प्रेरक मोतीः सन्त फ्राँचेस्का ज़ेवियर कबरीनी (1850 ई. -1917 ई.)
वाटिकन सिटी, 13 नवम्बर सन् 2012:
फ्राँचेस्का ज़ेवियर कबरीनी का जन्म, 15 जुलाई,
सन् 1850 ई. को इटली के लोमबारदी प्रान्त में हुआ था। वे परिवार की 13 सन्तानों में से
एक थीं। 18 वर्ष का आयु में उन्होंने धर्मबहन बनकर जीवनयापन की इच्छा व्यक्त की थी किन्तु
उनके ख़राब स्वास्थ्य के कारण वे ऐसा नहीं कर सकी। बीमार और दुर्बल होने के बावजूद फ्राँचेस्का
ने मृत्यु तक अपने माता पिता की सेवा की तथा भाई बहनों के साथ खेतों में काम किया।
अपनी
इस व्यस्त दिनचर्या के बावजूद फ्राँचेस्का गिरजाघर जाने तथा ख्रीस्तयाग में भाग लेने
का समय निकाल लिया करती थी। एक दिन एक पुरोहित ने उन्हें किशोरियों के एक स्कूल में शिक्षक
का कार्यभार सौंप दिया जहाँ वे छः वर्षों तक सेवाएँ अर्पित करती रही। अपने धर्माध्यक्ष
के आग्रह पर उन्होंने निर्धन बच्चों के लिये स्कूल एवं अस्पताल प्रेरिताई हेतु येसु के
परम पवित्र हृदय को समर्पित धर्मबहनों के मिशनरी धर्मसंघ की स्थापना की। तदोपरान्त, सन्त
पापा लियो 13 वें के आग्रह पर, सन् 1889 ई. में, फ्राँचेस्का छः धर्मबहनों को लेकर अमरीका
पहुँची। यहाँ इताली आप्रवासियों की सहायता करना उनका मिशन बन गया।
ईश्वर में
अटूट विश्वास तथा अदभुत प्रशासनिक सामर्थ्य के चलते इस विलक्षण महिला ने अमरीका में निर्धनों
एवं आप्रवासियों के लिये कई स्कूल, कई अस्पताल एवं कई अनाथालयों की स्थापना की। अमरीका
के शिकागो में, 22 दिसम्बर, सन् 1917 ई. को, फ्राँचेस्का कबरीनी का निधन हो गया था। उनकी
मृत्यु तक उनके द्वारा स्थापित धर्मसंघ इटली के अतिरिक्त इंग्लैण्ड, फ्राँस, स्पेन, उत्तरी
अमरीका और दक्षिण अमरीका तक फैल गया था। सन् 1946 ई. में वे पहली अमरीकी नागरिक थी जो
सन्त घोषित की गई थी। सन्त पापा पियुस 12 वें ने उन्हें सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान
प्रदान किया था। सन्त फ्राँचेस्का कबरीनी आप्रवासियों की संरक्षिका हैं।
चिन्तनः
"मैं हर पल प्रभु को धन्य कहूँगा; मेरा कण्ठ निरन्तर उसकी स्तुति करेगा। मेरी आत्मा गौरव
के साथ प्रभु का गुणगान करती है। दीन-हीन उसे सुन कर आनन्द मनाये। मेरे साथ प्रभु की
महिमा का गीत गाओ। हम मिल कर उसके नाम की स्तुति करें" (स्तोत्र ग्रन्थ 34:1-3)।