मिस्र में एलेक्ज़ेनड्रिया के धर्माध्यक्ष अखिल्लास
उस युग के काथलिक ईशशास्त्री थे जब कलीसिया में कलह मची हुई थी तथा अपधर्मियों का ज़ोर
चल रहा था। एलेक्ज़ेनड्रिया शहर उस समय विश्व का एक शक्तिशाली शहर था। शहीद सन्त पीटर
के बाद आखिल्लास धर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये थे।
अपने धर्माध्यक्षीय काल में
आखिल्लास ने आरियुस का अभिषेक किया था जो बाद में जाकर उनका विरोधी सिद्ध हुआ। आरियुस
के नेतृत्व में ही अपधर्म की लहर ने ज़ोर पकड़ा तथा आरियानवाद का उदय हुआ। ख्रीस्तीय
विश्वास के धनी धर्माध्यक्ष आखिल्लास ने आरियुस के उपदेशों के झूठ को पहचाना तथा ख्रीस्तीय
विश्वास को अक्षुण रखने के लिये उपयुक्त कदम उठाये। इसके लिये उन्हें आरियुस तथा उसके
अनुयायियों के घोर विरोध का सामना करना पड़ा तथा विरोधियों की एक और शाखा मेलेशियन्स
के नाम से उत्पन्न हो गई।
अपधर्मियों के विरोध की पीड़ा सहते हुए, आखिल्लास प्रभु
ख्रीस्त पर अपने विश्वास में सुदृढ़ बने रहे। एलेक्ज़ेनड्रिया में एक महासभा बुलाई गई
जिसमें आरियुस की निन्दा की गई तथा उसे फिलीस्तीन पलायन करने के लिये बाध्य होना पड़ा।
हालांकि, आखिल्लास आरियुस को दिये इस दण्ड को देख न सके। सन् 313 ई. में, आखिल्लास का
निधन हो गया था। मिस्र के सन्त आखिल्लास का पर्व 07 नवम्बर को मनाया जाता है।
चिन्तनः "धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य
उन्हीं का है। धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार
करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें
महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार
किया।" (सन्त मत्ती 5: 10-12)