2012-10-10 13:09:24

वर्ष ‘ब’ का छब्बीसवाँ रविवार, 30 सितंबर, 2012


गणना ग्रंथ 11, 25-29
संत याकूब का पत्र 5, 1-6
संत मारकुस 9, 38-43,45,47-48

जस्टिन तिर्की,ये.स.

केलि की कहानी
मित्रो, आज आपलोगों को मैं एक कहानी बताता हूँ एक बालिका के बारे में जिसका नाम केलि था। जब वह ग्यारह साल की थी उस समय उसे पता चला कि उसे कैंसर हो गया है। उसके पिता ने बहुत रुपये खर्च किये केलि के इलाज़ के लिये। कैंसर के सब अच्छे डॉक्टरों को उसे दिखाया गया पर केलि की हालत नहीं सुधरी। केली जब तक स्वस्थ थी स्कूल जाती रही और उसका इलाज भी चलता रहा। केलि को लिखने का बहुत शौक था इसलिये उसके पिता ने उसके लिये एक डायरी दे रखी थी ।केली उसमें रोज दिन के अनुभव को लिखा करती थी। एक समय ऐसा आया कि केलि को उसके डॉक्टर ने सलाह दी कि वह केमोथेराफी के लिये जाये ताकि उसका जीवन बच सके। केली का इलाज़ शुरु होने के कुछ दिनों के बाद ही केलि के सारे बाल झड़ गये। फिर भी वह स्कूल जाती रही। केमो थेराफी के कुछ दिनों बाद केली के स्वास्थ्य में कुछ सुधार तो अवश्य आया पर वह बहुत ही कमजोर हो गयी थी। एक दिन अचानक केलि की हालत बहुत ख़राब हो गयी और उसे ईश्वर ने अपने पास बुला लिया। उसकी मृत्यु के बाद केलि के पिता ने उसकी डायरी को पढ़ना शुरु किया। केलि ने एक स्थान में यह लिखा था कि उसे सबसे ज़्यादा दुःख तब हुआ जब लोगों ने उसका तिरस्कार किया। जब उसकी सहेलियाँ उस पर हँसती थी क्योंकि उसके सिर के बाल उड़ गये थे। फिर उसे उस समय दुःख हुआ जब उसके साथी इसलिये दूर भागते थे क्योंकि उन्हें डर लगता था कि कहीं उसके साथ रहने से उन्हें भी कैंसर हो जाये। हमारे जीवन में कई दुःखों का सामना हम करते हैं। कई असह्य दुःखों को भी सहर्ष गले लगा लेते हैं पर जब हमारा कोई तिरस्कार करता है तो यह दुःख बुहत ही कष्टकारी होता है। केलि ने अपने जीवन का सबसे बड़ा दुःख तिरस्कृत होने को ही बताया। उसने इस बात को स्वीकार कर लिया था कि उसे कैंसर हो गया है पर उसके लिये इस बात को समझना और स्वीकार करना बहुत ही कठिन होता था कि उसकी सहेलियाँ उससे दूर भागतीं है।
मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन-विधि पंचांग के वर्ष के 26वें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहे हैं। आज प्रभु हमें बताना चाहते हैं कि हम दूसरों का तिरस्कार न करें वरन् सबका सम्मान करें। आइये अभी हम प्रभु के वचनों को सुनें जिसे संत मारकुस के सुसमाचार के 9वें अध्याय के 38 से 48वें पदों से लिया गया है।

सुसमाचार पाठ संत मारकुस 9,38-48
योहन ने येसु से कहा, "गुरुवर, हमने किसी को आपका नाम लेकर अपदूतों को निकालते देखा और हमने उसे रोकने की चेष्टा की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं चलता "। परन्तु येसु ने उत्तर दिया, "उसे मत रोको, क्योंकि व ऐसा कोई नहीं हैं, जो मेरा नाम लेकर चमत्कार दिखाये और बाद में मेरी निन्दा करे। जो हमारे विरुद्ध नहीं है, वह हमारे साथ ही है। जो कोई तुम्हें एक गिलास पानी भर इसलिए पिला दे, कि तुम मसीह के शिष्य हो, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा। यदि कोई इन विश्वास करने वाले नन्हों में से किसी एक के लिये भी पाप का कारण बन जाता है, तो उसके लिये यही अच्छा होता कि उसके गले में चक्की का पाट बाँधा जाता और समुद्र में फेंक दिया जाता। और यदि तुम्हारा हाथ तुम्हारे लिये पाप का कारण बन जाये, तो उसे काट ड़ालो। अच्छा यही है कि तुम लूले हो कर जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों हाथों के रहते नरक की न बुझने वाली आग में न डाले जाओ। और यदि तुम्हारा पैर तुम्हारे लिये पाप का कारण बन जाये तो उस निकाल दो अच्छा यही है कि तुम लँगड़े होकर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों पैरों के रहते नरक में न डाले जाओ। और यदि तुम्हारी आँख तुम्हारे लिये पाप का कारण बन जाये तो उसे निकाल दो अच्छा यही है कि तुम काने होकर ही ईश्वर के राज्य में प्रवेश करो, किन्तु दोनों आँखों के रहते नरक में न डाले जाओ, जहाँ उन में पड़ा हुआ कीड़ा नहीं मरता और आग बुझती है।"


भले कार्य से प्रसन्न होना
मित्रो, मेरा विश्वास है कि आपने आज के सुसमाचार को ध्यान से सुना है। मित्रो, प्रभु ने आज एक बात की ओर हमारा ध्यान खींचा है वह है कि हम दूसरों के भले कार्यों से खुश हों। कई बार हमारा अनुभव रहा है कि हम दूसरों के भले कार्यों को देख कर खुश नहीं होते हैं। भले ही हम इस बात पर बल देते रहते हैं कि हमें सदा ही भला काम करने की बात करते हैं हम प्रगति की बात करते हैं हम आगे बढ़ने की बात करते हैं पर जब सही में कोई दूसरा व्यक्ति प्रगति करने लगता है तो हम दिल से प्रसन्न नहीं हो पाते हैं।

मित्रो, ऐसा सब समय नहीं होता है पर जीवन में कई बार ऐसे पल आते हैं जब व्यक्ति दूसरे की प्रगति की खुशी पर सहभागी नहीं हो पाता है। वह उसकी गलती खोज़ निकालने का प्रयास करता है। मित्रो, आज आपने प्रभु के दिव्य वचन को ध्यान से सुना। आज येसु के चेले यह बताने के लिये येसु के पास आते हैं कि कुछ लोग येसु का नाम लेकर भला कार्य कर रहें हैं कुछ लोग चमत्कार कर रहें हैं और कुछ लोग अपने अच्छे कार्यो के कारण प्रसिद्धि पा रहे हैं। इन सब बातों से येसु को शिष्यों को प्रसन्न होना चाहिये कि बहुत से लोग येसु का कार्य कर रहें हैं पर वे प्रसन्न नहीं होते हैं। खुश होने के बदले शिष्य येसु को उनकी शिकायत करते है और उन्हें यह भी बताते हैं कि उन्होंने उन्हें रोकने का प्रयास भी किया।

भला कार्य सदा भला होता
मित्रो, ऐसा कर के शिष्यों ने सोचा कि वे येसु को प्रसन्न कर देंगे। पर येसु ने इस अवसर का उपयोग करते हुए कहा कि कोई भी भला या अच्छा कार्य सदा ही भला ही कार्य होता है। हमें भले कार्य को सदा प्रोत्साहन देना चाहिये। येसु ने इस बात को भी स्पष्ट कर दिया कि जो भला कार्य करता है वही येसु का सच्चा शिष्य है। इस बात को बताकर येसु ने यह भी बता दिया कि हमारे लिये ऐसा नहीं है कि भला काम करने का एकाधिकार सिर्फ उन्हें है जो येसु के शिष्य हैं। येसु ने इस बात को बताना चाहा कि हम भले कार्य का सम्मान करें। भले कार्य करने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि किसी ख़ास जाति धर्म सम्प्रदाय या संगठन के सदस्य हों। हम जहाँ कहीं भी हो छोटे हों या बड़े हमें ईश्वर का कार्य करना है हमे भला कार्य करना है और हमें सत्य का साथ देना है। प्रभु का मानना है कि जितने लोग भले काम में जुटे हुए हैं वे ईश्वर के हैं और वे ईश्वर के विरोधी हो नहीं हो सकते हैं।

येसु का सच्चा चेला कौन?
येसु ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि वे कैसी दुनिया का निर्माण करने के लिये इस दुनिया में आये हैं। येसु के नज़र में वे लोग उसके हैं जो सत्य और भला को जानना चाहते हैं सत्य के अनुसार जीवन जीते हैं और सत्य और भलाई का प्रचार करते हैं। कितना अच्छा संदेश है।

मानव को मानव का सम्मान
मित्रो, येसु के दूसरी बात की ओर हमारा ध्यान खींचना चाहते हैं वह है कि हम दूसरों के साथ जाति, लिंग, वर्ग और धर्म के कारण भेद-भाव न करें। मानव को हम मानव होने का पूरा सम्मान दें। मनुष्य को इस आधार पर न बाँटे कि उसका जन्म कहाँ किस परिवार या कुल में हुआ। है। ऐसा करने से हम एक अच्छे समुदाय का निर्माण नहीं कर सकेंगे। मित्रो, येसु भेदभाव के विरोध करते हैं येसु पूर्वभावना से ग्रसित होने का भी विरोध करते हैं। येसु इस ईर्ष्या की भावना का भी विरोध करते हैं। वे तो चाहते हैं कि मानव मात्र का कल्याण हो किसी को किसी प्रकार के तिरस्कार का सामना करना न पड़े।








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