प्रेरक मोतीः अन्तियोख के सन्त इग्नेशियस (35 - 107)
वाटिकन सिटी, 17 अक्टूबर सन् 2012:
अन्तियोख के सन्त इग्नेशियस आरम्भिक कलीसिया
के प्रेरितिक पितामहों में से एक थे जिनका जीवन काल लगभग सन् 35 ई. से लगभग सन् 107 ई.
तक माना जाता है। प्राचीन यूनानी भाषा में उन्हें थेयोफोरुस अर्थात् "ईश्वर के वाहक"
भी कहा गया है।
काथलिक ऑन लाईन वेब साईट के अनुसार इग्नेशियस अन्तियोख -सिरिया-
के दूसरे धर्माध्यक्ष थे। सन् 69 ई. में, उनका धर्माध्यक्षीय अभिषेक स्वयं, कलीसिया के
प्रथम परमाध्यक्ष, सन्त पेत्रुस ने किया था। धर्माध्यक्ष इग्नेशियस एक धर्मपरायण, पवित्र
एवं मृदुल भाषी व्यक्ति थे जो अपने सरल एवं सीधे सादे आचार-व्यवहार के कारण उस युग के
ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों में अत्यधिक लोकप्रिय हो गये थे। आरम्भिक ख्रीस्तीयों के बीच
उन्होंने सदैव ऑरथोडोक्सी अर्थात् उचित शिक्षा तथा ऑरथोप्राक्सी अर्थात् उचित व्यवहार
पर बल दिया था।
दूसरी शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में, लगभग सन् 107 ई. में,
क्रूर और निष्ठुर राजा त्रायान के शासनकाल में ख्रीस्तीयों पर दमनचक्र चलाया गया। धर्माध्यक्ष
इग्नेशियस को भी उत्पीड़ित किया गया। उन्होंने ख्रीस्तीय धर्म का परित्याग करने से इनकार
कर दिया था इसलिये उन्हें गिरफ्तार कर उनपर झूठा आरोप लगाया गया तथा प्राणदण्ड की सज़ा
सुनाई गई। प्राण दण्ड देने के लिये धर्माध्यक्ष इग्नेशियस को रोम ले जाने का निर्णय लिया
गया जहाँ के कोलोसेऊम में आयोजित एक सार्वजनिक समारोह में जंगली जानवरों के सामने उन्हें
फेंक देने की कुयोजना बनाई गई। प्रभु येसु ख्रीस्त के दुखभोग की याद करते उन्होंने इस
दण्ड को भी सहर्ष स्वीकार कर लिया।
धर्माध्यक्ष इग्नेशियुस ने रोम की इस कष्टकर
यात्रा का एक भी क्षण व्यर्थ नहीं जाने दिया अपितु इसके दौरान ख्रीस्तीयों के मार्गदर्शन
हेतु उन्होंने कई पत्र लिखे। यात्रा लम्बी थी जो एशिया माईनर तथा ग्रीस होते हुए रोम
में समाप्त हुई। यहीं पर धर्माध्यक्ष इग्नेशियुस ने प्रभु येसु ख्रीस्त में अपने विश्वास
के ख़ातिर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये तथा लगभग सन् 107 ई. में शहादत प्राप्त की।
कलीसियाईशास्त्र,
बाहरी चिन्ह एवं आन्तरिक कृपा रूप में संस्कारों की व्याख्या तथा धर्माध्यक्षों की भूमिका
जैसे महत्वपूर्ण विषय धर्माध्यक्ष इग्नेशियुस द्वारा लिखे पत्रों में शामिल हैं। अन्तियोख
के इग्नेशियुस द्वारा लिखे सात पत्र विशेष रूप से विख्यात हो गये हैं क्योंकि इनमें उस
युग के प्रताड़ित ख्रीस्तीय धर्मानुयायों को मार्गदर्शन एवं सान्तवना दी गई है। ख्रीस्तीय
विश्वास के मूलभूत तत्वों का विवरण करनेवाले इन पत्रों से ही हमें ज्ञात होता है कि अन्तियोख
के धर्माध्यक्ष इग्नेशियुस ने ही सर्वप्रथम प्रभु येसु ख्रीस्त द्वारा स्थापित सार्वभौमिक
एवं विश्वव्यापी कलीसिया को परिभाषित करने के लिये "काथलिक" शब्द का प्रयोग किया था।
इग्नेशियुस के पत्र हमें आरम्भिक कलीसिया से जोड़ते हैं तथा येसु ख्रीस्त द्वारा प्रेरितों
को दी शिक्षा से हमारा ज्ञान कराते हैं। साथ ही ये पत्र विश्वास के धनी और पवित्र इग्नेशियुस
से हमारा परिचय कराते हैं जो स्वयं प्रभु ख्रीस्त के जीवित पत्र बन गये थे। अन्तियोख
के धर्माध्यक्ष, दूसरी शताब्दी के, इग्नेशियुस द्वारा लिखे ये पत्र काथलिक कलीसिया की
अनमोल धरोहर का अभिन्न अंग बन गये हैं। अन्तियोख के इग्नेशियुस का पर्व 17 अक्टूबर को
मनाया जाता है।
चिन्तनः "धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं!
स्वर्गराज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम
पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग
में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी
तरह अत्याचार किया"। (मत्ती 5: 10-12)