सच्ची शांति प्राप्त हो सकती है।