2013-01-01 12:25:57

वाटिकन सिटीः धन्यवाद की प्रार्थना के साथ सन्त पापा ने किया 2012 का समापन, कहा मृत्यु एवं अन्याय के बावजूद भलाई बरकरार रहती है


वाटिकन सिटी, 01 जनवरी सन् 2012 (सेदोक): सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, 31 दिसम्बर की सन्ध्या, रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में "ते देऊम" की धर्मविधि पूरी कर बीते वर्ष के लिये प्रभु ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा ने कहा कि यद्यपि सन् 2012 में मृत्यु, अन्याय एवं हिंसा से भरे समाचारों का बोलबाला रहा तथापि इस आशा को कभी धूमिल न किया जाये कि बुराई के बावजूद विश्व में भलाई का अस्तित्व है।
सन्त पापा ने कहा, "वर्ष के समापन की सन्ध्या हम जो "ते देऊम" विनती प्रभु को अर्पित कर रहे हैं वह धन्यवाद का गीत है जो प्रशंसागान से शुरु होता है -"हम तेरी स्तुति करते और तुझे प्रभु घोषित करते हैं"- तथा विश्वास की अभिव्यक्ति से समाप्त होता है – "तू हमारी आशा है हम विचलित नहीं होंगे"। "
उन्होंने कहा, "इस वर्ष के दौरान जो कुछ भी हुआ चाहे वह कठिन था अथवा सरल, बंजर या उपयोगी उसके लिये हम प्रभु ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। वास्तव में, "ते देऊम" में गहन ज्ञान निहित है, ऐसा ज्ञान जो हमें यह कहने में सक्षम बनाता है कि सब कुछ के बावजूद, विश्व में अच्छाई का अस्तित्व है, और इस अच्छाई की विजय निश्चित्त है। धन्यवाद ईश्वर को, धन्यवाद येसु ख्रीस्त को, जिन्होंने देहधारण किया, क्रूस पर मरे और फिर जी उठे।"
सन्त पापा ने कहा, "निश्चित रूप से, कभी कभी, वास्तविकता को स्वीकार करना मुश्किल होता है, इसलिये कि बुराई भलाई से अधिक शोर मचाती हैः एक क्रूर हत्या, हिंसा का प्रसार एवं गंभीर अन्याय की स्थितियाँ मुख्य ख़बरे बन जाती हैं। इसके विपरीत, प्रेम एवं सेवा के कृत्य, धैर्य और निष्ठा के साथ सहे जानेवाले दैनिक संघर्ष प्रायः परछाईयों में छोड़ दिये जाते हैं। अस्तु, यदि हम विश्व और जीवन को समझना चाहते हैं तो हम पूरी तरह समाचारों पर निर्भर नहीं रह सकते। मौन, शांति, ध्यान और मनन चिन्तन में रहने की आवश्यकता है; यह जानना ज़रूरी है कि हम कब रुकें और विचार करें। इस तरह, हम दैनिक जीवन के अपरिहार्य घावों का उपचार पाने में सक्षम बन सकेंगे, जीवन और दुनिया में होनेवाली घटनाओं को भली प्रकार समझ सकेंगे तथा नई दृष्टि से चीज़ों का मूल्यांकन करना सीख सकेंगे।"
ख्रीस्तानुयायियों को स्मरण दिलाकर सन्त पापा ने कहा, "ख्रीस्त का अनुयायी, आशा का व्यक्ति है, विशेष रूप से, विश्व में व्याप्त अँधेरे के बावजूद वह आशा का व्यक्ति है। उस अँधेरे के बावजूद जो ईश्वर की योजना के अनुकूल नहीं है अपितु मानव के चयनों के कारण छाया हुआ है। उस अँधेरे के बावजूद ख्रीस्तीय व्यक्ति आशावान व्यक्ति है क्योंकि, जैसा कि सन्त मत्ती रचित सुसमाचार में हम पढ़ते हैं, ख्रीस्तीय व्यक्ति जानता है कि विश्वास की शक्ति पर्वतों को भी हिलाकर रख देती है, प्रभु गहन अँधकार को भी रोशन कर सकते हैं।"








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