वाटिकन सिटी, 10 नवम्बर, 2012 (सेदोक) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा, " भक्ति संगीत
का कार्य है विश्वास का प्रचार करना और नये सुसमाचार प्रचार में योगदान देना।"
संत
पापा ने उक्त बात उस समय कही जब उन्होंने इताली सान्ता चेचिल्या संघ द्वारा आयोजित तीर्थयात्रा
में शामिल सदस्यों को संबोधित किया।
संत पापा ने कहा कि द्वितीय वाटिकन महासभा
के आरंभ होने के पचास वर्ष पूरे होने के अवसर पर इताली सान्ता चेचिल्या संघ के सदस्यों
का रोम में जमा होना अति महत्वपूर्ण है क्योंकि द्वितीय वाटिकन महासभा ने पूजन पद्धति
के बारे में अपनी शिक्षा देते हुए पवित्र संगीत के महत्व पर विशेष ध्यान दिया था।
पवित्र
संगीत की चर्चा द्वितीय वाटिकन महासभा के दस्तावेज़ ‘कौंसिलियर कोन्स्टिट्यूशन ऑफ लिटर्जी’
के छटवें खण्ड में की गयी है।
विश्वास के बारे में बोलते हुए सत पापा ने कहा कि
कलीसिया के एक महान आचार्य संत अगुस्टीन ने भी संगीत को बहुत महत्व दिया था। उन्हें भी
स्तोत्र और भजन बहुत प्रेरित करते थे।
सच तो यह है कि विश्वास ईशवचन से आता है
और जब व्यक्ति स्तोत्र को बारंबार गाता है तो यह उसके मन-दिल में समा जाता है।
संत
पापा ने कहा कि संगीत के बारे में संत अगुस्टीन के साक्ष्य महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने
अपनी किताब ‘कोनफेशन्स’(पापस्वीकार) में लिखा है कि संगीत नहीं, पर संगीत के शब्दों ने
मेरे विश्वास को मजबूत किया।
संत अगुस्टीन अपनी किताब ‘देमूजिका’ में कहते हैं
कि भक्तिपूर्ण संगीत रचना ईशवचन को सुनने में मदद मिलती है और इससे दिल में पवित्र भाव
उत्पन्न होता है।
संत पापा ने कहा कि वे इतालिया सान्ता चेचिलिया संघ के सदस्यों
की सराहना करते हैं क्योंकि उनके योगदान से ईश्वर की महिमा और विश्वासियों का पवित्रीकरण
होता है।
संत पापा ने कहा कि वे चाहते है कि सब विश्वासी पवित्र पूजन पद्धति
में हिस्सा लें न केवल बोलें, पर सुनें भी ताकि पूरे मन दिल से आत्मा के आवाज़ को सुन
सकें।