वाटिकन सिटीः जीवन में ईश्वर को दें स्थान, क्रिसमस की पूर्व सन्ध्या सन्त पापा की अपील
वाटिकन सिटी, 25 दिसम्बर सन् 2012 (सेदोक): रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में, 24
दिसम्बर को क्रिसमस महापर्व की पूर्व सन्ध्या, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने ख्रीस्तयाग
अर्पित कर काथलिक जगत को ख्रीस्तजयन्ती की अवधि में प्रवेश कराया। इस अवसर पर अपने
प्रवचन में सन्त पापा ने आग्रह किया कि टैकनॉलॉजी के इस गतिशील युग में भी मनुष्य ईश्वर
को नहीं भूले। उन्होंने कहा कि द्रुत गति आगे बढ़ते अपने जीवन में मनुष्य ईश्वर एवं
आध्यत्म के लिये भी समय ढूँढ़ें। सन्त पापा ने प्रश्न किया, "क्या हमारे पास ईश्वर
के लिये समय और स्थान है? क्या हम ईश्वर को ही दूर नहीं कर रहे? हम ऐसा तब करते हैं जब
हमारे पास उनके लिये समय नहीं होता।" सन्त पापा ने कहा, "जितना द्रुत गति से हम आगे
बढ़ सकते हैं उतना ही प्रभावशाली ढंग से समय की बचत करनेवाले हमारे उपकरण काम करते हैं
और हमारे पास कम ही समय बचता है। और ईश्वर? ईश्वर का प्रश्न हमें कभी भी अत्यावश्यक नहीं
जान पड़ता क्योंकि हमारा समय वैसे ही पूरी तरह से भरा हुआ होता है"। विश्व के एक अरब
20 करोड़ काथलिकों के परमधर्मगुरु सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहा कि वर्तमान विश्व
के समाज आज उस बिन्दु पर पहुँच गये हैं जहाँ अनेक लोगों की सोच में ईश्वर के अस्तित्व
के लिये ही कोई समय शेष नहीं रह गया है। उन्होंने कहा, "यद्यपि ईश्वर हमारे विचारों
का दरवाज़ा खटखटाते प्रतीत होते हैं हम कुछ स्पष्टीकरण देकर उन्हें दूर कर देते हैं।
यदि हमारी सोच पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाये तो उसकी संरचना सम्भवतः ऐसी हुई है
जिसमें "ईश्वर की परिकल्पना" अनावश्यक बन जाती है।" उन्होंने कहा, "उनके लिये हमारे
पास समय नहीं है। यहाँ तक कि हमारी भावनाओं और हमारी इच्छाओं में उनके लिये कोई स्थान
नहीं रह गया है। हम अपने आप को चाहते हैं। हम वह सबकुछ चाहते हैं जिसे हम हासिल कर सकते
हैं, हम ऐसा सुख चाहते हैं जिस तक हमारी पकड़ है, हम अपनी योजनाओं और लक्ष्यों की सफलता
चाहते हैं। हम अपने आप से इतने अधिक भर उठे हैं कि ईश्वर के लिये कोई स्थान ही नहीं बचा
है।" प्रभु येसु ख्रीस्त के जन्म का स्मरण दिलाकर सन्त पापा ने कहा कि जब लोग ईश्वर
के लिये अपने जीवन में कोई स्थान नहीं पाते तब अन्यों के लिये भी उनके पास कोई स्थान
नहीं होता। प्रार्थना का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा, "प्रभु से हम याचना करें कि
हम उनकी उपस्थिति के प्रति सचेत हो जायें, ताकि हम सुन सकें कि कितनी मन्द तथापि आग्रही
ध्वनि के साथ वे हमारे जीवन का द्वार खटखटाते हैं। हम प्रार्थना करें ताकि हम उन्हें
पहचान सकें तथा उनके द्वारा उन लोगों को पहचान सकें जिनके द्वारा वे हमसे बातचीत करते
हैः बच्चों में, पीड़ितों में, परित्यक्तों में तथा इस विश्व से बहिष्कृत निर्धनों में
हम उन्हें पहचानें।"