वाटिकन सिटीः 04 नवम्बर 2012 को देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें का सन्देश
वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में, देश विदेश से एकत्र तीर्थयात्रियों
को, रविवार 04 नवम्बर को, मध्यान्ह देवदूत प्रार्थना के पाठ से पूर्व सम्बोधित कर सन्त
पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहाः
"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
सन्त पापा
ने कहाः ........ "इस रविवार के लिये निर्धारित सुसमाचार पाठ (मारकुस 12, 28-34) सबसे
बड़ी आज्ञा पर प्रभु येसु की शिक्षा को प्रस्तावित करता है: प्रेम की आज्ञा, जो द्विपक्षी
हैः ईश्वर से प्रेम एवं पड़ोसी से प्रेम। सन्त लोग, जिनका, एक साथ अभी अभी, हमने महापर्व
मनाया, प्रभु की कृपा में विश्वास करते हुए, इस मूलभूत विधान के अनुकूल जीवन यापन का
प्रयास करते हैं। वस्तुतः, वह व्यक्ति जो ईश्वर के साथ गहन सम्बन्ध रखता हुआ जीता है
वही पूरी तरह प्रेम की आज्ञा का पालन करता है, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक नन्हा बालक
माता और पिता के साथ अच्छे सम्बन्ध के परिणामस्वरूप प्यार करने में सक्षम बनता है।"
उन्होंने
कहा, "अवीला के सन्त जॉन, जिन्हें अभी हाल ही में मैंने कलीसिया के आचार्य की उपाधि से
सम्मानित किया है, अपनी कृति "ईश्वर के प्रेम की संधि" के आरम्भ में लिखते हैं: "वह कारण
जो प्रायः हमारे हृदयों को ईश्वरीय प्रेम के प्रति आकर्षित करता है वह हमारे प्रति ईश्वर
के प्रेम पर चिन्तन का फल है...... यह, लाभ की परवाह किये बिना, हमारे हृदयों को प्रेम
करने हेतु प्रेरित करता है; क्योंकि जो व्यक्ति किसी के लाभ के लिये कुछ करता है तो वह
उसे वह देता जो उसके पास है; परन्तु जो प्रेम करता है, वह स्वतः को, सबकुछ के साथ, अपने
लिये कुछ रखे बग़ैर, समर्पित कर देता है" (अंक 1)। आज्ञा या आदेश होने से पहले प्रेम
एक वरदान है, यह एक ऐसी वास्तविकता है जिसका ज्ञान एवं जिसका अनुभव ईश्वर हमें कराते
हैं, ताकि एक बीज के सदृश वह हमारे अन्तर में प्रस्फुटित हो सके तथा हमारे जीवन में विकसित
हो सके।"
सन्त पापा ने आगे कहा, "यदि ईश्वर के प्रेम ने किसी व्यक्ति
के अन्तर में गहन जड़ें आरोपित कर दी हैं, तो वह व्यक्ति सभी से प्रेम करने में समर्थ
है, उन लोगों से भी जो प्रेम करने के काबिल नहीं हैं, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार प्रभु
ईश्वर हमसे प्रेम करते हैं। माता और पिता अपनी सन्तानों से केवल उस अवस्था में प्रेम
नहीं करते जब वे उनके प्रेम के काबिल हों: वे उनसे सदैव प्रेम करते हैं, हालांकि, स्वाभाविक
रूप से, उन्हें उनकी ग़लतियों का भी एहसास कराते हैं। ईश्वर से हम हमेशा भला ही चाहते
हैं, हम कभी भी उनसे बुरे की मांग नहीं करते। दूसरे को केवल अपनी दृष्टि से ही हम न देखें
बल्कि ईश्वर की दृष्टि देखना सीखें, जो प्रभु येसु ख्रीस्त की दृष्टि है। ऐसी दृष्टि
जो हृदय से प्रस्फुटित होती है, वह सतह पर ही रुक नहीं जाती बल्कि प्रतीयमान और दृश्यमान
से परे जाती तथा अन्य व्यक्ति की आकाँक्षाओं का स्वागत करने में सक्षम बनती हैः अन्यों
को सुनने में, अन्यों की बात पर ध्यान देने में सक्षम बनती है, यदि इसे एक शब्द में कहा
जाये तो प्रेम करने में सक्षम बनती है। इसके साथ साथ, एक अन्य रास्ता भी खुलता दिखाई
देता है और वह यह कि अन्यों के प्रति उदार बनकर, उनकी ज़रूरतों को पहचानकर, उनके लिये
स्वतः को उपलभ्य बनाकर, हम ख़ुद ईश्वर को जानने के लिये अपने मन के द्वारों को खोलते
हैं, हम यह अनुभव करते हैं कि ईश्वर हैं, वे भले हैं।
उन्होंने आगे कहा, "ईश्वर
के प्रति प्रेम और पड़ोसी के प्रति प्रेम को अलग नहीं किया जा सकता। इनका आपसी सम्बन्ध
है। येसु ने इनमें से किसी की खोज नहीं की, किन्तु हमें इस बात का ज्ञान कराया कि इनका
अस्तित्व है, मूलभूत रूप से, ये दोनों प्रेम एक ही और अद्वितीय आज्ञा आदेश हैं। प्रभु
येसु ने यह ज्ञान हमें केवल शब्दों द्वारा ही नहीं अपितु, खासकर, अपने साक्ष्य द्वारा
दियाः स्वयं येसु का सम्पूर्ण व्यक्तित्व तथा उनका रहस्य अपने में ईश्वर के प्रेम और
पड़ोसी के प्रेम को समेटे हुए है, क्रूस की खड़ी और आड़ी, दो लकड़ियों की तरह। यूखारिस्त
में, अपने आप को अर्पित कर, येसु हमें इस दोहरे प्रेम का वर देते हैं ताकि इस रोटी से
पोषित होकर, हम एक दूसरे से वैसे ही प्यार करें जैसे उन्होंने हमसे प्यार किया है।"
अन्त
में सन्त पापा ने कहा, ... "प्रिय मित्रो, कुँवारी मरियम की मध्यस्थता से, हम प्रार्थना
करें ताकि प्रत्येक ख्रीस्तीय धर्मानुयायी पड़ोसी के प्रति प्रेम का साक्षी बनकर, एक
और सच्चे ईश्वर में अपने विश्वास को प्रदर्शित कर सके।"
इतना कहकर सन्त पापा
बेनेडिक्ट 16 वें ने सबके प्रति मंगलकामनाएँ अर्पित कीं तथा सभी पर ईश्वर की कृपा एवं
शांति का आह्वान कर, सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। ...............
तदोपरान्त
सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने देश विदेश से आये तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में
सम्बोधित किया, अँग्रेज़ी भाषा में उन्होंने कहा, "आज देवदूत प्रार्थना के लिये उपस्थित
सभी अँग्रेज़ी भाषी तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों का अभिवादन करते, मैं, अत्यधिक हर्षित
हूँ। प्रभु येसु हमें सिखाते हैं कि जो व्यक्ति अपने सारे हृदय से, अपनी आत्मा, अपने
मन एवं अपनी पूरी शक्ति से प्रभु को प्रेम करते हैं वे ईश राज्य से दूर नहीं हैं। हम
इसी तरह प्रभु को प्रेम करें तथा अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करें। प्रभु ईश्वर की
विपुल आशीष आप सबपर बनी रहे।"