प्रेरक मोतीः सन्त बेज़िल एवं सन्त ग्रेगोरी नाज़ियनसुस
वाटिकन सिटी, 02 जनवरी सन् 2013
सन्त बेज़िल महान का युग, सन् 329 से 330 ई. तक,
माना जाता है। इन्हें पूर्वी रीति की कलीसिया के आचार्य घोषित किया गया है। सन्त बेज़िल
महान कप्पादोसिया में कैसरिया मज़ाका के प्राधिधर्माध्यक्ष थे जो एशिया माईनर और वर्तमान
तुर्की का महाधर्मप्रान्त है। सन्त बेज़िल ने नीस के धर्मसार को समर्थन दिया तथा आरम्भिक
कलीसिया के अपधर्मियों की खुलकर आलोचना की थी। इसी कारण वे आरियनवाद एवं आप्पोलीनारिस
के अनुयायियों के कटु आलोचक बन गये थे। बेज़िल एक दक्ष ईश शास्त्री थे जिन्होंने प्रभु
येसु ख्रीस्त पर कई धर्मसैद्धान्तिक शोध प्रबन्धों की प्रकाशना की। इसके अतिरिक्त, वे
निर्धनों की देखरेख के लिये भी जाने जाते थे। उन्होंने मठवासियों के सामुदायिक जीवनचर्या
हेतु निर्देशिका की रचना की जिसमें धर्मविधिक प्रार्थनाओं, बाईबिल पाठों पर मनन चिन्तन
एवं शारीरिक श्रम को धर्मसमाजियों एवं मठवासियों के लिये अनिवार्य बताया।
सन्त
बेज़िल के साथ साथ सन्त ग्रेगोरी नाज़ियनसूस को भी पूर्वी रीति की कलीसिया के आचार्यों
तथा ख्रीस्तीय मठवासी जीवन के प्रवर्तकों में गिना जाता है। सन्त ग्रेगोरी नाज़िएनसेन
का युग 330 ई. से 390 ई. तक माना जाता है। 02 जनवरी को काथलिक कलीसिया सन्त बेज़िल महान
तथा सन्त ग्रेगोरी नाज़ियनसुस का पर्व मनाती है।
चिन्तनः ईश वचन पर मनन हमें
निर्धनों एवं ज़रूरतमन्दों की सहायता हेतु प्रेरित करे।