सिस्टीन प्रार्थनालय की पाँच सौ वीं वर्षगाँठ पर संत पापा का संदेश
वाटिकन सिटी 1 नवम्बर 2012 (सेदोक, वी आर वर्ल्ड) वाटिकन स्थित विश्व प्रसिद्ध सिस्टीन
चैपल की 500 वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में बुधवार संध्या संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने संध्या
वंदना प्रार्थना समारोह का नेतृत्व किया। विश्व प्रसिद्ध चित्रकार, शिल्पकार, वास्तुकार
माइकेल आंजेलो द्वारा पाँच सौ वर्ष पहले रचित अद्वितीय कृति के पूरा हो जाने पर संत पापा
जुलियुस द्वितीय ने संध्या वंदना का नेतृत्व कर इसमें प्रवेश किया था। सिस्टीन प्रार्थनालय
को पूजनधर्मविधि की कक्षा कहते हुए संत पापा ने कहा कि इस ऐतिहासिक और कलात्मक घटना की
वर्षगाँठ को पूजनधर्मविधि समारोह के साथ मना रहे हैं क्योंकि कला के काम जो इस कमरे को
सजाते हैं विशेष रूप से चित्रकारी, पूजनधर्मविधि में अपने जीवंत परिवेश को पाते हैं।
यह संदर्भ है जिसमें उनका सौंदर्य, समृद्धि, सार्थकता और अर्थ को अभिव्यक्त किया गया
है। संत पापा ने कहा कि यह ऐसा होता है कि पूजनधर्मविधि के दौरान ही, चित्रों की सम्पूर्ण
समन्वयता जीवंत हो जाती है, निश्च्ति रूप से आध्यात्मिक भाव में लेकिन साथ ही कलात्मक
भाव में भी। उन्होंने कहा कि सिस्टीन प्रार्थनालय प्रार्थनामय भाव में और अधिक सुंदर
तथा यथार्थ हो जाता है एवं अपने खजाने को प्रकट करता है। माइकेल आंजेलो ने 1508 से
1512 की अवधि में चार वर्षों के दौरान एक हजार वर्गमीटर के दायरे में सिस्टीन चैपल की
छतों और दीवारों में पेंटिंग का काम किया था। जिन्होंने पहली बार इस प्रार्थनालय
को देखा होगा उनकी क्या प्रतिक्रिया रही होगी इस पर संत पापा ने जोर्जियो वासारी को उद्धृत
करते हुए कहा कि यह काम और यह वास्तव में है हमारे कला का दीप, जिसने पेंटिंग की कला
की बहुत भलाई कर इसे प्रकाश प्रदान किया है, जो विश्व को आलोकित करने के लिए पर्याप्त
है। संत पापा ने कहा कि रंगों की विविधता का कुशल उपयोग करने से न केवल आनेवाले
प्रकाश, या गतिशीलता माइकेल आंजेलो की अनमोल कृति को अनुप्राणित करती है लेकिन वह विचार
जो महान काम में प्रवेश करता है, वह ईश्वर का प्रकाश है जो इन चित्रों तथा कलाकृतियों
को एवं संत पापा के सम्पूर्ण प्रार्थनालय को आलोकित करता है। वह ज्योति या प्रकाश, अपनी
शक्ति के साथ अंधकार और अव्यवस्था को पराजित कर सृष्टि और मुक्ति में जीवन देती है। सिस्टीन
प्रार्थनालय हमें प्रकाश, आजादी और मुक्ति की कथा बताती तथा मानवजाति के साथ ईश्वर के
संबंध के बारे में कहती है।