कोलोम्बोः श्री लंका के धर्माध्यक्षों ने न्यायालय की स्वतंत्रता के सम्मान का किया आह्वान
कोलोम्बो, 13 नवम्बर सन् 2012 (एशियान्यूज़): श्री लंका के काथलिक धर्माध्यक्षों ने सरकार
का आह्वान किया है कि वह देश के न्यायिक निकाय का सम्मान करे। श्री लंका की न्यायमूर्ति
शिरानी भण्डारानाईके पर, महाभियोग लगाने के, श्री लंकाई संसद के निर्णय के उपरान्त, कार्डिनल
मैलकम रणजीत के नेतृत्व में, देश के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने एक वकतव्य जारी
कर कहा, "अभियोग पत्र के आरोपों को पढ़ने के लिये हम आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे हैं।
हमारी आशा है कि अभियोग पत्र का कारण अदालत द्वारा दिये गये सरकार विरोधी निर्णय नहीं
है।" न्यायमूर्ति शिरानी के विरुद्ध संसद द्वारा पारित महाभियोग में उनपर 14 आरोप
लगाये गये हैं। हाल ही में श्री लंका के सुप्रीम कोर्ट ने प्रान्तों से केन्द्र तक
सत्ता के हस्तान्तरण हेतु केन्द्रीय सरकार के प्रयासों पर रोक लगा दी थी। एक अन्य प्रकरण
में, न्यायमूर्ति शिरानी भण्डारानाईके ने उस कानून को मुल्तवी कर दिया था जिसके तहत धन
प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक विकास मंत्रालय के अधीन किया जा सकता था। आर्थिक विकास मंत्री
राष्ट्रपति महिन्दा राजपक्षे के भाई बेज़िल राजपक्षे हैं। धर्माध्यक्षों ने कहा कि
श्री लंका का संविधान वैधानिक, प्रशासनिक एवं न्यायिक सत्ताओं के पृथक्करण की गारंटी
देता है इसलिये न्यायिक निकाय में संसद का हस्तक्षेप सरासर ग़लत है। उन्होंने कहा कि
श्री लंका के संविधान के तहत सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पर केवल दुर्व्यवहार एवं
ग़लत आचरण के लिये अभियोग लगाया जा सकता है।