द्वितीय वाटिकन महासभा के बाद से अंतर धार्मिक संवाद- सम्मान और भिन्नताएं
वाटिकन सिटी 2 नवम्बर 2012 (सीएनएस) द्वितीय वाटिकन महासभा द्वारा आरम्भ किये गये अंतर
धार्मिक संवाद के लिए एक नये काथलिक समर्पण के 50 वर्षों बाद भी अन्य धर्मों के प्रति
कलीसिया की मनोवृत्ति के बारे में स्पष्टीकरण देने का काम जारी है। कुछ काथलिक अन्य धर्मों
को अनिच्छा से देखते हैं तो कुछ अन्य काथलिक मानते हैं कि द्वितीय वाटिकन महासभा ने सिखाया
कि ईश्वर और सत्य की परिपूर्णता को पाने के लिए सब धर्म समान रूप से वैध मार्ग हैं। विश्वास
और आस्था संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष गेरहर्ड मूलर ने हाल ही
में कहा कि इस संदर्भ में दोनों अतिवादी विचार गलत हैं। उन्होंने असीसी में अक्तूबर
माह में दिये गये एक भाषण में हर धर्म की ईश्वर की ईमानदार खोज के लिए काथलिक सम्मान
तथा उस विचार की त्रुटि जिसके अनुसार ईसाईयत के पास कुछ अपरिहार्य नहीं है जिसे जोड़ा
जा सके, उन भिन्नताओं की व्याख्या करने का प्रयास किया। यह कहना कि सब धर्म बुनियादी
रूप से बराबर हैं इसका अर्थ होगा कि ईश्वर और मानव के बीच यथार्थ संवाद की संभावना पर
संदेह करना या इससे इंकार करना। महाधर्माध्यक्ष मुलर ने कहा कि यहूदी-ईसाई विश्वास
की सच्चाईयाँ मानवीय प्रयास के हस्तक्षेप नहीं लेकिन ईश्वर की प्रकाशना का फल है। ख्रीस्त
की मृत्यु और पुनरूत्थान जो धर्मों के मध्य ईसाईयत को अनूठा बनाता है इसपर विश्वास नहीं
करना वस्तुतः ख्रीस्त में मानव बने ईश्वर से इंकार करने के समान है या ऐसा कहने के बराबर
है कि ख्रीस्त की दिव्यता केवल कवितामय छंद है सुन्दर लेकिन अवास्तविक। दशकों से
संत पापाओं और वाटिकन के अधिकारियों ने सिखाया है कि अंतरधार्मिक संवाद का लक्ष्य धर्मों
या यहां तक कि नैतिक सिद्धान्तों पर किसी प्रकार का समझौता पाना नहीं है जिसे दुनिया
का हर व्यक्ति स्वीकार करे। लेकिन काथलिक नेताओं के लिए इस प्रकार के संवाद का लक्ष्य
है कि विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में गहन रूप से जुडे लोग, एक दूसरे को अपनी विश्वास
मान्यताओं के बारे में बतायें, ज्ञान तथा एक दूसरे के प्रति सम्मान में बढ़ें एवं ईश्वर
के बारे में जो सत्य है उसके समीप आने के लिए एक दूसरे की सहायता करें और इसका अर्थ है
कि मानवीय बनें।