वाटिकन सिटी, 7 जनवरी, 2013 (सेदोक,वीआर) संत पापा ने वाटिकन परमधर्मपीठ के लिये अधिकृत
राजनयिक कोर के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि वाटिकन में उनकी उपस्थिति इस बात
का परिचायक है कि वाटिकन विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के अधिकारियों के साथ फलदायी संबंध
बनाये रखती और उनके साथ वार्ता करती है जो प्रत्येक मानव के आध्यात्मिक और भौतिक हित
के लिये महत्वपूर्ण है। कलीसिया चाहती है कि मानव की उत्कृष्ट गरिमा बरकरार रहे।
संत
पापा ने कहा कि हाल में कलीसिया ने चर्च और राज्य के बीच फलदायी सहयोग बढ़ाने और सार्वजनिक
हित को बढ़ावा देने के लिये वाटिकन ने कई द्विपक्षीय वार्ताओं पर हस्ताक्षर किये हैं,
विशेष करके बुरुन्डी, इक्वाटोरियर गिनी और मोन्तेनेगरो के साथ।
उन्होंने कहा कि
आपसी वार्ता को बढ़ावा देने के लिये ही उन्होंने कई राष्ट्राध्यक्षों से मुलाक़ात की
और कई राष्ट्रों की प्रेरितिक यात्रायें भी कीं जिसमें मेक्सिको, क्यूबा और लेबनान की
यात्रा प्रमुख है। प्रेरितिक दौरे, ख्रीस्तीयों को नागरिक दायित्वों के लिये प्रोत्साहन
देना, मानव मर्यादा और शांति प्रयासों को बल देने का उत्तम अवसर थे।
संत पापा
ने कहा कि लोग कई बार सोचते हैं कि सत्य, न्याय और शांति के बारे में बातें करना आदर्शवादी
विचार हैं या ये तीनों एक दूसरे से अलग हैं। सत्य के बारे में जानना असंभव-सा लगता है
और कई बार इस पर दृढ़ बने रहना हिंसा को जन्म देता है। दूसरी ओर आज लोग ऐसा भी सोचने
लगे हैं कि शांति के लिये कार्य करना विभिन्न लोगों के साथ सहअस्तित्व की भावना के साथ
समझौता करने के समान है। लेकिन, ईसाई दृष्टिकोण से ईश्वर की महिमा और धरा पर मानवीय
शांति एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
उन्होंने कहा, शांति केवल मानव प्रयासों का
फल नहीं है पर यह ईश्वरीय प्रेम में हमारी सहभागिता है। सच्चाई तो है कि ईश्वर को भूलने
और उनकी महिमा नहीं करने से हिंसा भड़कती है। ईश्वर के बिना मानव आसानी से सापेक्षवाद
का शिकार हो जाता है और न तो न्यायपूर्ण व्यवहार कर पाता, न ही शांति के लिये कार्य कर
सकता है।
ईसाइयों के महाधर्मगुरु ने कहा कि नागरिक और राजनीतिक अधिकारियों का
यह दायित्व है कि वे शांति के लिये कार्य करें और ऐसे क्षेत्रों में शांति कायम करके
का प्रयास करें जो हिंसाग्रस्त हैं।
संत पापा ने राजनयिकों से अपील की
कि वे सरकारों को इस बात से अवगत करायें कि वे मध्यपूर्वी क्षेत्र में विशेष करके सीरिया
में हो रही हिंसा का अंत करें। उन्होंने पुनः अपील की कि सीरिया में हिंसा रुके और सरकारें
सकारात्मक वार्तालाप के लिये उचित कदम उठायें।
संत पापा ने राजनयिकों को ध्यान
येरूसालेम की ओर भी खींचते हुए कहा कि वे चाहते हैं कि फिलीस्तीन के संयुक्त राष्ट्र
संघ में ग़ैर सदस्य पर्यवेक्षक का दर्ज़ा मिलने के बाद इस्राएल और फिलीस्तीन दोनों सम्प्रभु
राष्ट्र रूप में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिये कार्य कर सकें, ताकि वहाँ न्याय के लिये
कार्य किया जा सकेगा और दोनों राष्ट्रों की आकांक्षायें सुरक्षित रहेंगी। संत पापा
ने इस बात को दुहराया कि शांति व्यवस्था तब ही कायम रह सकती है जब मानव और उसके मूलभूत
अधिकारों की रक्षा की जाये। उन्होंने कहा उन्हें इस बात की संतुष्टि है कि यूरोपीय कौंसिल
की संसदीय विधानसभा (पार्लियामेन्टरी असेम्बली) ने इच्छा मृत्यु पर रोक लगा दी है। संत
पापा ने कहा कि कई बार लोग अधिकार का अर्थ मानव की स्वायत्तता की अति अभिव्यक्ति मान
लेते हैं और इसलिये ईश्वर और अपने पड़ोसियों के प्रति खुले नहीं बन बाते और बस, अपनी
ज़रूरतों की पूर्ति में लगे रहते हैं। वास्तव में अधिकारों की रक्षा के लिये चाहिये कि
मानव दूसरों को अपने जीवन का अभिन्न अंग माने।
संत पापा ने कहा कि शांति स्थापित
करने के लिये एक दूसरा सशक्त साधन है शिक्षा। आज लोगों को इस बात को बताया जाना चाहिये
कि वे श्रम और मुनाफ़ा के साथ सार्वजनिक हित की बातें सोचें और ऐसे लोगों को तैयार करें
जो ऐसे नेताओं को प्रशिक्षित करें जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का मार्गदर्शन
करें।
संत पापा ने कहा कि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों
में शिक्षा पर ज़्यादा खर्च किया जाना चाहिये ताकि लोग गरीबी और बीमारियों से बच सकें
और एक ऐसी कानूनी प्रणाली बनायी जाये जो मानवीय मर्यादा को बढ़ावा दे।
संत पापा
ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता के बिना भी समाज में पूर्ण शांति नहीं आ सकती है। आज वार्ता
के द्वारा शांति अब एक विकल्प नहीं, पर एक ज़रूरत है। अंत में संत पापा ने राजनयिकों
को संत पापा पौल षष्टम् की बातों की याद दिलाते हुए कहा कि वे शांति और व्यवस्था के लिये
कार्य करना जारी रखें और पर इस बात को कभी न भूलें कि ईश्वर ही दुनिया में शांति और व्यवस्था
के असली कारीगर हैं।