2012-10-10 13:11:11

वर्ष ‘ब’ का सत्ताईसवाँ रविवार, 7 अक्तूबर, 2012


उत्पत्ति ग्रंथ 2, 18-24
इब्रानियों के नाम, 2, 9-11
संत मारकुस 10, 2-16
जस्टिन तिर्की, ये.स.


तिल का दाग
मित्रो, आप लोगों को एक कहानी बताता हूँ जिसे नथाऩाएल नामक कहानीकार ने बतलाया था। एक समय की बात है एक रसायनशास्त्र वैज्ञानिक थे जिनका नाम था एयलमेर। वह सदा ही विभिन्न प्रकार खोजों में लगे रहते थे। उनकी पत्नी का नाम था जोरजियाना। वह बहुत ही सुन्दर थी। उसकी सुन्दरता की चर्चा सब लोग किया करते थे। जोरजियाना सुन्दर तो थी ही, उसके गाल में एक तिल था जो उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा देता था। कई लोग तो कहते थे कि वह तिल ही उसकी विशेष पहचान है। एयलमेर को अपनी पत्नी से कोई शिकायत नहीं थी, पर चूँकि वे एक वैज्ञानिक थे सदा उसके मन में यह बात आती रहती थी कि वह कुछ ऐसा रसायनिक अविष्कार करे कि उससे अपनी पत्नी का वह तिल बाहर निकाल दे। सब जोरजियाना में सुन्दरता देखते थे पर वैज्ञानिक को लगता था कि उसी तिल के कारण वह पूर्ण नहीं है। अगर वह उसे निकाल पायेगा तो उसकी पत्नी सही में परिपूर्ण हो जायेगी। एक दिन उन्होंने अपनी पत्नी से पूछ ही लिया कि वह चाहता है कि उसके गाल से वह तिल का दाग निकाल ले। तब उसकी पत्नी ने इसकी स्वीकृति दे दी। तब उन्होंने एक दवाई बनायी और रोज दिन अपनी पत्नी को पिलाने लगा और साथ ही उस तिल में डालने लगा। समय बीतता गया। कहानी के अनुसार जोरजियाना दवाई पीती रही और दवाई लगाती रही। उसका तिल का दाग धीरे-धीरे समाप्त होने लगा और एक समय ऐसा भी आया कि वह बिल्कुल ठीक हो गया । पर तिल की दवाई लेते और पीते-पीते जोरिजियाना की तबियत बहुत ख़राब हो गयी थी। वह बीमार हो गयी और एक दिन उनका देहान्त हो गया। अपनी पत्नी को शारीरिक रूप से सुन्दर और पूर्ण बनाते-बनाते एयलमेर ने उन्हें सदा के लिये खो दिया। शारीरिक सुन्दरता से अधिक महत्त्वपूर्ण है मन की सुन्दरता, तन को संवारने में अपना समय और धन नष्ट करने से ज़्यादा अच्छा है खुद को स्वीकार कर लेना, दूसरों के रूप को वैसा ही स्वीकार कर लेना जैसे वे हैं। अपने मन को संवारने में अपनी शक्ति लगाने से दुनिया के हर प्राणी अच्छे और सुन्दर लगने लगते हैं।

मित्रो, रविवारीय आराधना विधि कार्यक्रम के अंतर्गत पूजन विधि पंचांग के वर्ष के 27वें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहे हैं। आइये आज हम पवित्र बाइबल के संत मारकुस रचित सुसमाचार के 10वें अध्याय के 2 से 16 पदों को सुनें।

सुसमाचार पाठ मारकुस 10, 2-6
फरीसी येसु के पास आये उनकी परीक्षा लेते हुए उन्होंने यह प्रश्न किया, "क्या अपनी पत्नी को त्याग देना पुरुष के लिये उचित है?" येसु ने उन्हें उत्तर दिया, "मूसा ने तुम्हें क्या आदेश दिया है?" उन्होंने कहा, "मूसा ने तो त्यागपत्र लिख कर पत्नी को त्यागने की अनुमति दी है।" येसु ने उनसे कहा, "उन्होंने तुम्हारे ह्रदय की कठोरता के कारण ही यह आदेश लिखा है। किन्तु सृष्टि के आरंभ ही से ईश्वर ने उन्हें नर-नारी बनाया, इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा, और दोनों एक शरीर हो जायेंगे। इस तरह अब वे दो नहीं बल्कि एक शरीर है। इसलिये जिसे ईश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।" शिष्यों ने घर पहुँच कर, इस संबंध में येसु से फिर प्रश्न किया और उन्होंने यह उत्तर दिया, जो अपनी पत्नी को त्याग देता और किसी स्त्री से विवाह करते हैं, वह पहली के विरुद्ध व्यभिचार करता है और यदि पत्नी अपने पति को त्याग देती और किसी दूसरे पुरुष से विवाह करती है, तो वह व्यभिचार करती है।

लोग येसु के पास बच्चों को लाते थे, जिससे वह उन पर हाथ रख दें परन्तु शिष्य लोगों को डांटते थे। येसु यह देखकर बहुत अप्रसन्न हुए और उन्होंने कहा, "बच्चों को मेरे पास आने दो । उन्हें मत रोको क्योंकि ईश्वर का राज्य उन जैसे लोगों का है। मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ – जो छोटे बालक की तरह ईश्वर के राज्य को ग्रहण नहीं करता वह उस में प्रवेश नहीं करेगा।" तब येसु ने बच्चों को छाती से लगा लिया और उन पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया।


विवाह का पवित्र बंधन
मित्रो, मेरा विश्वास है कि आपने आज के प्रभु के दिव्य वचन को ध्यान से पढ़ा है। प्रभु के दिव्य वचनों पर चिन्तन करने से आपको और आपके परिवार के सदस्यों को आध्यात्मिक लाभ हुए हैं। मित्रो, आज जिन बातों ने मुझे प्रभावित किये हैं वे हैं विवाह संबंधी प्रभु के वचन। प्रभु कहते हैं कि विवाह के द्वारा पति और पत्नी एक दूसरे से एक हो जाते हैं। वे इस तरह से एक हो जाते हैं कि इसे तोड़ा नहीं जा सकता है।मित्रो, प्रभु हमें बताना चाहते हैं कि विवाह एक ऐसा रिश्ता है जिसे प्रभु की इच्छा के अनुसार शुरु होता है। ईश्वर दो व्यक्तियों को जोड़ते हैं। ईश्वर की इच्छा के अनुसार दो व्यक्ति एक-दूसरे के लिये अपने आपको देते हैं ताकि वे ईश्वर के सृष्टि के कार्य को आगे बढ़ा सकें। विवाह के संबंध के बारे में विभिन्न समुदायों में विभिन्न प्रकार की विचारधारायें प्रचलित हैं। कुछ लोग इसे पति-पति का पवित्र संबंध मानते हैं, कुछ इसे वैवाहिक बन्धन कहते हैं। कुछ इसे मात्र एक सामाजिक रीति-रिवाज मानते हैं। कुछ इसे पवित्र संबंध मानते हैं जिसे कभी तोड़ा नहीं जा सकता है तो कुछ इसे बार-बार तोड़ते रहते हैं यह कह कर कि किसी एक व्यक्ति के साथ जीना कठिन हो गया।

दो का एक होना
मित्रो, वैवाहिक जीवन को एक पवित्र बंधन के रूप में लेनेवाले इसे बखूबी निभाते हैं और दुःख में या सुख में अपने जीवन-साथी का साथ कभी नहीं छोड़ते हैं तो कई तो विवाह को ऐसा समझने लगते हैं मानो कि उन्हें कपडों की तरह बदलने की छूट मिल गयी हो। काथलिक कलीसिया विवाह के संबंध में यह बताती है कि यह एक पवित्र बंधन है जो ईश्वर की इच्छा से आरंभ हुआ है और यह प्रेम का बन्धन अटूट है। विवाह में दो व्यक्ति ठीक उसी तरह से प्यार करते हैं जैसे येसु ने लोगों को प्यार किया उन्हें अच्छा बनाने के लिये अपना सारा जीवन दिया और अन्त में उन्होंने इसके लिये अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। मित्रो, तो यही है ख्रीस्तीय विवाह का अर्थ। विवाह के द्वारा दो व्यक्ति एक हो जाते हैं। दो व्यक्ति वफ़ादारी के साथ एक-दूसरे के पूरक बने रहते हैं।


विपत्ति प्रेम की अग्नि परीक्षा
मित्रो, कई बार हमने इस बात को सुना है कि वैवाहिक प्यार को निभाना कठिन हो जाता है विशेष करके जब वैवाहिक जीवन कठिनाइयों के दौर से गुज़रता है। जब एक साथी असाध्य बीमारी से ग्रसित हो जाता है या जब परिवार में समझदारी की कमी हो जाती है। ऐसे समय में व्यक्ति फरीसियों के समान अपने जीवन साथी को या तो दुःख देने लगता है या उसे त्यागने के उपाय सोचने लगता है। प्रभु येसु आज हमें बताना चाहते हैं कि शादी के बंधन की अग्नि परीक्षा तो विपत्ति के दिनों में ही होती है। सफल जोड़ी विपत्ति काल मे अपने प्रेम को और ही अधिक सुदृढ़ करते हैं और उनका संबंध गहरा हो जाता है। वहीं कमजोर व्यक्ति चुनौतियों के झोकों को सह नहीं बाते और अपने जीवन को तो तहस-नहस कर ही देते हैं अपने साथ बच्चों के भविष्य को भी अंधकार में ढकेल देते हैं।

सिर्फ़ चाहत नहीं, समर्पण है विवाह
मित्रो, आज वैसे लोगों को को जो शादी के जीवन के साथ खिलवाड़ करते हैं या फिर इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं उन्हें बताते हैं कि शादी जीवन सिर्फ एक साथी का चुनाव मात्र नहीं है पर एक समर्पण है। शादी जीवन ईश्वरीय जीवन है जिसके द्वारा दो व्यक्ति एक होकर ईश्वर की इच्छा को पूरा करते हैं वे ईश्वरीय परिवार बसाते हैं ताकि जिस कार्य को पिता ईश्वर ने सृष्टि के समय आरंभ किया था उसे वे पूरा करें और इसे आगे भी बढा़यें। येसु को जब फरीसियों ने पूछा कि क्या वे अपनी पत्नी का त्याग कर सकते हैं तब येसु ने कड़े शब्दों में उनसे कहा कि जिसे ईश्वर ने जोड़ा है उसे मनुष्य अलग न करे। अर्थात् व्यक्ति अपने जीवन साथी से अलग होने की बात सिर्फ़ इसलिये न सोचे कि उसके साथ जीना कठिन है। ठीक इसके विपरीत वह उन सब गुणों का उपयोग करे जिससे उनका प्यार गहरा हो। वैवाहिक संबंध में जिन गुणों की आवश्यकता होती है वे हैं आपसी समझदारी, क्षमा और समर्पण।

मित्रो, कई बार हम एक ऐसे व्यक्ति को खोज में अपना समय व्यतीत करते हैं जौ सर्वगुणसम्पन्न हो। कई बार हम कहते हैं कि हमने पा लिया है। पर मानव तो मानव हैं उसमें तो सीमायें तो होंगी ही। और अगर हमने उन्हें शारीरिक रूप से सुन्दर और आकर्षक बनाने या देखने में अपनी ज़्यादा शक्ति लगा दी और आपसी रिश्ते को मजबूत करने के प्रयास न किये तो हमें निराश ही होना पड़ेगा। उस रसायनिक वैज्ञानिक ने तिल निकालने के प्रयास में अपनी रूपवती अर्धांगिनी जोरजियाना को ही गवाँ दिया।

अपूर्णता संबंध को मजबूत करे
आज प्रभु हमसे चाहते हैं कि हम रिश्तों को वफा़दारी से निभाना सीखें, विपत्ति हमारे संबंध को मजबूत करें, पारिवारिक नासमझियाँ हमें मदद करे कि हम एक-दूसरे को ज्यादा समझने में मदद दें बाह्य सुंदरता धन संपति मान सम्मान की कोई भी चाहत हमारे दिल में हो पर इससे हमारे सौहार्दपूर्ण रिश्ते न टूटे। इतना ही नहीं हमारे प्रेमपूर्ण रिश्तों से हमारा जीवन आनन्दमय हो और दूसरों को भी हमारे साथ जीने का आनन्द आये। हमें देने का सुख मिले और दूसरों को पाने की दिव्य अनुभूति।








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