वाटिकन सिटीः विश्व के हिन्दु धर्मानुयायियों के प्रति वाटिकन ने प्रेषित की दीपावली
की शुभकामनाएँ
वाटिकन सिटी, 08 नवम्बर, सन् 2012 (सेदोक): विश्व के हिन्दु धर्मानुयायियों के नाम एक
सन्देश प्रकाशित कर, वाटिकन की अन्तरधार्मिक वार्ता सम्बन्धी परमधर्मपीठीय परिषद ने,
दीपावली महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित की हैं।
दीपावली महोत्सव, इस
वर्ष, 13 नवम्बर को मनाया जा रहा है। वाटिकन द्वारा विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित दीपावली
सन्देश में शांति की स्थापना के लिये युवा पीढ़ियों के प्रशिक्षण पर बल दिया गया है।
वाटिकन का दीपावली सन्देश इस प्रकार हैः
ख्रीस्तीय एवं हिन्दू धर्मानुयायी शांति
निर्माता बनने हेतु युवा पीढ़ी को प्रशिक्षित करें
प्रिय हिन्दू मित्रो,
अन्तरधार्मिक वार्ता सम्बन्धी परमधर्मपीठीय समिति, दीपावली महोत्सव के उपलक्ष्य में,
आपके प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई प्रेषित करती है। आपके परिवारों एवं समुदायों
में मैत्री एवं भ्रातृत्व अधिकाधिक दैदीप्यमान हो। मानव इतिहास के इस बिन्दु पर,
जब विभिन्न नकारात्मक शक्तियाँ विश्व के अनेक क्षेत्रों में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की
न्यायसंगत आकाँक्षाओं पर ख़तरा उत्पन्न कर रही हैं, हम सहभागिता की इस नेक परम्परा का
उपयोग, आपके साथ मिलकर, उस ज़िम्मेदारी पर चिन्तन हेतु करना चाहेंगे जिसका निर्वाह हिन्दू,
ख्रीस्तीय तथा अन्यों को, विशेष रूप से, युवा पीढ़ी को शांति निर्माता बनाने के लिये,
करना चाहिये। शान्ति केवल युद्ध की अनुपस्थिति नहीं है, न ही वह शांतिपूर्ण जीवन
का आश्वासन देनेवाली कोई सन्धि या समझौता है; बल्कि, वह पूर्ण होना तथा बरकरार रहना है,
वह सद्भाव की बहाली (दे. बेनेडिक्ट 16वें एकलेज़िया इन मेदियो ओरियेन्ते, 9) तथा उदारता
का फल है। माता-पिता, शिक्षक, धार्मिक और राजनैतिक नेता, शांति-कार्यकर्त्ता तथा सम्प्रेषण
माध्यम जगत से जुड़े लोग और साथ ही हृदय की गहराई से शांति की कामना करनेवाले सभी लोग,
युवा पीढ़ी को शिक्षित करने तथा इस प्रकार की पूर्णता को पोषित करने के लिये बुलाये गये
हैं। युवा पुरुषों एवं महिलाओं को शांतिप्रिय एवं शांति के निर्माता बनने हेतु
प्रशिक्षण प्रदान करना सामूहिक दायित्व एवं सर्वसामान्य कार्य के लिये एक अत्यावश्यक
सम्मन या आह्वान है। यदि शान्ति को यथार्थ और टिकाऊ होना है तो उसका निर्माण सत्य, न्याय,
प्रेम एवं स्वतंत्रता के स्तम्भों पर किया जाना अनिवार्य है (दे. जॉन 23 वें पाचेम इन
तेर्रिस, 35), तथा सभी युवा पुरुषों एवं महिलाओं को, प्रेम एवं स्वतंत्रता की भावना में,
सच्चाई और न्याय के साथ कार्य करना सिखाना आवश्यक है। इसके अलावा, शांति के क्षेत्र में
दिये गये सब प्रकार के प्रशिक्षण में, निश्चित्त रूप से, सांस्कृतिक मतभेदों को ख़तरे
या जोखिम के बजाय समृद्धि की दृष्टि से देखा जाना चाहिये। परिवार शांति की प्रथम
पाठशाला है तथा माता-पिता शांति के प्राथमिक शिक्षक। अपने उदाहरण एवं शिक्षाओं द्वारा,
उन्हें बच्चों को उन मूल्यों की शिक्षा प्रदान करने का अद्वितीय एवं विशिष्ट अधिकार प्राप्त
होता है जो शांतिपूर्ण जीवन यापन के लिये ज़रूरी हैं: परस्पर विश्वास, सम्मान, समझदारी,
श्रवण, भागीदारी, देखभाल तथा क्षमा। स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में, जिस प्रकार
युवा जन विभिन्न धर्मों एवं संस्कृतियों के लोगों के साथ, सम्बन्ध, अध्ययन एवं कार्य
द्वारा, परिपक्व होते हैं, उसी प्रकार, उनके शिक्षकों तथा प्रशिक्षण के लिये ज़िम्मेदार
अन्य लोगों का यह नेक दायित्व होता है कि वे ऐसी शिक्षा सुनिश्चित्त करें जो प्रत्येक
मानव की जन्मजात प्रतिष्ठा का सम्मान करे और साथ ही, मैत्री, न्याय, शांति एवं अखण्ड
मानवीय विकास को प्रोत्साहन प्रदान करे। चूँकि, आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्य शिक्षा की
आधार शिला हैं, छात्रों को, कलह और विभाजन उत्पन्न करनेवाली विचारधाराओं के खिलाफ, सचेत
करना भी उनका नैतिक दायित्व बन जाता है।
एक ओर जहाँ, युवाओं की शिक्षा को
मज़बूत बनाने में, सामान्यतः, सरकार तथा सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों से
जुड़े नेताओं की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, वहीँ, धार्मिक नेताओं को, विशेष रूप
से, उनकी बुलाहट के कारण, आध्यात्मिक एवं नैतिक मार्गदर्शन हेतु, शांति के मार्ग पर अग्रसर
होने तथा शांति के सन्देशवाहक बनने के लिये, युवा पीढ़ियों को प्रेरित करते रहना चाहिये।
चूंकि, संचार के सभी साधन लोगों की सोच, उनकी भावनाओं एवं उनके कार्यों को अत्यधिक प्रभावित
करते हैं इसलिये जो लोग इस क्षेत्र में कार्यरत हैं उन्हें हर सम्भव प्रयास कर, शांति
के विचारों, शब्दों एवं कार्यों को प्रोत्साहन देने में योगदान देना चाहिये। वस्तुतः,
अपनी स्वतंत्रता का उपयोग ज़िम्मेदारी के साथ करते हुए तथा सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्धों
को बढ़ावा देकर, शांति की संस्कृति के निर्माण हेतु युवाओं को ख़ुद उन आदर्शों के अनुकूल
जीना चाहिये जो वे दूसरों के लिये प्रस्तुत करते हैं। 6. यह स्पष्ट है कि शांति
द्वारा व्यक्त पूर्णता अधिकाधिक भाईचारे से परिपूर्ण विश्व की रचना करेगी तथा लोगों के
बीच एक "नये प्रकार के भ्रातृत्व" को उत्पन्न करेगी जिसमें "प्रत्येक व्यक्ति की महानता
के प्रति भागीदारी की भावना प्रबल रहेगी"। (दे. बेनेडिक्ट 16 वें, लेबनान की प्रेरितिक
यात्रा, सरकार के सदस्यों, गणराज्य के संस्थानों, राजनयिक कोर, धार्मिक नेताओं तथा संस्कृति
जगत के प्रतिनिधियों को सम्बोधन, 15 सितम्बर, 2012)। 7. यह मंगलकामना है कि हम
सब, सदैव एवं सर्वत्र, शांति निर्माता बनने हेतु युवाओं के प्रयास में, उन्हें प्रेरित
करने के अपने नैतिक एवं धार्मिक दायित्वों का पालन करें। आप सबको दीपावली
की हार्दिक शुभकामनाएँ!