प्रेरक मोतीः सन्त मार्टिन दे पोर्रेस (1579 ई.-1639 ई.)
वाटिकन सिटी, 03 नवम्बर सन् 2012:
सन्त मार्टिन दे पोर्रेस का जन्म दक्षिण अमरीका
के पेरु स्थित लीमा में सन् 1579 ई. में हुआ था। वे दोमिनिकन धर्मसमाज के समर्पित धर्मबन्धु
थे। मार्टिन के पिता स्पेन के एक कुलीन घराने के थे जबकि माता पनामा की मूल निवासी थी।
15 वर्ष की आयु में मार्टिन ने समर्पित जीवन यापन का चयन किया तथा प्रशिक्षण हेतु लीमा
स्थित दोमिनिकन धर्मसमाजी गुरुकुल में भर्ती हो गये। यहीं उन्होंने आजीवन धर्मसमाज की
सेवा की शपथ ग्रहण की। लोकधर्मी धर्मबन्धु रूप में मार्टिन ने दोमिनिकन धर्मसमाज में
नाऊ का काम किया, खेतों में हल चलाया, द्वारपाल रहे तथा नर्स का भी काम किया।
मार्टिन
की अभिलाषा थी कि वे विदेश में जाकर मिशनरी कार्य करें किन्तु यह सम्भव न हो सका इसलिये
उन्होंने लीमा में रहकर ही धर्मसमाज की निष्कपट एवं निष्काम सेवा की। दिनभर की कड़ी मेहनत
के बाद सन्ध्या काल घण्टों वे प्रार्थना, मनन चिन्तन एवं बाईबिल पाठ में बिता दिया करते
थे। कई बार वे भाव समाधि में भी चले जाते थे। ईश्वर ने उन्हें चंगाई प्रदान करने का वरदान
दिया था जिसका उपयोग उन्होंने लोगों की सेवा में किया।
मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों
के प्रति मार्टिन का प्रेम समान था। पशु पक्षियों के साथ बातचीत में वे समर्थ थे तथा
केवल शाकाहारी भोजन करते थे। निर्धनों के लिये उन्होंने एक अस्पताल एवं अनाथालय की स्थापना
की थी तथा पशु-पक्षियों के उपचार हेतु भी एक चिकित्सालय आरम्भ किया था।
इसके
अतिरिक्त, आध्यात्मिक प्रज्ञा एवं विवोक के भी वे धनी थे। अपनी बहन की विवाह सम्बन्धी
समस्याओं का समाधान उन्होंने बड़ी सूझ बूझ के साथ ढूँढ़ निकाला था। इसके अतिरिक्त, दोमिनिकन
धर्मसमाज में उठे धर्मसैद्धान्तिक प्रश्नों एवं ईशशास्त्रीय गुत्थियों को सुलझाने में
मार्टिन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे सादगी और सरल जीवन यापन में विश्वास रखते थे।
त्याग-तपस्या, उपवास एवं परहेज़ उनकी जीवन शैली का अभिन्न अंग थे।
03 नवम्बर,
सन् 1639 ई. को मार्टिन दे पोर्रेस का निधन हो गया था। 06 मई, सन् 1962 ई. को वे सन्त
घोषित किये गये थे। सन्त मार्टिन दे पोर्रेस नाईयों तथा अन्तरजातीय लोगों के संरक्षक
सन्त हैं। उनका पर्व 03 नवम्बर को मनाया जाता है।
चिन्तनः "धन्य हैं
मन के दीन क्योंकि स्वर्गराज्य उन्हीं का है।" (सन्त मत्ती 5: 3)